भीड़, जाम और आपाधापी!

शनिवार, इतवार को घूमने मत आइए।

सुशील उपाध्याय।
इन दिनों यदि आप हरिद्वार-ऋषिकेश या देहरादून- मसूरी घूमने आना चाह रहे हैं तो अपने कार्यक्रम पर थोड़ा पुनर्विचार कर दीजिए। वजह यह है कि इन सभी स्थानों पर अप्रैल से जून के आखिर तक इस कदर भीड़ है कि उसकी कल्पना यहां से बाहर रहकर नहीं की जा सकती।इस अप्रत्याशित भीड़ के कारण इन स्थानों पर मौजूद सुविधाएं और बुनियादी ढांचा हर साल ही चरमराने लगता है। और यदि आपने आने के बारे में तय कर ही लिया है तो अपने शेड्यूल में शनिवार और रविवार के दिनों को शामिल करने से बचियेगा। अप्रैल महीने में अब तक दो बार ऐसा संयोग हुआ है कि शनिवार, रविवार के साथ शुक्रवार का भी सरकारी अवकाश हो गया।
इस तीन-तीन दिन के अवकाश के दौरान पर्यटकों की आमद ने व्यापारियों- कारोबारियों को तो खुश किया, लेकिन पर्यटकों के सामने कई तरह की समस्याएं पैदा हो गई। वजह स्पष्ट है कि चार लाख की आबादी का हरिद्वार शहर, दो लाख की आबादी का ऋषिकेश और एक लाख से भी कम आबादी का मसूरी ऐसी स्थिति में नहीं है कि ये हर दिन अपनी आबादी के बराबर पर्यटकों को समेट सकें। इस महीने एक बार फिर तीन दिन का अवकाश (जुमा अलविदा, ईद और रविवार) एक साथ आ रहा है इसलिए एक बार फिर पर्यटकों की भीड़ बढ़ेगी। इसके बाद चारधाम यात्रा सीजन भीड़ को और बढ़ाएगा।
वर्ष 2020 में हरिद्वार-देहरादून फोरलेन राजमार्ग के शुरू होने के बाद यह उम्मीद जताई गई थी कि अब हरिद्वार शहर और हर की पौड़ी के आसपास के इलाके में जाम की समस्या पैदा नहीं होगी, लेकिन इस सीजन में यह उम्मीद खत्म हो गई। हर शनिवार-रविवार को फोरलेन हाईवे पर घंटों लंबा जाम लग रहा है। जाम को लेकर इससे भी खराब स्थिति देहरादून से मसूरी के बीच में है। पहाड़ी सड़क होने के कारण इसकी चौड़ाई सीमित है इससे भी बड़ी चुनौती यह कि मसूरी में पार्किंग की सुविधा लिमिटेड है। हर सप्ताह लोग घंटों तक जाम में फंस रहे हैं। स्थानीय व्यवस्था को दोष देना तो आसान है, लेकिन सच यह है कि प्रशासन और पुलिस असंख्य भीड़ के लिए रातो-रात सुविधाएं पैदा नहीं कर सकते।
और बात केवल ट्रैफिक जाम या पार्किंग सुविधा की नहीं है, बल्कि इन स्थानों पर उपलब्ध होटलों और आवास की सुविधाओं की भी है। हालांकि, हरिद्वार और ऋषिकेश जैसी धार्मिक जगहों पर बड़ी संख्या में धर्मशालाएं आदि मौजूद हैं। होटलों की संख्या भी लगातार बढ़ी है, लेकिन वह इतनी नहीं है कि लाखों लोगों को एक साथ सुविधा उपलब्ध हो जाए। भीड़ बढ़ने का परिणाम यह है कि जनवरी-फरवरी में जिन होटलों की दरें एक- डेढ़ हजार रुपये थीं, वह अब तीन हजार प्रति कमरा पहुंच गई हैं। जब होटलों के कमरों का किराया बढ़ा तो खाने-पीने के सामान की दरें भी वैसे ही बढ़ गई।
मैं स्थानीय निवासी होने के चलते यह साफ-साफ बताने की स्थिति में हूं कि जनवरी-फरवरी की तुलना में सामान्य होटलों और ढाबों में खाने के दाम लगभग डेढ़ गुना हो गए हैं। यही स्थिति लोकल ट्रैफिक की दरों की भी है। एक महीने पहले हरिद्वार शहर में एक से दूसरे हिस्से में जाने के लिए जो ई-रिक्शा 100 रुपए में उपलब्ध हो रही थी, अब वह दोगुनी दरों पर भी मिल जाए तो यह खुशकिस्मती की बात होगी। लोकल के लिए टैक्सी ढूंढना और भी कठिन काम हो गया है। हरिद्वार और ऋषिकेश में ओला या उबर जैसी सर्विस उपलब्ध नहीं है इसलिए स्थानीय टैक्सी संचालकों के ही भरोसे रहना होता है। परिणामतः जो टैक्सी लोकल के लिए 1200 में मिल रही थी, अब उसके 2000 भी चुकाने पड़ सकते हैं। यूं तो सरकार ने टैक्सियों और अन्य सुविधाओं के रेट तय किए हैं, लेकिन सुविधा चाहने वालों की संख्या इतनी ज्यादा है कि उपलब्ध कराने वाले जो भी रेट मांग रहे हैं, वह देना मजबूरी हो जाती है।
