उफ्फ! इतना खौफ, नहीं थमेगा सियासी वार

  •  मुख्य प्रचारतंत्र अब सरकार के पूरे नियंत्रण में 
  • कल का सियासी ‘पप्पू’ यानी राहुल गांधी भी नए अवतार में भारी पड़ रहा है

वीरेंद्र सेंगर, नई दिल्ली ।

संसद के मानसून सत्र ने जाते-जाते सियासी ‘आग’ की धधक तेज कर दी है। अब आगे की जोर आजमाइश सड़क, खेत और खलिहान में होगी। संसद में मोदी सरकार (Modi government) खासी मजबूत है। इसके बाद भी उसे नए बने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ से खौफ लगने लगा है। इसीलिए पूरी सरकार ने ‘इंडिया’ का तंबू ही उखाड़ फेंकने के मंसूबे जता दिए हैं। ‘इंडिया’ (India)में फिलहाल 26 दल हैं। इस गठबंधन के सामने लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) तक एक बने रहने की बड़ी चुनौती है। क्योंकि भाजपाई ‘बुलडोजर’ पर निकल पड़ा है।

वह कहीं भी अपनी सियासी ‘लीला’ दिखा सकता है। कई घटकों को तोड़ने, ललचाने और फुसलाने की कवायद तेज कर दी गई है। जिससे कि ‘इंडिया’ कमजोर पड़े। मुख्य प्रचार तंत्र सरकार (Main Publicity Mechanism Government)के पूरे नियंत्रण में है। इससे तमाम बेसिर पैर की अफवाहों की भी ‘खबर’ बन रही है। मंसूबा यही है कि विपक्ष में आपसी अविश्वास बढ़े और उनकी मजबूती में दरार आ जाएं। इन तीन तिकड़मों के बावजूद टीम मोदी की बेचैनी बढ़ गई है। क्योंकि कल का सियासी ‘पप्पू’ यानी राहुल गांधी भी एक नए अवतार में भारी पड़ रहा है।

संसद सत्र 11 अगस्त तक चला। मणिपुर के मुद्दे पर तीन दिन तक  अविश्वास प्रस्ताव पर हंगामेदार चर्चा चली। इस बीच संसदीय मर्यादाओं का जमकर चीर हरण हुआ। सत्ता पक्ष ने तो लोक लाज के एकदम रौंद डाला। सियासी होड़ में विपक्ष के कुछ नेताओं ने भी आलोचना के दौर में ‘युद्ध’ के नगाड़े से बजाए। अविश्वास चर्चा के दौरान गंभीर किस्म का विमर्श नदारत रहा। सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए के पास संख्या बल भारी है। इसके चलते बोलने का सबसे ज्यादा मौका उसी के पास था।

भाजपा के चाणक्य माने जाने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का भाषण ही करीब दो घंटे का रहा। इसमें उन्होंने मणिपुर के मुद्दे पर खूब बोला। लेकिन उनकी ज्यादा ऊर्जा पिछली कांग्रेस सरकारों को कोसने में ही गई। मानो, मणिपुर में जो खूनी खेल साढ़े तीन महीने से चल रहा है, उसकी जिम्मेदारी पहले पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू आदि की ही रही हो। उनकी सरकार ने क्या भूमिका निभाई है? इस पर कम बोले। उनके ज्यादातर ब्योरे सतही लगे। जरूरी तथ्यों को छिपाया गया। मणिपुर के एकदम असफल मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का भी बचाव किया गया। जबकि वहां के जमीनी हालात ये है कि बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार एकदम फेल रही है। तीन मई से शुरू हुई जातीय हिंसा जारी है। तमाम दावों के बावजूद स्थिति विस्फोटक बनी हुई है।

ये पंक्तियां लिखे जाने तक वहां करीब दो सौ लोगों की हत्या हो चुकी  है। करीब सौ पूजा स्थल जला दिए गए हैं। इनमें से अधिसंख्य चर्च हैं। पांच हजार से ज्यादा घर जलाए गए हैं। दर्जनों पुलिस थाने तक लूटे गए। पुलिस की भूमिका कई जगह खूनी दंगाइयों से भी बदतर रही। थानों से दिनदहाड़े हथियार लूटे गए। इनकी संख्या दस हजार से ज्यादा बताई जा रही है। लूटे गए हथियारों में बेहद खतरनाक हथियार भी हैं। वहां मेतैई और कुकी समुदायों के बीच जंग है। हालत ‘गृहयुद्ध’ के बने हुए हैं।

