- हिमाचल और कर्नाटक में मिली हार के बाद पार्टी के लिए चुनौतियां बढ़ीं
- लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले दो अहम चुनाव में बेहतर रिजल्ट देने का दबाव
डॉ. श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट, रुड़की।
उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार के पास अब तक ऐसी कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है जिससे भाजपा होने वाले विधानसभा उपचुनाव, निकाय चुनाव और साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए वोट मांग सके। यही कारण है जो भाजपा को फिर से मोदी के नाम का सहारा चुनाव में लेना पड़ेगा।
उत्तराखंड भाजपा अपनी सारी कोशिशों के बाद भी खुद के ऊपर से कर्नाटक विधानसभा चुनाव की पराजय नहीं छुपा पा रही है। कर्नाटक की यही हार उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पार्टी के निकाय चुनाव में भारी पड़ गई। तभी तो पार्टी इस जीत का जश्न वहां नहीं मना पाई। कर्नाटक की हार से उत्तराखंड भाजपा के लिए भी आने वाले चुनाव में चुनौती खड़ी हो गई है।
हिमाचल व कर्नाटक हाथ से खिसकने पर देहरादून में भाजपा मुख्यालय का नजारा भी बदला है। इन राज्यों में भाजपा की हार की खबरें आते ही पार्टी मुख्यालय में जुटे कार्यकर्ता व नेता धीरे-धीरे खिसकने लगे थे और कुछ देर में वहां खामोशी पसर गई थी। हालांकि, भाजपा नेताओं ने इस सन्नाटे पर तर्क दिया कि ज्यादातर पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं के बाहर होने की वजह से पार्टी कार्यालय की चहल-पहल कम रही।
हिमाचल के बाद कर्नाटक में मिली हार सेे उत्तराखंड भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं का उत्साह ठंडा पड़ा है। अब लोकसभा चुनाव से पहले अगले कुछ महीनों में दो अहम चुनाव होने हैं, ऐसे में भाजपा के सामने चुनौतियां भी कम नहीं होंगी। कैबिनेट मंत्री रहे चंदनराम दास के निधन के बाद खाली हुई बागेश्वर विस सीट पर उपचुनाव होना है। वहीं, स्थानीय निकायों के चुनाव भी इसी वर्ष होने हैं। हिमाचल के बाद कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली जीत कांग्रेस को मनोवैज्ञानिक बढ़त दिलाने में काफी मददगार साबित होगी। अंदरुनी खेमेबाजी कांग्रेस में यदि हावी नहीं हुई तो जीत से उत्साहित कांग्रेसी आगामी चुनाव में प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के लिए चुनौती को कड़ा बना सकते हैं। इस हिसाब से भाजपा पर चुनावी तैयारियों को लेकर और अधिक दबाव बढ़ रहा है।
कर्नाटक में चुनावी हार के बाद अब भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भाजपा शासित राज्यों पर सांगठनिक और चुनावी तैयारियों को लेकर दबाव बना रहा है। उत्तराखंड भाजपा को भी इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं। सांगठनिक मजबूती के लिए कुछ नए प्रयोग भी किए जा सकते हैं। प्रदेश सरकार के स्तर पर भी विकास की रफ्तार बढ़ाने को लेकर तेजी दिख सकती है। कर्नाटक चुनाव के बाद अब प्रदेश सरकार में संगठन के नेताओं और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को दायित्व बांटने का निर्णय हो सकता है। कैबिनेट में भी विस्तार होना है, जिसकी बागेश्वर विस उपचुनाव के बाद होने की संभावना जताई जा रही है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पार्टी के खिलाफ आए नतीजों पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा कि वह जनता के आदेश को स्वीकार करते हैं।
