चाणक्य मंत्र की खबर का असर: 3351 मतों से जीती दीदी  

किसे मिलेगी कुर्सी? प्रतिमा या मानिक?

त्रिपुरा की डायनेमिक लेडी, सांसद और केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक धनपुर विधानसभा सीट से जीत गई हैं। अब तक आए परिणामों में सबसे ज्यादा वोटों के अंतर यानी कुल 3351 से वो जीती हैं। वहीं, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री मानिक साहा भी अपना चुनाव जीत गए हैं।

ऐसे में भाजपा आलाकमान के सामने इस समय बड़ी चुनौती यही रहेगी कि किस मुख्यमंत्री बनाया जाए।  उधर, तिपरा मोथा को मिल रही बढ़त भी भाजपा के खाते में जाते दिख रही है। किंगमेकर के तौर पर भले भाजपा को अब उनकी जरूरत न पड़े लेकिन यह नवोदित पार्टी उसके लिए इन्श्योरेंस पाॅलिसी की तरह जरूर बन गई है।
शुरूआत से अटकलें लगाई जा रही थीं कि सांसद और केंद्रीय मंत्री रहते हुए भी प्रतिमा भौमिक को केंद्र ने चुनाव लड़ने को टिकट क्यों दिया होगा। क्योंकि उनका कद विधायक से काफी उंचा है। जानकार बताते हैं कि दीदी की शुरूआत से ही अपने क्षेत्र में ही रहने का मन था लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको केंद्र में बुला लिया।

लेकिन फिर अनुरोध करने पर उन्हें धनपुर विधानसभा सीट से टिकट दे दिया। इस सीट में मिली जीत बताती है कि केंद्र और कई राज्यों की जिम्मेदारियों के बीच भी उनका जनाधार घटा नहीं है।
मालूम हो कि प्रतिमा भौमिक का कद त्रिपुरा में वही है जो बंगाल में ममता बनर्जी का। वो काफी शिक्षित होने के साथ ही जमीनी स्तर से जुड़ी जनाधार वाली नेता हैं और युवाओं के बीच भी खासी लोकप्रिय है। पूर्व में भी सीपीएम के मुख्यमंत्री माणिक सरकार को भी वह चुनाव में करारी शिकस्त दे चुकी हैं।

यानी साल 2018 में ही वो मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार थीं लेकिन भाजपा हाईकमान ने त्रिपुरा की राजनीति के लिए नए और कांग्रेस से भाजपा में आए बिप्लब देव पर भरोसा जताते हुए सत्ता की बागडोर सौंप दी। खैर, इसके बाद उन्हें केंद्र में स्थान मिलना तय था। लेकिन यह दूरी भी उन्होंने लोकसभा चुनाव जीतकर तय की। वहां केंद्रीय सामाजिक न्याय और सहकारिता राज्य मंत्री बनाई गईं।

इस बीच पार्टी में बढ़ते अंतकर्लह को दूर करने और सांगठनिक स्तर पर बढ़ते गतिरोध को थामने के लिए वो लगातार दिल्ली से त्रिपुरा आती रहीं और इसी बीच मणिपुर विधानसभा चुनाव की भी जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई। जिसमें वे खरी भी उतरीं। इसके अलावा बीते 16 जनवरी 2020 को हुए ब्रू-रियांग ऐतिहासिक समझौते के बाद करीब 35 हजार विस्थापित के पुनर्वास का जटिल कार्य भी उन्हीं के जिम्मे है।

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