अब मुख्यमंत्री वीरेन सिंह के नियंत्रण में राज्य कानून-व्यवस्था नहीं रही। यह यहां की जमीनी हकीकत है। राज्य की आबादी करीब 34 लाख है। मेतैई आबादी बहुसंख्यक है। ये लोग घाटी में रहते हैं। जबकि जनजातीय कुकी दुर्गम पहाड़ियों में बसते हैं। उनके इलाकों में पहले कई तरह के कानूनी संरक्षण प्राप्त थे। उनकी जमीन गैर आदिवासी नहीं खरीद सकते थे। लेकिन न्यायालय के एक फैसले से मेतैई को भी जनजाति का दर्जा मिल गया।  इससे हिंसा की आग भड़की। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बड़ी चालाकी से इस विवाद की जिम्मेदारी न्यायालय के आदेश पर मढ़ रहा है।जबकि सच्चाई इतनी भर ही नहीं है। हाई कोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने जरूरी कदम नहीं उठाए। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी कहते हैं, ‘मणिपुर सरकार की नीयत में खोट थी। उसे जमीनी हालात पता थे। सरकार की अदालती पैरवी कमजोर थी। इसी से कुकी समाज का गुस्सा फूट पड़ा। शुरूआती हिंसा नियंत्रित करने के जरूरी कदम नहीं उठाए गए। नाराज कुकी समुदाय को कुचलने के लिए प्रशासन ने जवाबी हिंसा की।’ आरोप तो ये भी रहे कि मेतैई दंगाइयों को स्थानीय पुलिस का खुला संरक्षण प्राप्त रहा। क्योंकि शीर्ष स्तर से कुकी समुदाय को जोरदार सबक सिखाने का मंसूबा था। इसी का परिणाम रहा कि दंगाई कुकी बस्तियों पर टूट पड़े। उनके घर जला जला दिए गए। महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किए गए। गोली मारी गई। छोटे बच्चों को भी नहीं बख्शा गया। मुख्यमंत्री मेतैई है। वे कुकी समुदाय का विश्वास एकदम खो चुके हैं।

19 जुलाई के आसपास दो कुकी युवतियों की नग्न परेड का हृदय विदारक वीडियो वायरल हुआ था। इस वीडियो को देखकर इंसानियत भी शर्मसार होती रही। पता चला कि उन कुकी महिलाओं को पकड़कर स्थानीय पुलिस लायी थी। उन्होंने ही सड़क पर मेतैई दंगाइयों को सौंप दिया था। भीड़ ने पुलिस के सामने दोनों को निर्वस्त्र किया था। उनके सामने ही घरवालों को गोली मार दी थी। इसके बाद इन्हें नग्न घुमाते रहे। चौराहे पर गैंगरेप हुआ। इन महिलाओं ने आपबीती बताई तो दिल दहल गए। मणिपुर के बाहर पहली बार इसी वीडियो से हिंसा की भयावहता का पता चला। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने मामले को स्वत: संज्ञान में लिया। उन्होंने डबल इंजन की सरकारों को  जोरदार फटकार लगाई। दिल्ली और इंफाल से जवाब मांगा। इससे सरकार में हलचल हुई।

अगले दिन यानी 20 जुलाई से मानसून सत्र शुरू हुआ था। उच्चतम न्यायालय की फटकार के बाद तय था कि संसद में विपक्ष जोरदार हंगामा करेगा। इसी को ध्यान में रखते हुए शायद पीएम ने संसद परिसर में मीडिया को 36 सेकंड की ‘बाइट’ दे दी। मणिपुर की घटनाओं पर दुख जताया। वोट बैंक की राजनीति से भी नहीं चुके थे। मणिपुर के साथ कांग्रेस शासित राज्यों छत्तीसगढ़ और राजस्थान के भी महिला अत्याचारों को भी जोड़ दिया। संसद के अंदर विपक्ष के तमाम हंगामे के बाद भी पीएम नहीं बोले थे। इसी को लेकर लगातार कई दिन तक संसद नहीं चली। विपक्ष लंबी बहस की मांग कर रहा था। जबकि सरकार इसे संक्षिप्त चर्चा में निपटाने पर अड़ी रही। अंतत पीएम को मणिपुर पर बोलने के लिए विपक्ष ने बाध्य किया। सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कहते हैं, ‘हम पहले दिन से ही जानते थे कि संख्या बल उनके पक्ष में है। वैसे भी विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव हमेशा सरकार को गिराने के लिए नहीं होता। सरकार को जरूरी मुद्दों पर जिम्मेदार बनाने के लिए भी विपक्ष इस तरह का कदम उठाता है। कांग्रेस ने भी इसी मंसूबे से यह कदम उठाया ताकि पीएम को मणिपुर पर बोलने के लिए बाध्य किया जाएं। हम मकसद में सफल रहे। मोदी सरकार का असली चेहरा दुनिया के सामने आ गया है।’

