- अभी लागू न होने वाले कानून के लिए बनाया हड़बड़ी का माहौल
- ’सत्तापक्ष के साथ ही विपक्ष भी सवालों के घेरे में
अमित नेहरा, नई दिल्ली।
मेवात क्षेत्र, हरियाणा के नूंह व पलवल और राजस्थान ( Rajasthan )के अलवर व भरतपुर जिलों में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में बहुत से ऐसे गिरोह हैं जो भोले-भाले लोगों को अपने चंगुल में फंसा कर उन्हें बेहद सस्ते दाम में सोना देने का आश्वासन देकर उनसे मोटी रकम ऐंठ लेते हैं। बदले में उन्हें असली सोने की जगह नकली सोने की ईंट थमा दी जाती है। शिकार को फसाकर लूटने की इस कला को स्थानीय बोली में ‘टटलू काटना’ कहा जाता है। लोग सतर्क रहें, इसके लिए पुलिस-प्रशासन( Police administration) ने मेवात में ‘टटलू गिरोह से सावधान रहें’ के जगह-जगह बोर्ड लगा रखे हैं।
देखा जाए तो 18 से 21 सितंबर तक आयोजित किये गए विशेष सत्र में देश की जनता खासकर महिलाओं का टटलू काटने की कोशिश हुई है। उसकी वजह यह है कि खुद सरकार, विपक्ष और संसद को ही मालूम नहीं कि उन्होंने जिस महिला आरक्षण अधिनियम को लोकसभा और राज्यसभा में लगभग सर्वसम्मति से पारित कर दिया वह लागू कब होगा? ज्यादातर संविधान विशेषज्ञ (an expert )कह रहे हैं कि राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर करने के बाद यह जब कानून की शक्ल में आ जायेगा तो भी इसे 2029 से पहले लागू करना संभव दिखाई नहीं देता।
ऐसे में पूरा देश पूछ रहा है कि जो कानून छह वर्षों बाद जाकर प्रभावी होने वाला हो, उसके लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की क्या आवश्यकता थी? इतनी जल्दबाजी दिखाकर देश में संशय का माहौल क्यों बनाया गया? क्या इस अधिनियम को आगामी शीतकालीन सत्र में नहीं लाया जा सकता था? क्या विपक्ष, सरकार की गुगली में फंस गया? या फिर सत्ता पक्ष(ruling party) और विपक्ष दोनों एक दूसरे के खिलाफ सिर्फ बयानबाजी करते हैं और बयानबाजी के बाद ये मिलकर खेलने लगते हैं। सवाल बहुत से हैं, जिन्हें जानना जरूरी है।
गौरतलब है कि संसद (parliament)का मानसून सत्र 20 जुलाई 2023 से शुरू होकर 12 अगस्त 2023 को खत्म हुआ। इसके खत्म होने के तुरंत बाद 31 अगस्त 2023 को संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ( Parliamentary Affairs Minister Pralhad Joshi )ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर (अब एक्स) पर लिखा, ‘संसद का विशेष सत्र (17वीं लोकसभा का 13वां सत्र और राज्यसभा का 261वां सत्र) 18 से 22 सितंबर को बुलाया गया है। महत्वपूर्ण बात यह थी कि संसद के इस विशेष सत्र का एजेंडा क्या होगा, इस बारे में उन्होंने आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं बताया।
विशेष सत्र की घोषणा उस दिन हुई जब 28 विपक्षी दलों के भारत गठबंधन की तीसरी बैठक मुंबई में होने वाली थी। विपक्ष लगातार केंद्र सरकार (Central Government)द्वारा बुलाए जा रहे 5 दिनों के इस विशेष सत्र के एजेंडे को लेकर सवाल उठा रहा था। केंद्र सरकार पर कांग्रेस की ओर से भी निशाना साधा जा रहा था। कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा कि सरकार का निर्णय इंडिया ब्लॉक की मुंबई बैठक और अडानी समूह के खिलाफ आरोपों का जवाब देने के लिए समाचार का मैनेज करने के उद्देश्य से है।
शिवसेना (यूबीटी) की नेता प्रियंका चतुवेर्दी ने कहा कि भारत के सबसे महत्वपूर्ण त्योहार गणेश चतुर्थी के दौरान बुलाया गया विशेष सत्र दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह हिंदू भावनाओं के खिलाफ है। उनकी तारीखों के चुने जाने पर आश्चर्यचकित हूं। विपक्ष लगातार मांग कर रहा था कि मोदी सरकार इस सत्र के एजेंडे का ऐलान करे।
आखिरकार 13 सितंबर को लोकसभा और राज्यसभा द्वारा बुलेटिन जारी किये गए। इसके अनुसार, विशेष सत्र का पहला दिन 18 सितंबर संविधान सभा से शुरू होने वाली 75 वर्षों की संसदीय यात्रा पर चर्चा के लिए आरक्षित होगा। राज्यसभा के बुलेटिन में कहा गया कि संसद के विशेष सत्र में तीन बिलों पर चर्चा होगी, जबकि लोकसभा बुलेटिन में दो बिलों पर चर्चा की बात कही गई।
ये थे पोस्ट आफिस विधेयक 2023, मुख्य चुनाव आयुक्त एवं चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, सेवाओं और कार्यकाल से संबंधित विधेयक, निरसन एवं संशोधन विधेयक 2023, अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2023 और प्रेस एवं पत्र पत्रिका पंजीकरण विधेयक 2023। इनमें एडवोकेट संशोधन विधेयक 2023 और प्रेस एवं आवधिक पंजीकरण विधेयक 2023 राज्यसभा से पारित एवं लोकसभा में लंबित हैं। वहीं, डाकघर विधेयक 2023 के अलावा मुख्य निर्वाचन आयुक्त, अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा शर्त विधेयक 2023 सूचीबद्ध है, जिसे पिछले मानसून सत्र में राज्यसभा में पेश किया गया था।
