नई दिल्ली। भारत में 60 साल या इससे अधिक उम्र के एक करोड़ से अधिक बुजुर्गों को डिमेंशिया हो सकता है और यह दर तुलनात्मक रूप से अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों के बराबर हो सकती है। यह दावा अपने तरह के पहले अध्ययन में किया गया है।
डिमेंशिया से व्यक्ति की मानसिक स्थिति प्रभावित होती है जैसे स्मृतिलोप, सोचने, विचार करने और फैसले लेने की क्षमता को नुकसान होना।
इससे व्यक्ति दैनिक कार्यों को भी करने में अक्षम हो जाता है। जर्नल नेचर पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी कलेक्शन में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2050 तक भारत की कुल आबादी में 60 साल से अधिक उम्र वालों की हिस्सेदारी 19.1 प्रतिशत होगी।
अध्ययन में कहा गया है कि इस बुजुर्ग होती आबादी में नाटकीय तरीके से डिमेंशिया के मामले बढेंगे, जिसे देश में गंभीरता से नहीं लिया जाता है। जर्नल न्यूरोएपिडिमियोलॉजी में प्रकाशित नवीनतम अनुसंधान में 31,477 बुजुर्गों के आंकड़ों का विश्लेषण करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का इस्तेमाल किया गया है।
अनुसंधानकर्ताओं की अंतरराष्ट्रीय टीम ने पाया कि भारत के बुजुर्गों में डिमेंशिया की दर 8.44 प्रतिशत हो सकती है जो देश के करीब 1.008 करोड़ बुजुर्गों के बराबर है। अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि यह दर पश्चिमी देशों के लगभग बराबर है क्योंकि अमेरिका में डिमेंशिया की दर 8.8 प्रतिशत है जबकि ब्रिटेन में नौ प्रतिशत और जर्मनी-फ्रांस में 8.5 से 9 प्रतिशत के बीच है।
ब्रिटेन स्थित सरे विश्वविद्यालय में स्वास्थ्य आंकड़ा विज्ञान के प्रवक्ता और अनुसंधान पत्र के सहलेखक हाओमियाओ जिन ने कहा, ‘‘हमारा अनुसंधान भारत का पहला और राष्ट्रव्यापी प्रतिनिधित्व वाला है जिसमें देश के 30 हजार से अधिक बुजुर्गों ने हिस्सा लिया है।’’
जिन ने कहा, ‘‘एआई के पास इस तरह की जटिल और विशाल आंकड़ों की व्याख्या करने की विशेष ताकत है। हमने अपने अनुंसधान में पाया कि पूर्व में स्थानीय नमूनों के आधार पर किए गए आकलन के मुकाबले डिमेंशिया की दर अधिक हो सकती है।