रणविजय सिंह
आपकी प्रिय पत्रिका “चाणक्य मंत्र” ने 5 साल का पूरा सफर पूरा कर लिया है। अब यह पत्रिका छठवें साल में एंट्री कर चुकी है। अतीत में जाने के बजाय हमें भविष्य की बात करनी चाहिए। हां, अतीत को कम शब्दों में समेटना ही बेहतर होगा क्योंकि पत्रिका के समक्ष सुनहरा भविष्य दिखाई पड़ रहा है। इतना जरूर की पत्रिका सीमित संसाधनों में निरंतर निकल रही है। आर्थिक संकट तो रहता ही है। यह तो पत्रिका के प्रकाशन के समय से ही है।
लेकिन हिन्दी के विद्वान लेखक श्रीराम शर्मा ने अपने एक आलेख में कहा है कि दृढ़संकल्प सा दुबिधा की बेड़िया कट जाती हैं। मतलब करूं या न करूं जैसी परिस्थितयों से जूझने में श्रीराम शर्मा की यह पंक्तियां मार्ग दर्शन के रूप में काम करती रहीं। उम्मीद भी यही है कि भविष्य में भी यह पंक्ति संस्थान को मजबूती प्रदान करेगी। इसके अलावा गुरूदेव रविंद्र नाथ टैगोर का यह मंत्र एकला चलो,काफी प्रेरणादायक रहा।
यह मंत्र आज भी पथ में आने की झंझावातों को पार करने में मददगार है। इस सफर में कुछ चुनिंदा वरिष्ठ पत्रकार साथी भी मिले जिनका सहयोग मिला और दावे के साथ कहा जा सकता है कि भविष्य में भी मिलता रहेगा। जो निस्वार्थ भाव से अपने आलेख के जरिए मदद पहुंचाते रहते हैं। इस क्रम में विज्ञापनदाताओं का भी सहयोग मिला।
हां, सबसे बड़ा और दमदार सहयोग पाठकों का मिला जो वाकई कल्पना से परे है। तभी तो हमारी प्रसार संख्या हालात के मुताबिक संतोषजनक है। पाठकों की इस बेइंतहां मुहब्बत के लिए पत्रिका परिवार सही मायने में तहेदिल से उनका शुक्रगुजार हैं। मजेदार बात यह है कि हर माह पाठकों की ओर से मिलने वाले पत्रों में पत्रिका की कीमत बढ़ाने के साथ ही पृष्ठ संख्या बढ़ाने की मांग लगातार की जा रही है। लेकिन मौजूदा स्थिति में न ही हम पत्रिका के मूल्य में वृद्धि और न ही पृष्ठ संख्या बढ़ाने की स्थिति में हैं।
मूल्य बढ़ाने का असर सुधि पाठकों पर पड़ेगा और पेज बढ़ाने का असर पत्रिका पर पड़ेगा। हां, भविष्य में पेज और मूल्य दोनों ही बढ़ाएंगे। इसको लेकर संस्थान की ओर से मंथन जरूर किया जा रहा है कि कुछ ठोस हल निकाला जाए। इस दिशा में प्रयास जारी है। देश में स्तरीय पत्र पत्रिकाओं का घनघोर रूप से अभाव है। बड़े घरानों की पत्र पत्रिकाओं को दम तोड़ते देखा गया है। पत्र पत्रिकाओं का अंत काफी दुखद होता है।
दरअसल जो पत्र पत्रिकाएं आज बाजार में दिख रहीं हैं किसी न किसी विचार धार से प्रभावित हैं और उनको लाभ भी मिल रहा है। खास बात यह है कि चाणक्य मंत्र पत्रिका भी बाजार में न केवल दिख रही है बल्कि बिक भी रही है। पर किसी राजनीति विचार धारा की जाल में नहीं है। पत्रिका की पहचान निष्पक्षता और निडरता है। यही हमारी पूंजी भी है।
हमारी कोशिश है कि इस अमूल्य पूंजी को सहेज कर रखा जाए। पत्रिका का अपना वेबसाइट भी है। हमारी कोशिश रहती है कि इसके मार्फत पाठकों को तुरंत ताजा खबरें परोसी जाएं। इस दिशा में प्रयास जारी है। हां , हम अपने नेटवर्क को और ज्यादा सशक्त करने में जुटे हुए हैं।इतना बता दें कि हम अपनी वेबसाइट में पुख्ता खबर ही डालते हैं।