प्रधानमंत्री संसद में बोले, तो जमकर बोले। उन्होंने दो घंटे 13 मिनट तक बोला। यूं तो पीएम मोदी चतुर भाषणबाज माने जाते हैं। लेकिन इस बार उनके भाषण का जादू फीका और एकदम निस्तेज रहा। तमाम राजनीतिक प्रेक्षक ऐसा मान रहे हैं। उनका लंबा भाषण इतना उबाऊ और पकाऊ हो गया था कि लोकसभा में माननीय विदेश मंत्री सहित सत्ता पक्ष के कई दिग्गज झपकी लेते देखे गये थे। इसके फोटो भी वायरल रहे। यह भी कि पीएम मोदी ने अपने भाषण में से चुनावी रैली का माहौल बनाया था। उन्होंने एनडीए सांसदों को ‘जनता’ की भूमिका दी। जोकि उनके साथ हां में हां मिलाते रहे और नारे लगाते रहे। करीब दो दशक तक इस प्रतिनिधि ने भी संसद की कवरेज की है। ऐसे फूहड़ सियासी दृश्य इसके पहले मैंने कभी नहीं देखे थे। लेकिन सुचिता की सियासत के दिन तो शायद एकदम लद गए हैं। विडंबना यही कि जब इस राजनीति की कमान शीर्ष नेता माननीय प्रधानमंत्री जी के हाथ में हो, तो इसे घोर विडंबना ही कहा जाएगा। कोलकाता के चर्चित अखबार ‘द टेलीग्राफ’ ने अपनी प्रमुख खबर में भाषण के बारे में दर्ज किया है ‘आएं-बाएं-साएं’ ये भी निडर पत्रकारिता का अभिनव प्रयोग है। लेकिन हमारे राजनेता जब एकदम थेथरई पर उतारू हों, तो भला उन्हें कौन ‘सदूमार्ग’ दिखा सकता है, वैसे भी मोदी जी का बनाया भाजपा का ‘मार्गदर्शक मंडल’ कुंडली मारकर कहां पड़ा है बेचारा। कोई नहीं जानता है।

अविश्वास बहस के दौरान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी जमकर बोले थे। उन्होंने करीब 34 मिनट के भाषण में अपना सियासी रौद्र रूप दिखा दिया। तंज तो अडानी के मुद्दे पर किया। मणिपुर, वे दौरा करके आए हैं। वहां के हालात बताते-बताते वे भावुक हो गए। उन्होंने मोदी सरकार पर ठेठ निशाना साधा। कहा कि डबल इंजन की सरकार ने ‘भारत माता’ की हत्या कर दी है। मणिपुर को मार दिया है। वहां दो मणिपुर बन गए हैं। ‘आईडिया आॅफ इंडिया’ को मार दिया गया है। राहुल के विस्फोटक तेवरों की गूँज लंबे समय तक रहेगी। लोकसभा स्पीकर ने राहुल के भाषण के कई विवादित अंशों को निकाल दिया है। ये उनकी पुरानी रवायत है। पहले भी उनके भाषणों के ‘असुविधाजनक’ अंशों को निकाला गया था। खासतौर पर अडानी से जुडे घोटालों के बारे में। ‘भारत माता’ की हत्या की टिप्पणी को लेकर सत्ता पक्ष काफी आक्रोश में रहा। राहुल ने 11 अगस्त को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि उन्होंने क्यों ऐसा कहा था? उन्होंने मणिपुर के खौफनाक अनुभव को साझा किया। दोनों तरफ से सियासी ‘तलवारें’ तन गई हैं। राहुल की नई छवि एक ‘जन योद्धा’ की बन गई है। लोकसभा के पहले पांच राज्यों के चुनाव हैं।  तैयारियां, तेज हैं। ‘इंडिया’ के सामने चुनौतियां बहुत है। लेकिन जनता का ‘मूड’ पीएम मोदी को भी डरा रहा है।

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