संसद के विशेष सत्र से पहले रविवार, 17 सितंबर को सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। इसमें विपक्षी दलों के कई नेता शामिल हुए। सूत्रों के अनुसार विपक्षी दलों ने संसद के विशेष सत्र को लेकर सरकार के फैसले पर सवाल उठाया और अपने एजेंडे के बारे में विपक्ष को अंधेरे में रखे जाने की शिकायत की। इस बैठक में सत्ता पक्ष और विपक्ष समेत कई दलों ने महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश करने की वकालत की। इस पर सरकार ने कहा कि उचित समय पर उचित निर्णय लिया जाएगा। कई नेताओं ने कहा कि लंबे समय से लंबित इस विधेयक को पेश किया जाना चाहिए और उम्मीद है कि इसे आम सहमति से पारित किया जा सकता है। सर्वदलीय बैठक में एनडीए और विपक्षी इंडिया गठबंधन दोनों की पार्टियों ने महिला आरक्षण विधेयक के लिए जोरदार वकालत की। भाजपा के सहयोगी और एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल, कांग्रेस और उसके सहयोगियों के अलावा बीआरएस, टीडीपी और बीजेडी जैसे गैर-गठबंधन दल इस मांग में शामिल हो गए और सरकार से संसद के नए भवन में स्थानांतरित होने के महत्वपूर्ण अवसर पर इतिहास रचने का आग्रह किया। टीएमसी ने पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी में महिला सांसदों की अपेक्षाकृत बड़ी संख्या का जिक्र किया और उसने इस तरह के विधेयक की आवश्यकता का समर्थन किया।
आखिरकार 18 सितंबर को विशेष सत्र शुरू हुआ और इस दिन पुराने संसद भवन को विदाई दी गई। सत्र के पहले दिन प्रधानमंत्री मोदी समेत बड़े नेताओं ने देश के विकास में योगदान देने के लिए संसद के पुराने भवन को धन्यवाद दिया। मोदी ने संसद के 75 साल के कार्यकाल के बारे में जिक्र किया और भवन को विदाई दी।
संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन 19 सितंबर कोे पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में सभी सांसद इकट्ठा हुए, एक साथ फोटो सेशन हुआ। गणेश चतुर्थी के दिन पुराने संसद भवन से कामकाज को नई संसद भवन में शिफ्ट किया गया और दूसरे दिन की कार्यवाही शुरू हुई। कुल मिलाकर विशेष सत्र के दो दिन संसद के स्थानांतरण में ही लग गए।
संसद के विशेष सत्र के तीसरे दिन 20 सितंबर को केंद्र सरकार ने करीब तीन दशकों से लटके महिला आरक्षण बिल को ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के नाम से लोकसभा में पेश किया। जो 454 वोटों के साथ पास हो गया। इस बिल के विरोध में सिर्फ दो वोट पड़े जो एआईएमआईएम सांसदों के थे। यह विधायिका (लोकसभा और विधानसभा) में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण से संबंधित 128वां संविधान संशोधन विधेयक था।
लोकसभा से महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद केंद्र सरकार ने अगले दिन गुरुवार 21 सितंबर को राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया। इसके चलते देर रात तक संसद चली और 215 वोटों के साथ सर्वसम्मति से यह बिल पारित हो गया। इस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की चुटकी ले ली और कहा कि मैं और मेरी पार्टी इस बिल का समर्थन करती है। यह बिल आने वाला है हमें इसकी जानकारी पहले से नहीं थी, लेकिन उपराष्ट्रपति को पहले से पता था कि बिल आने वाला है। आपने 4 सितंबर को जयपुर में कहा था कि वो दिन दूर नहीं जब देश की संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिलेगा।
अब यह महिला आरक्षण अधिनियम राष्ट्रपति के पास जाएगा और उनकी मुहर के बाद कानून बन जाएगा। इसके साथ ही सरकार ने संसद के विशेष सत्र को, जो 5 दिनों के लिए बुलाया गया था उसे सिर्फ 4 दिनों में ही खत्म कर दिया गया।
मजेदार और हास्यास्पद बात यह रही कि 13 सितंबर को लोकसभा और राज्यसभा द्वारा जारी किए गए बुलेटिन में जिन पांच विधेयकों के लिए ये सत्र बुलाया गया था, उनमें से किसी पर भी चर्चा तक नहीं हुई! ये अभूतपूर्व था और बेहद क्रांतिकारी। इस तमाशे में सरकार के साथ विपक्ष भी साझीदार था। दोनों पक्ष अगर चाहते तो पांचवें दिन भी सत्र आयोजित करवा कर उन पांच बिलों पर भी चर्चा हो सकती थी।
किस चुनाव में मिलेगा महिलाओं को आरक्षण ?
