भाजपा में उलट फेर की प्रबल संभावना

पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा की उच्च स्तरीय बैठक

नयी दिल्ली। भाजपा में लंबे समय से बड़े बदलाव की अटकलें लगाई जा रही हैं। इसी बीच 28 जून को देर रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और पार्टी के संगठन महासचिव बीएल संतोष के साथ बैठक की।

माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री आवास पर हुई इस बैठक में सरकार और संगठन में बड़े फेरबदल पर बात हुई। इसमें चुनावी राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में बड़ा बदलाव हो सकता है।

इन राज्यों से कुछ लोगों को सरकार में लाया जा सकता है तो कुछ मंत्रियों को बेहतर कामकाज के लिए संगठन में भेजा जा सकता है। इस बदलाव को मानसून सत्र के पहले मूर्त रूप दिया जा सकता है जिसके जुलाई महीने के दूसरे सप्ताह के बाद आयोजित किए जाने की संभावना है।

दरअसल, इस बैठक से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जेपी नड्डा, बीएल संतोष और आरएसएस के एक शीर्ष पदाधिकारी अरुण कुमार के साथ कम से कम पांच मैराथन बैठक की थी। पांच जून, छह जून और सात जून को इन शीर्ष नेताओं ने भाजपा मुख्यालय पर लंबी बैठक कर पार्टी में बदलाव की रूपरेखा तैयार की थी। प्रधानमंत्री के साथ हुई बैठक में इन बदलावों पर चर्चा हुई और पीएम बदलावों पर अपनी मुहर लगाई।

बदलेगा भाग्य?

पार्टी में कई नेताओं का भाग्य बदल सकता है तो कुछ नेताओं को संगठन में भेजकर उन्हें चुनावी कार्यों में लगाया जा सकता है। पार्टी चुनावी राज्यों में बेहतर प्रदर्शन कर चुके कुछ नेताओं को चुनावी राज्यों में चुनाव प्रभारी के तौर पर नियुक्त कर सकती है।

वहीं, केंद्रीय मंत्रियों अनुराग ठाकुर, धर्मेंद्र प्रधान और भूपेंद्र यादव की जिम्मेदारियां बढ़ सकती हैं। बिहार में बढ़ी राजनीतिक सक्रियता को देखते हुए राज्य के कुछ नेताओं को संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी जा सकती है।

तेलंगाना में पार्टी अध्यक्ष बंडी संजय कुमार को लेकर कार्यकर्ताओं में काफी रोष था, वहां पर भी कुछ बदलाव कर चुनावी समीकरण साधने की कोशिश की जा सकती है।

पार्टी की चुनौतियां बढ़ी

जिस तरह विपक्षी दलों ने पटना में एकता बैठक कर भाजपा को चुनौती देने की कोशिश की है, उससे भी पार्टी को अपनी चुनावी तैयारियों को दुबारा सही करने की जरूरत महसूस हुई है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणामों ने भी पार्टी को अपनी चुनावी रणनीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत बताई है। कांग्रेस ने जिस तरह विभिन्न राज्यों में मुफ्त चुनावी वादों से चुनावी समीकरणों में नया पेंच पैदा किया है, केंद्र सरकार के सामने उससे निपटना नई चुनौती हो गई है। माना जा रहा है कि बदलावों में इन सभी चुनौतियों से निबटने की रणनीति दिखाई पड़ सकती है।

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