भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक ऐसा लंबा संग्राम जिसमें वीर सेनानियों जिन्होंने अपना सर्वस्व इस आजादी को पाने के लिए कुर्बान कर दिया l उस संघर्ष की पीड़ा, संघर्ष के अभियान, संघर्ष की पराकाष्ठा के प्रतिबिंब सेनानी वीर सावरकर रहे l उन कठिन परिस्थितियों में जहां पर उस कठिन सजा को संभवत सामान्य व्यक्ति 1 दिन भी कठिन होता, उन्होंने वर्षों उसमें अपने अस्तित्व को चिंतन को बचाए रखा lआजादी के बाद के समय में उनके संघर्ष और उनके चिंतन ने फिर एक बार भारतीय राष्ट्रवाद के उस सोच को मजबूत किया, जो राष्ट्र को भी मजबूत करती है ,हालांकि समय और परिस्थितियों ने उनके संघर्ष में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं l अट्ठारह सौ सत्तावन के आंदोलन को अपने लेखन द्वारा उन्होंने एक राष्ट्रीय पहचान दी बल्कि या भी प्रासंगिक होगा की वीर सावरकर के लेखन को चिंतन को और सोच को ब्रिटिश पार्लियामेंट के तत्कालीन सदस्य डिजरायली ने भी राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में परिभाषित किया है, आज के परिपेक्ष में चर्चाओं का विषय हो सकता है, पर अगर हम इतिहासिक दृष्टिकोण से तत्कालीन समय में और आजादी से पूर्व के समय में देखते हैं, तो यह एक बहुत बड़े गौरव की बात थी कि किसी भारतीय चिंतक ने उसको इतने महत्त्व के रूप में प्रस्तुत किया है l वह एक गौरवशाली, एक सकारात्मक सोच और ऊर्जा का प्रवाह देता था l आंदोलन काल मे जहां यंग इंडिया में 1921 में महात्मा गांधी ने उन्हें बहादुर देशभक्त भी कहा ,समय के साथ उन पर कई तरह के आरोप भी लगे हैं ,पर उन सब आरोपों से मुक्त होकर वह अपनी एक राष्ट्रीय छवि, राष्ट्र चिंतक की राष्ट्र के मजबूत प्रहरी की भूमिका में सदैव नेतृत्व करते नजर आए हैं l आज का दिन उसी राष्ट्र चिंतन के लि ए के लिए एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी l जब हम उनके दिखाएं मार्गो मार्ग पर आगे बढ़कर विश्व की एक बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित कर पाएं।