बिल तो पास हो गया और देर-सवेर इस बारे में कानून भी अस्तित्व में आ जाएगा, लेकिन असल में महिलाओं को किस चुनाव में आरक्षण मिलेगा? इसका सटीक जवाब देश में फिलहाल किसी भी व्यक्ति या राजनीतिक दल के पास नहीं है।
महिला आरक्षण अधिनियम 2023 में लगभग सर्वसम्मति से पास तो हो गया लेकिन क्या ये 2024, 2029 या उसके बाद भी हकीकत बन सकेगा? दरअसल, इस सवाल की समस्या है ‘परिसीमन’, जिसे कराए बगैर महिला आरक्षण कानून लागू हो ही नहीं सकता!
यह समस्या प्रस्तावित बिल का हिस्सा है, जो यह कहता है कि महिला आरक्षण आधारित बदलाव जनगणना के बाद ही लागू होंगे और सभी निर्वाचन क्षेत्रों को जनगणना के डेटा के आधार पर फिर से तैयार किया जाएगा।
भारत में आखिरी बार वर्ष 2011 में जनगणना हुई थी। हर दस साल में ये प्रक्रिया होती है लेकिन 2021 में कोविड के कारण जनगणना नहीं हुई। अगली जनगणना कब होगी, यह भी अनिश्चत है।
उधर, भारतीय निर्वाचन आयोग की वेबसाइट के अनुसार, साल 2001 के संविधान संशोधन के अनुसार लोकसभा सदस्यों की संख्या 2026 के बाद ही बढ़ाई जा सकती है। इसका मतलब है कि वर्ष 2026 के बाद 2031 में होने वाली जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन और विस्तार किया जाएगा। तब तक 2001 की जनगणना के अनुसार मौजूदा निर्वाचन क्षेत्रों की संरचना वही रहेगी!
अगर जनगणना, पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार 2031 में होती है, तो महिला आरक्षण 2029 के चुनावों के बाद ही वास्तविकता बन सकता है।
वैसे भी परिसीमन आयोग को अपनी अंतिम रिपोर्ट देने में कम से कम 3 से 4 साल का समय लग ही जाता है। पिछले आयोग ने रिपोर्ट देने में 5 वर्ष लगा दिए थे। इस लिहाज से वर्ष 2037 के आसपास यह रिपोर्ट मिलेगी और हो सकता है कि यह कानून 2039 में जाकर ही लागू किया जा सके!
अब सवाल उठता है कि जिस कानून के बारे में सत्ता या विपक्ष को यह नहीं पता कि यह लागू कब से होगा, उसके लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की क्या आवश्यकता थी? स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि यह आधी आबादी को अपने पक्ष में करने की भोंडा कोशिश है। दोनों पक्ष चाहते तो यह बिल हाल ही में सम्पन्न मॉनसून सत्र (20 जुलाई-12 अगस्त 2023) में भी लाया जा सकता था। नहीं तो नवम्बर में शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र में भी इसे रखा जा सकता था।
विशेष सत्र आयोजित करवा कर ऐसा दशार्या गया कि मानो यह कानून अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में ही लागू होने वाला है और सरकार इसमें थोड़ी-बहुत देर भी कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती। मगर अधिनियम के पारित होने के बाद भी लग रहा है कि इस बारे में इतनी जल्दबाजी दिखाने की क्या जरूरत थी?
