Chandrayaan-3 ने दुनिया को दिया संदेश, दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला बना एकलौता देश

श्री हरिकोटा चंद्रयान-3(Chandrayaan-3) के लैंडर मॉड्यूल (एलएम) के चंद्रमा की सतह पर उतरते ही भारत ने पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह के अज्ञात दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बनकर इतिहास रच दिया है। दुनिया(world) भर की नजरें भारत की ओर लगी होने के बीच लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) से युक्त लैंडर मॉड्यूल ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र के निकट सॉफ्ट लैंडिंग की।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने दक्षिण अफ्रीका से वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि आज सफलता की अमृत वर्षा हुयी है। देश ने धरती पर सपना देखा और चांद पर साकार किया। कुछ दिन पहले रूस ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की कोशिश की थी लेकिन उसका लूना-25 अंतरिक्ष यान चांद की सतह से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।

ऐसे में भारत के चंद्रयान-3 मिशन की अहमियत और बढ़ गई थी। पूरी दुनिया की नजर इस मिशन पर थी। चंद्रयान-3 की सफलता के लिए देश के कोने-कोने में आज सुबह से पूजा, प्रार्थना और इबादत की दौर शुरू हो गयी थी। इसरो के वैज्ञानिकों ( Scientists )ने चंद्रयान -3 को चांद की ऐसी सतह पर उतरा है जो मुश्किलों की जाल से घिरी है। सबसे बड़ी चुनौती यहां का अंधेरा था। यहां पर लैंडर बिक्रम को उतारना काफी मुश्किल था क्योंकि चांद पर पृथ्वी की तरह वायुमंडल नहीं है। हमारे वैज्ञानिकों ने मुश्किलों को राई बनाकर पुरानी गलतियों से बड़ी सबक लेते हुए चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर प्रज्ञान को चांद के उस आगोश में पहुंचाकर सांस ली, जहां से कई खगोलीय रहस्यों का परत-दर परत खुलेगा।

चंद्रयान -3 के रोवर में चंद्रमा की सतह से संबंधित डेटा प्रदान करने के लिए पेलोड के साथ कॉन्फ़िगर की गयी मशीनें लगी हैं। यह चंद्रमा के वायुमंडल (atmosphere )की मौलिक संरचना पर डेटा एकत्र करेगा और लैंडर को डेटा भेजेगा। लैंडर पर तीन पेलोड्स हैं। उनका काम चांद की प्‍लाज्‍मा डेंसिटी, थर्मल प्रॉपर्टीज और लैंडिंग साइट के आसपास की सीस्मिसिटी मापना है ताकि चांद के क्रस्ट और मैंटल के स्‍ट्रक्‍चर का सही-सही पता लग सके।

एक चांद की सतह पर प्लाज्मा (आयन्स और इलेट्रॉन्स) के बारे में जानकारी हासिल करेगा। दूसरा चांद की सतह की तापीय गुणों के बारे में अध्ययन करेगा और तीसरा चांद की परत के बारे में जानकारी जुटाएगा। इसके अलावा चांद पर भूकंप कब और कैसे आता है इसका भी पता लगाया जाएगा।

भारत ने सितंबर 2019 में इसरो ने चंद्रयान-2 को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारने की कोशिश की थी, लेकिन तब लैंडर की हार्ड लैंडिंग हो गई थी। पिछली गलतियों से सबक लेकर चंद्रयान-3 को जीत के लिए ही तैयार किया गया था।चांद का दक्षिणी ध्रुव भी पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव की तरह ही है। पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका में है जो धरती का सबसे ठंडा इलाका है। इसी तरह चांद का दक्षिणी ध्रुव अपनी सतह का सबसे ठंडा क्षेत्र है।

चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अगर कोई अंतरिक्ष यात्री खड़ा होगा, तो उसे सूर्य क्षितिज की रेखा पर नजर आएगा। वह चांद की सतह से लगता हुआ और चमकता नजर आएगा।इस इलाके का ज्यादातर हिस्सा छाया में रहता है, क्योंकि सूर्य की किरणें तिरछी पड़ती हैं जिससे यहां तापमान कम होता है।

नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार चांद का दक्षिणी ध्रुव काफी रहस्यमयी है। दुनिया अब तक इससे अनजान है।नासा के एक वैज्ञानिक का कहना है, हम जानते हैं कि दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ है और वहां दूसरे प्राकृतिक संसाधन भी हो सकते हैं। ये हालांकि अब तक अनजान दुनिया ही है। नासा का कहना है, चूंकि दक्षिणी ध्रुव के कई क्रेटर्स पर कभी रोशनी पड़ी ही नहीं और वहां का ज्यादातर हिस्सा छाया में ही रहता है, इसलिए वहां बर्फ होने की कहीं ज्यादा संभावना है। ऐसा भी अंदाजा है कि यहां जमा पानी अरबों साल पुराना हो सकता है। इससे सौरमंडल के बारे में काफी अहम जानकारियां हासिल करने में मदद मिल सकेगीं।

 

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