‘उत्तरी पर्वतीय क्षेत्रों हेतु अगेती परिपक्वता एवं अधिक उपज वाली उच्च प्रोविटामिन ए युक्त नवीन मक्का प्रजाति का विकास‘‘

विटामिन ए, बेहतर दृष्टि, रोग प्रतिरोधी क्षमता व शरीर में विभिन्न उपापचयी क्रियाओं हेतु आवश्यक है। इसकी कमी से रतौंधी के साथ ही पूर्ण दृष्टिहीनता भी हो सकती है। प्रोविटामिन-ए मक्का (जिसमें सीआरटीआरबी1 जीन उपस्थित होता है) में सामान्य पीले मक्का की तुलना में 3-4 गुना अधिक प्रोविटामिन ए होता है, जिस कारण इसे प्रोविटामिन ए कुपोषण के एक टिकाऊ समाधान के रूप में देखा जाता है। भाकृअनुप-विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा द्वारा मार्कर-असिस्टेड बैकक्रास ब्रीडिंग व हाइब्रिड ब्रीडिंग उच्च प्रोविटामिन ए युक्त प्रजाति वी.एल. वीटा (एफ.पी.वी.एच. 1) विकसित की गयी है जिसके विशेष गुण निम्न प्रकार है।

वीएल वीटा (एफपीवीएच1)ः इस संकर प्रजाति का विकास वीबीएल 101 तथा वीबीएल 102 के संयोजन से किया गया है, जोकि सामान्य मक्का जनकों वी400 तथा वी412 के मार्कर-एसिस्टेड सलैक्षन द्वारा परिवर्तित प्रोविटामिन ए-युक्त संस्करण है। यह एक अगेती प्रजाति है (95-100 दिन परिपक्वता अवधि) जिसमें प्रोविटामिन ए की मात्रा 7.48 माईक्रोग्राम/ग्राम है। अखिल भारतीय समन्वित परिक्षणों में उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र में इसकी औसत उपज 7,167 किग्रा/हेक्टेअर थी तथा इसने तुलनीय किस्म एपीक्यूएच 9 (5,125 किग्रा/हेक्टेअर) के सापेक्ष 39.8 प्रतिषत की उपज श्रेश्ठता प्रदर्षित की। इस प्रजाति ने टर्सिकम पर्ण झुलसा के लिए मध्यम प्रतिरोधकता भी प्रदर्षित की। वीएल वीटा की 12-14 अप्रैल 2023 के दौरान जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर में आयोजित भाकृअनुप-अखिल भारतीय समन्वित मक्का शोध परियोजना की 66वीं वार्षिक कार्यशाला में उत्तर-पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्रों (लद्दाख, जम्मू व कश्मीर, हिमाचल प्रदेश व उत्तराखण्ड) व उत्तर-पूर्वी पर्वतीय क्षेत्रों (असम, अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, सिक्किम व त्रिपुरा) में संस्तुत करने हेतु पहचान की गयी।
यह नवीन उच्च प्रोविटामिन ए युक्त प्रजाति सामान्य रूप से पूरे देश में एवं विशेष रूप से उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र में जैव सुदृढ़ीकृत मक्का प्रजातियों की विविधता को बढ़ायेगी तथा साथ ही कृषकांे को प्रजातियों के चुनाव हेतु अधिक विकल्प प्रदान करेगी। इसके अतिरिक्त इसके उच्च उपजशील जनक इस प्रजाति का बीज कृषकांे को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराना सुनिश्चित करेंगे जिससे देश के पर्वतीय क्षेत्रों में इसके व्यापक विस्तार मे सहायता मिलेगी।

उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों, प्रायद्वीपीय क्षेत्रों तथा मध्य पष्चिमी क्षेत्रो हेतु अगेती परिपक्वता एवं उच्च उत्पादकता वाली नवीन स्वीटकॉर्न संकर प्रजाति का विकास

स्वीटकॉर्न, मक्का का एक प्रकार है जिसमें मक्का के भ्रूणपोष में शर्करा संश्लेषण पाथवे में एक या अधिक रिसैसिव एलील्स की उपस्थिति के कारण शर्करा की मात्रा अधिक होती है। शर्करा की अधिक मात्रा के कारण स्वीटकॉर्न को ताजा, डिब्बाबंद व शीत-संरक्षित रूपों में उपभोग हेतु वृहद स्तर पर प्रयोग किया जाता है। इसके मानवीय उपभोग व खाद्य प्रसंस्करण उद्योग हेतु खपत में वृद्धि के कारण इसकी माँग तेजी से बढ़ रही है। भाकृअनुप-विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा बैकक्रास ब्रीडिंग व हाइब्रिड ब्रीडिंग का प्रयोग कर स्वीटकॉर्न प्रजाति वी.एल. मधुरिमा (एफ.एस.सी.एच. 144) का विकास किया गया है जिसका विवरण निम्न प्रकार है।

वी.एल. मधुरिमा (एफ.एस.सी.एच. 144)
इस प्रजाति का विकास सामान्य मक्का जनकांे वी400 तथा वी407 के स्वीटकॉर्न संस्करणों वीएसएल 400 एवं वीएसएल 407 के संयोजन द्वारा किया गया है। यह प्रजाति 95-100 दिन में तैयार होती है तथा इसकी औसत उपज (छिल्कारहित हरे भुट्टे) 10,513 किग्रा/हेक्टेअर थी जोकि स्वीटकॉर्न की तुलनीय प्रजाति मिस्टी (9,556 किग्रा/हेक्टेअर) से 10.1 प्रतिशत अधिक रही। इसका औसत टीएसएस 15 प्रतिशत है एवं यह प्रमुख बीमारियों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी किस्म है। इस स्वीटकॉर्न प्रजाति की 12-14 अप्रैल 2023 के दौरान जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर में आयोजित भाकृअनुप-अखिल भारतीय समन्वित मक्का शोध परियोजना की 66वीं वार्षिक कार्यशाला में उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्रों (पूर्वी उत्तरप्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, ओडिशा), प्रायद्वीपीय क्षेत्रों (महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु) व केन्द्रीय-पश्चिमी क्षेत्रों (गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़) में संस्तुति हेतु पहचान की गयी।
यह नवीन संकर स्वीटकॉर्न प्रजाति सामान्य रूप से पूरे देश में व विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी मैदानी, प्रायद्वीपीय व केन्द्रीय-पश्चिमी क्षेत्रों में स्वीटकॉर्न प्रजातीय विविधता को बढ़ायेगी व इस प्रकार कृषकों को स्वीटकॉर्न प्रजातियों के चुनाव हेतु अधिक विकल्प प्रदान करेगी। इसके अतिरिक्त इसके उच्च उपजशील जनक इस प्रजाति का बीज कृषकों को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराना सुनिश्चित करेंगे जिससे देश के विभिन्न क्षेत्रों में इसके व्यापक विस्तार में सहायता मिलेगी।

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