पार्टी शानादार तरीके से लड़ी, लेकिन नतीजा हमारे पक्ष में नहीं आया। इसलिए हमें और अधिक मेहनत करने की जरूरत है। उन्होंने दावा किया कि यूपी निकाय चुनावों में मिली शानदार जीत उत्तराखंड में भी दोहराएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि जिस तरह सीएम योगी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के सभी 17 नगर निगमों में भाजपा ने एकतरफा जीत दर्ज की है, उसने उत्तराखंड भाजपा कार्यकर्ताओं के हौसलों को कई गुना बढ़ाया है। यूपी में हासिल यह रिकॉर्ड जीत, प्रदेश में होने वाले आगामी निकाय चुनावों में पार्टी की जीत के अंतर को और अधिक बढ़ाने का काम करेगी। यूपी निकाय चुनावों में भाजपा की प्रचंड लहर दर्शाती है कि पार्टी प्रदेश में नगर निगम के सभी महापौर समेत पार्षदों व अन्य निकायों की अधिकांश सीटों को रिकॉर्ड मतों से जीतने जा रही है।
कर्नाटक का चुनाव परिणाम कांग्रेस को मनोवैज्ञानिक बढ़त दिलाने में मददगार साबित होगा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि हिमाचल और कर्नाटक में जीत के पीछे कांग्रेस की एकजुटता बड़ा कारण रही है। यदि उत्तराखंड को जीतना है तो उत्तराखंड कांग्रेस को भी सत्तारूढ़ बीजेपी से मुकाबले में एकजुटता दिखाने की जरूरत है। कर्नाटक नतीजे के बाद स्वाभाविक है कि कांग्रेसी उत्तराखंड में भी उत्साहित हैं जिससे कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ा है। बीजेपी इन दो राज्यों में चुनाव हारने के बाद गंभीर होने का दावा कर रही है जिसके लिए भाजपा ने जनसंपर्क अभियान भी शुरू कर दिया है। भाजपा का कहना है कि उत्तराखंड में कांग्रेस को जनता नकार चुकी है।
लेकिन हम ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि कांग्रेस राज्य में फिलहाल भले ही आपसी गुटबाजी के चलते सरकार न बना पाई हो, परन्तु कांग्रेस के जनाधार में बढ़ोतरी अवश्य हुई है।
भाजपा का तर्क है कि ना तो कांग्रेस में कभी एकजुटता थी और ना कभी हो सकती है। भाजपा, कांग्रेस की एकजुटता को चुनौती भी नहीं मान रही है। वहीं, बागेश्वर विधानसभा की सीट पर होने जा रहे उपचुनाव और नगर निकाय के चुनाव की दोनों पार्टियों ने तैयारी तेज कर दी है। कांग्रेस का मानना है कि इस बार के निकाय चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस कड़ी टक्कर देने जा रही है।
हिमाचल के बाद कर्नाटक चुनाव में मिली जीत ने कांग्रेस को उत्साह से भर दिया है। लेकिन उत्तराखंड में 2017 और 2022 की हार को देखकर लगता है कि सत्तारूढ़ बीजेपी को कड़ी टक्कर देना इतना आसान भी नहीं होगा। अलबत्ता, इतना जरूर है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बागेश्वर का उपचुनाव और नगर निकाय का चुनाव बहुत हद तक स्थिति को साफ कर देगा। लोकसभा चुनाव 2024 में एक बार फिर उत्तराखंड की पांचों सीटें भाजपा की झोली में जाने का दावा करते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि इस बार चुनौती केवल अपने पिछले मत-प्रतिशत के रिकार्ड को तोड़ने की है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि 2014 और 2019 लोकसभा चुनावों में भाजपा ने प्रदेश की पांचों लोकसभा सीटें जीती थीं और 2024 में भी उन पर जीत को लेकर कोई संदेह नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उत्तराखंड से लगाव का जिक्र करते हुए धामी ने कहा कि उन्होंने प्रदेश में जितना काम किया है, उसकी वजह से प्रदेश की मातृ शक्ति, नौजवान, सैनिक, बड़े-बुजुर्ग सहित सभी लोग उन्हें अपने परिवार का सदस्य मानते हैं और इसलिए लोकसभा सीटें जीतने में हमें कोई कठिनाई नहीं होगी। लेकिन पिछली बार चुनाव में हमें मिले मत प्रतिशत के रिकार्ड को तोड़ना हमारे लिए चुनौती है।
हालांकि, भाजपा में भी कांग्रेस की तरह व्याप्त गुटबाजी भाजपा को लगातार कमजोर कर रही है। वहीं, आए दिन दूसरी पार्टियों के नेताओं को अलग अलग गुट के नेताओ द्वारा भाजपा ज्वाइन कराने से मूल भाजपाई स्वयं को असहज महसूस कर रहे हैं। जिसका असर दायित्व वितरण में भी देखने को मिलेगा, साथ ही हम यह भी कह सकते हंै कि बढ़ती महंगाई, बढ़ते अपराध, विकास की धीमी होती गति और हर आम आदमी के सामने खड़ी समस्याओं की चुनौती के सामने सरकार की उपलब्धि इतनी नहीं है, जो चुनाव जीतने का आधार बन जाये।