धार्मिक शहरों के चरित्र की एक और खूबी होती है कि वे पर्यटकों को निचोड़ लेने की दृष्टि के साथ काम करते हैं। यदि आप देश के किसी बड़े शहर से हरिद्वार या ऋषिकेश आ रहे हैं तो अपने शहर में फलों-मिठाइयों के दाम देख लीजिए और इन शहरों में पर्यटकों को बेचे जाने वाले फलों-मिठाइयों और खाने-पीने की दूसरी चीजों के दाम देखिए तो साफ-साफ डेढ़ से दोगुना का अंतर दिखाई देगा। यहां इन सब चीजों को बेचने वालों के साथ किसी तरह की बारगेनिंग संभव नहीं। कुल मिलाकर परिणाम यह निकलता है कि आप अपने परिवार और बच्चों के साथ रिलैक्स होने के लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, मसूरी आए थे, लेकिन जब लौटे तो कई सारी परेशानियों का ब्यौरा साथ लेकर गए।
अब सवाल ये है कि इस स्थिति से कैसे बचा जा सकता है ? इसका सबसे बेहतर तरीका तो यह है आप अपने यात्रा कार्यक्रम में शनिवार-रविवार को शामिल मत कीजिए। ऐसा करके आप काफी हद तक परेशानियों से बच सकेंगे। दूसरी बात, यदि संभव हो अपनी यात्रा को अप्रैल-मई-जून की बजाय सितंबर-अक्टूबर-नवंबर के महीने में स्थानांतरित कर दीजिए। इन सब जगहों पर सितंबर से नवंबर तक का मौसम बहुत बढ़िया रहता है। तब पर्यटकों की संख्या भी कम होती है। चारधाम यात्रा सीजन लगभग समाप्त हो चुका होता है और वे सारी सुविधाए, जिनके लिए अब मारामारी मची हुई है, उनकी मांग करने वालों की संख्या घट चुकी होती है। ऐसे समय में आपकी यात्रा यादगार होगी। इन जगहों पर ऐसा कोई स्थान या ऐसी कोई सुविधा नहीं है जो केवल अप्रैल से जून तक ही उपलब्ध रहती हो और फिर सितंबर से नवंबर तक बंद हो जाती हो।
ये सारे शहर साल के सभी दिनों में पूरी तरह पर्यटकों के लिए खुले रहते हैं। इनमें सभी धार्मिक स्थलों पर नियमपूर्वक पूजा आदि होती रहती है। इस अवधि में गंगा स्नान से लेकर मसूरी के मौसम तक का मजा लेने की पूरी संभावनाएं ज्यों की त्यों रहती हैं। यात्रा समय के बदलाव से केवल आपको ही लाभ नहीं होगा, बल्कि आप टूरिज्म इंडस्ट्री को भी राहत देंगे। इस वक्त होता यह है कि कम सुविधाओं को ज्यादा लोग पाना चाहते हैं, जबकि कुछ महीनों के बाद इन सारी सुविधाओं को चाहने वालों की संख्या ना के बराबर रह जाती है। यदि ऐसे में पर्यटक को मौजूदा तीन महीनों की नवंबर तक के छह महीनों के बीच बांट दिया जाए तो हर व्यक्ति राहत महसूस करेगा।
ऐसा नहीं है कि भीड़ से पैदा होने वाली परेशानी केवल पर्यटकों को ही झेलनी पड़ती है, बल्कि इसका कुछ ना कुछ हिस्सा स्थानीय लोगों को भी भुगतना होता है। सामान्य सुविधाओं के दाम अपने चरम पर पहुंच जाते हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में दिक्कतें बढ़ जाती हैं। शहर में आने वाले लाखों पर्यटकों से पैदा होने वाली गंदगी और बाकी चीजों से निपटने का मैकेनिज्म कमजोर दिखने लगता है। आसपास छोटी-छोटी बातों को लेकर विवादों का माहौल बने लगता है। बाहर के लोग सुकून की तलाश में आते हैं और स्थानीय लोगों को लगता है कि उनका सुकून प्रभावित हो रहा है।

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