महिला आरक्षण की विकास यात्रा
1931 : भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान बेगम शाह नवाज और सरोजिनी नायडू जैसी नेताओं ने महिलाओं को पुरुषों पर तरजीह देने के बजाय समान राजनीतिक स्थिति की मांग पर जोर दिया था।। फिर संविधान सभा की बहसों में भी महिलाओं के आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा हुई थी। लेकिन कहा गया कि लोकतंत्र में खुद-ब-खुद सभी समूहों को प्रतिनिधित्व मिल जायेगा।
1947 : स्वतंत्रता सेनानी रेणुका रे ने आशा जताई कि आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों के सत्ता में आने के बाद महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की गारंटी दी जाएगी। मगर यह उम्मीद पूरी नहीं हुई।
1971 : भारत में महिलाओं की स्थिति पर समिति का गठन किया गया, जिसमें महिलाओं की घटती राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डाला गया।
1974 : महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए एक समिति ने शिक्षा और समाज कल्याण मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की गई थी।
1988 : महिलाओं के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना ने पंचायत स्तर से संसद तक महिलाओं को आरक्षण देने की सिफारिश की। इसी ने पंचायती राज संस्थानों और सभी राज्यों में शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण अनिवार्य करने वाले 73वें और 74वें संविधान संशोधनों की नींव रखी।
1993 : 73वें और 74वें संविधान संशोधनों में पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित की गईं। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और केरल समेत अनेक राज्यों में स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लागू है।
1996 : प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया। लेकिन इसके तुरंत बाद, उनकी सरकार अल्पमत में आ गई और लोकसभा भंग हो गई।
1998 : एनडीए सरकार ने 84वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में इसे फिर से पेश किया। विरोध में एक राजद सांसद ने विधेयक को फाड़ दिया। वाजपेयी सरकार के अल्पमत में आने के के कारण यह लोकसभा भी भंग हो गई और विधेयक पारित नहीं हो पाया।
1999 : एनडीए सरकार ने 13वीं लोकसभा में फिर यह विधेयक पेश किया, पर आम सहमति नहीं बनी।
2002-2003: दोनों बार लोकसभा में विधेयक लाया गया, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी दलों द्वारा समर्थन का आश्वासन दिए जाने के बाद भी इसे पारित नहीं कराया जा सका।
2004 : सत्तारूढ़ यूपीए सरकार ने साझा न्यूनतम कार्यक्रम में अपने वादे के तहत इस बिल को पारित करने की घोषणा की।
2008: मनमोहन सिंह सरकार ने इस विधेयक राज्यसभा में पेश किया और 9 मई, 2008 को इसे कानून और न्याय पर स्थायी समिति को भेजा गया।
2009 : स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट दी, विधेयक को समाजवादी पार्टी, जेडीयू और राजद के विरोध के बीच संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया।
2010 : केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दी। विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया, लेकिन सपा और राजद के यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकियों के बाद मतदान स्थगित कर दिया गया।
9 मार्च को राज्यसभा ने महिला आरक्षण विधेयक को 1 के मुकाबले 186 मतों से पारित कर दिया। मगर, लोकसभा में 262 सीटें होने पर भी सरकार विधेयक को पारित नहीं करा पाई।
2014-2019 : भाजपा ने दोनों बार अपने चुनावी घोषणापत्रों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का वादा किया, लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ।
2023 : विशेष संसद सत्र में नारी शक्ति वंदन अधिनियम लोकसभा में 20 सितंबर को दो के मुकाबले 454 वोटों के साथ पास हो गया। जबकि राज्यसभा में 21 सितंबर को 215 वोटों के साथ सर्वसम्मति से पारित हो गया।
चलते-चलते
संसद में इस समय महिलाओं की क्या हैसियत है, ये नारी शक्ति वंदन अधिनियम पर चर्चा में खूब दिखाई दिया। इस चर्चा में एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि महाराष्ट्र के पूर्व भाजपा प्रमुख ने मुझसे टीवी पर कहा था कि सुप्रिया सुले तुम घर जाओ, खाना बनाओ। देश कोई और चला लेगा। भाजपा इस पर जवाब दे। टीएमसी सांसद काकोली घोष ने कहा कि देश में सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही महिला मुख्यमंत्री है, भाजपा की 16 राज्यों में सरकार है, लेकिन एक भी राज्य में महिला मुख्यमंत्री नहीं है। देश के लिए मेडल जीतने वाली महिलाओं का सेक्सुअल हैरेसमेंट किया गया। आरोपी बृजभूषण सिंह आज संसद में बैठा है। भाजपा उनके खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं लेती? महिला आरक्षण अधिनियम पर जब डीएमके सांसद एमके कनिमोझी बोलने खड़ी हुईं तो सत्ताधारी सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया। इस पर कनिमोझी और सुप्रिया सुले ने कहा कि भाजपा के लोग महिलाओं की यही इज्जत करते हैं। इसके बाद सदन में गहरी शांति छा गई।