जालौन। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले में शक्तिपीठ मां शारदा के मंदिर के बारे में मान्यता है कि वीर आल्हा ने अपनी सांग (कवच) को मां शारदा के चरणों में अर्पित कर उसकी नोक को टेढ़ा कर दिया था जिसे आज तक कोई सीधा नहीं कर सका है। जिले में एट क्षेत्र का बैरागढ़ धाम अकोढ़ी में स्थित माता शारदा शक्तिपीठ नवरात्र के अवसर पर लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। पृथ्वीराज चौहान एवं आल्हा और उदल के बीच आखिरी लड़ाई यहीं हुई थी।
माना जाता है कि आल्हा और उदल को मां शारदा का आशीर्वाद प्राप्त था जिसके चलते दिल्ली की सेना को पीछे हटना पड़ा था। युद्ध के बाद मां शारदा के आदेश अनुसार आल्हा ने अपनी सांग को वही मां के चरणों में चढ़ा करके उसकी नोक को टेढ़ा कर दिया था जिसे आज तक किसी ने भी सीधा नहीं कर पाया है। मंदिर परिसर में ऐसे ही कई और अन्य ऐतिहासिक स्थान है जो दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान और आल्हा ऊदल की युद्ध की सत्यता को स्पष्ट करते हैं।
यह भी मान्यता है कि आल्हा ने इसी मंदिर में वैराग्य लिया था जिससे इस सिद्ध पीठ का नाम बैरागढ़ धाम पड़ गया। मंदिर में आल्हा की सांग भी गड़ी हुई है जो बहुत ही भारी-भरकम है। इतिहास के जानकारों के मुताबिक 11वीं शताब्दी में दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान का आल्हा और उदल से युद्ध हुआ था। तब उस समय आल्हा ने अपनी विजय के लिए मां से आग्रह कर देवी की स्थापना की थी।
वैसे माता शारदा का स्थान त्रिकूट पर्वत पर है जो मध्य प्रदेश में स्थित है। बताते हैं कि बैरागढ़ में देवी की स्थापना कराने के बाद आल्हा यहां पूजा करते थे और यहीं से उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया था। मंदिर के पीछे एक कुंड बना हुआ है। मान्यता है कि इस कुंड में स्रान करने से त्वचा संबंधी रोग दूर हो जाते हैं।
जिसके चलते बड़ी संख्या में भक्त यहां स्रान आदि करने को भी पहुंचते हैं। जहां बड़ी दूर दूर से लोग यहां पर आते हैं और यह स्थान बहुत ही रमणीक बताया गया है। नवरात्र में दशमी के दिन यहां भव्य मेले का आयोजन भी होता है। बताया जाता है कि देवी शारदा की प्रतिमा दिन में कई बार रूप बदलती है।
मंदिर में भक्त जवारे लेकर देवी के चरणों में समर्पित करते हैं। मंदिर की प्राचीनता और सिद्ध पीठ होने के कारण मां शारदा के दर्शन करने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं। जालौन के कस्बा एट तक ट्रेन और बस से पहुंचा जा सकता है। जिसके बाद एट से टैक्सी ही मन्दिर तक जाने का साधन है। जहां पर पक्की सड़क है, आसानी से मन्दिर तक पहुंचा जा सकता हैं। एट कस्बे से मन्दिर तक की दूरी लगभग सात किलोमीटर है। और निजी वाहन से भी आसानी से मन्दिर तक पहुंचा जा सकता है।