टीम ‘इंडिया’ मणिपुर के हालात से व्यथित होकर लौटी
केंद्र और राज्य सरकार को ही करनी होगी ठोस कोशिश
ममता सिंह
मणिपुर (Manipur )में हालात कब सामान्य होंगे और लोगों के बीच कडुवाहट कब खत्म होगी, इसका जवाब न केवल मणिपुर के लोग ढूंढ रहे हैं बल्कि पूरा देश भी ढूंढ रहा है। क्योंकि मणिपुर(Manipur)में फैली अराजकता से विदेशों में भी राजनीतिक (Political)हलचल बढ़ी हुई है। ऐसा भी नहीं है कि मणिपुर की विस्फोटक स्थिति को नियंत्रित करना काफी जोखिम भरा काम है। लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण पूरा मामला लगातार आक्रामक होता जा रहा है।
अभी हाल ही में विपक्ष द्वारा गठित ‘इंडिया’ की 21 सदस्यीय टीम ने मणिपुर का दौरा किया और अपनी रिपोर्ट जारी की। वहां जाकर टीम हर समुदाय के लोगों से मिली और फीडबैक संग्रह किया। लेकिन टीम ने रटी रटाई बात ही कही है, जो मणिपुर दौरे के पहले से बोल रही थी। ऐसे में सवाल उठता है कि इस टीम का वहां जाने का औचित्य क्या रहा। जब हम शांति की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं कर सकते।
ऐसी स्थिति में सब कुछ बेमानी ही दिखता है। दरअसल, मणिपुर में तो सर्वदलीय टीम को दौरा करना चाहिए था। जिसमें खासकर, भाजपा के सांसदों को शामिल करना जरूरी था। लेकिन बड़ी विडम्बना यह रही कि मणिपुर में विपक्ष की संयुक्त टीम गई। लेकिन भाजपा के सांसदों को भी तो जमीनी हकीकत से रूबरू कराना आवश्यक था। क्योंकि मणिपुर का समाधान वाकई तभी संभव होगा, जब भाजपा की ओर से सकारात्मक पहल हो।
वैसे भाजपा की ओर से खुद ही इस बात की पहल शुरू हो जानी चाहिए थी। मणिपुर को लेकर किसी भी पार्टी को बेवजह की सियासत नहीं करनी चाहिए। मणिपुर में शांति बहाली की दिशा में सभी को संयुक्त प्रयास करने की आवश्यकता है। भाजपा सत्ता में है। इसलिए शांति प्रयास की शुरुआत तो यही से करने की जरूरत है। मणिपुर के हालात को लेकर केंद्र और राज्य सरकार दोनों को ही विस्तृत जानकारी है।
मजे की बात यह है कि दोनों ही जगह भाजपा की ही सरकार है। ऐसे में इस समस्या का हल अब तक नहीं निकलना काफी दुर्भाग्यजनक है। शांति को लेकर विपक्ष को तो प्रयास करना चाहिए लेकिन उससे भी जरूरी है भाजपा की ओर से पहल।
विपक्ष की टीम ने तो कोई नयी बात का उल्लेख नहीं किया है। उसका कहना है कि सभी समुदाय में गुस्सा और अलगाव है। इस भावना को जड़ से खत्म नहीं किया गया तो मणिपुर की लपटें पूरे देश में फैल जाएंगी। विपक्ष को यह बात समझने की कोशिश करनी चाहिए कि क्या केंद्र को इसका आभास नहीं है। केंद्र को एकदम इस बात के संकेत हैं। केंद्र के पास अपनी इंटेलिजेंस है। जो पल पल की रिपोर्ट से केंद्रीय गृह मंत्रालय को अवगत करा रही है। मणिपुर का मुद्दा विदेश में भी उछल गया है।
देश से लेकर विदेश तक मणिपुर का मुद्दा गरमाया हुआ है। अब समस्या के समाधान पर केंद्र को वाकई मंथन करना चाहिए। राजनीतिक हित देखने का समय अब किसी भी पार्टी का नहीं है। क्योंकि मणिपुर के धमाकों की गूंज चहुंओर है। ऐसी बात भी नहीं है कि नब्ज किसी के पकड़ में नहीं आ रही है। सब कुछ साफ है, लेकिन ईमानदार प्रयास नहीं होने से, न ही देश में बल्कि विश्व में भी भारत की छवि खराब हो रही है।
अपनी माटी की बात किसी भी सूरत में बाहर नहीं जानी चाहिए। इसके लिए सख्त कदम उठाने में भी कोई संकोच केंद्र को नहीं करना चाहिए। हां, एक अच्छी पहल केंद्र की ओर से जरूर हुई है कि मिजोरम सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर म्यांमार से आए नागरिकों का बायोमेट्रिक विवरण जुटाना शुरू किया है, हालांकि केंद्र को यह फरमान काफी पहले ही जारी करना चाहिए था। क्योंकि मणिपुर में फैली आग की लपटों को मिजोरम से हवा निश्चित रूप से मिल रही है।
इसको ज्यादा स्पष्ट नहीं किया जा सकता है। क्योंकि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला है। देश सर्वोपरि है। इससे समझौता कदापि उचित नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मणिपुर में जल्द ही शांति कायम होगी। पक्ष और विपक्ष को मिलकर संयुक्त रूप से मणिपुर के बारे में हल निकालने की कोशिश करनी चाहिए। विपक्ष को भी मणिपुर को लेकर आरोप-प्रत्यारोप केंद्र पर मढ़ने के बजाय टेबल टॉक के जरिए एक ठोस फार्मूला निकालना चाहिए। ताकि, शेष भारत और विदेश में मणिपुर की गंध नहीं फैले।
सरकार को यह छूट है कि वह माहौल देखकर सख्त और नर्म फैसला ले। इसमें विपक्ष को भी ना-नुकुर नहीं करनी चाहिए। मणिपुर में शांतिपूर्ण माहौल कायम हो, इस दिशा में मिलकर काम करना होगा। सभी समुदाय के नेताओं से बात करनी होगी। आम लोगों में विश्वास जगाना होगा। ताकि, आम जनजीवन पहले की ही तरह पटरी पर लौट जाए। बंदूक के साए में खेती-किसानी नहीं हो। बल्कि, खुले वातावरण में हो। इंडस्ट्री खुले, स्कूल कॉलेज खुलें। जरूरी राशन की गाड़ियां बिना पुलिस की सुरक्षा में पहले की तरह फिर से सड़कों पर दिखें। क्योंकि पूरा देश इसी रूप में मणिपुर को देखना चाहता है।