सुशील उपाध्याय ।
जब से यह खबर आई है कि ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी द्वारा हिंदी और भारतीय भाषाओं के 800 शब्दों के उच्चारण दिशा-निर्देशों और इनके ऑडियो उपलब्ध कराए गए हैं, तब से हिंदी जगत में इसे एक उपलब्धि की तरह देखा और प्रचारित किया जा रहा है। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी की तरफ से बताया गया कि इन शब्दों के उच्चारण दिशा-निर्देशों और ऑडियो जारी किए जाने के बाद अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों के भाषाई गैप को भरने में मदद मिलेगी। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के इस प्रयास की उपादेयता पर संदेह करने की कोई वजह नहीं है, लेकिन यहां एक बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के 800 या इससे भी ज्यादा शब्दों को सम्मिलित कर लिए जाने से अंग्रेजी समृद्ध हुई है न कि हिंदी और भारतीय भाषाएं। इस पूरी प्रक्रिया को उल्टे ढंग से देखने की आवश्यकता है। यदि हिंदी और भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी और दुनिया की अन्य भाषाओं के ऐसे पारिभाषिक शब्द आ रहे हैं जो पहले से हमारे पास उपलब्ध नहीं थे तो इससे हिंदी और भारतीय भाषाएं समृद्ध होंगी।
शब्दों के आवागमन की यह प्रक्रिया दो स्तरों पर हो सकती है। पहली, जैसे ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी, मरियम वेबस्टर डिक्शनरी या कॉलिंग्स डिक्शनरी द्वारा हर साल अपने यहां दुनिया भर की भाषाओं के चर्चित शब्दों को सम्मिलित किया जाता है और वर्ड ऑफ द ईयर का भी ऐलान किया जाता है। दूसरा तरीका यह हो सकता है कि सामान्य तौर पर चर्चित होने वाले शब्दों को हिंदी एवं भारतीय भाषाएं बोलने वाले लोग अपने दैनिक व्यवहार में लाने लगें। शब्दों के आगमन की दूसरी प्रक्रिया दुनिया भर की उन सभी भाषाओं में घटित होती है जो अन्य भाषाओं के संपर्क में आती हैं या लगातार संपर्क में रहती हैं। चूंकि हिंदी और प्रमुख भारतीय भाषाओं का संपर्क दुनिया भर की भाषाओं के साथ और विशेष रूप से अंग्रेजी तथा यूरोपीय भाषाओं के साथ निरंतर बना हुआ है इसलिए वहां से शब्दों की आमद भी स्वाभाविक गति से होती है।
वर्ष 2022 में दुनिया की प्रमुख डिक्शनरियों ने जिन शब्दों को ‘वर्ड ऑफ द ईयर‘ के रूप में चुना है उनमें से ज्यादातर शब्द पहले से ही हिंदी और भारतीय भाषाओं में प्रयोग में लाए जा रहे थे। उदाहरण के लिए ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द ईयर 2022 के लिए तीन शब्दों को सबसे ज्यादा वोट मिले। ये तीन शब्द हैं- गोब्लिन मोड, मेटावर्स, हैशटैग आईस्टैंडविद। ‘गोब्लिन मोड‘ शब्द का हिंदी में सामान्य अर्थ होगा- आत्ममुग्ध और लालची व्यक्ति। दुनिया में कोरोना वायरस और महामारी के फैलाव के बाद इस शब्द का प्रयोग काफी तेजी से बढ़ा। लॉकडाउन से उपजी अनिश्चितता, महामारी के फैलाव और भय के माहौल के बीच दुनिया में गोब्लिन मोड वाले लोगों की संख्या भी आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती हुई दिखी। इसीलिए ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने इसे वर्ड ऑफ द ईयर घोषित किया, लेकिन इसके साथ ही मरियम वेबस्टर डिक्शनरी ने ‘गैसलाइटिंग‘ शब्द को वर्ड ऑफ द ईयर घोषित किया। व्यापक संदर्भ में देखें तो गैसलाइटिंग शब्द एक ऐसी क्रिया है जहां कोई चालाक और कपटी व्यक्ति अथवा धूर्त लोगों का समूह अपने से कमजोर लोगों को संबल देने का भरोसा देकर उन्हें ठगता रहता है। वस्तुतः गैसलाइटर वे लोग हैं जो केवल अपना हित साधते हैं, भले ही इससे दूसरों को कितना भी नुकसान क्यों ना हो जाए।
कॉलिंग्स डिक्शनरी ने इस वर्ष के लिए ‘पर्माक्राइसिस’ को ‘वल्र्ड ऑफ द ईयर’ के रूप में चुना है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है- परमानेंट और क्राइसिस यानी ऐसा दौर जिसमें लंबे समय तक असुरक्षा और अस्थिरता का भय-भाव मौजूद रहता है। इस शब्द को कोरोना के संदर्भ में भी समझा जा सकता है और हाल के रूस यूक्रेन युद्ध के क्रम में भी इसके अर्थ को महसूस किया जा सकता है। इन शब्दों के अलावा बीते साल में कुछ और ऐसे शब्दों का चलन तेजी से बढ़ा है जो इससे पहले यदा-कदा ही सुनाई देते थे। इनमें कुछ शब्द टेक्नोलॉजी से जुड़े हैं, कुछ मनोविज्ञान का हिस्सा हैं, कुछ कारोबार से आए हैं और कुछ मानवीय रिश्तों की भाव भूमि पर खड़े हैं। ऐसा ही एक शब्द है- नोमोफोबिया यानी जब कोई व्यक्ति अपने फोन के बिना ना रह पाए अथवा इस बात से डर जाए कि भविष्य में वह फोन चलाने में असमर्थ हो जाएगा तो इस अनुभूति को नोमोफोबिया कहा जाएगा।
बीते सालों में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रयोग के बाद अभिभावकों का एक ऐसा समूह वजूद में आया है जो सोशल मीडिया पर अपने बच्चों के बारे में लगातार जानकारियां शेयर करते रहते हैं। इनके लिए एक नया शब्द गढ़ा गया है- शेरेंट्स। यह शेयर और पेरेंट्स से मिलकर बना है। हिंदी में फैन/फैंस शब्द पहले से प्रचलन में है। ऐसा व्यक्ति जो किसी विशेष हस्ती का प्रशंसक है या उसे पसंद करता है, उसे फैन कहा जाता है। अब इसमें एक और भारी शब्द आया है जो स्टॉकर और फैन शब्दों से मिलकर बना है। इसे स्टैन कहा गया है यानी जुनून की हद तक किसी का प्रशंसक होना। दक्षिण भारत में फिल्मी नायकों के जुनूनी फैन आत्महत्या तक कर लेते हैं!
अति प्रतिस्पर्धा के दौर में लोगों के बीच में एक ऐसा भाव लगातार बढ़ रहा है जिसमें वे चाहते हैं कि जो चीजें उन्हें पता है, दूसरे लोगों को उसके बारे में ज्यादा पता ना हो। इसके लिए लो-की शब्द का प्रयोग देखने में मिल रहा है। मनुष्यों के रिश्तो में हमेशा से ही जटिलताएं रही हैं, लेकिन कई बार इन जटिलताओं की अभिव्यक्ति के लिए सही शब्द मिलना मुश्किल होता है, लेकिन अब इन जटिल भावनाओं के लिए नए शब्द गढ़े और प्रयोग किए जा रहे हैं। मसलन, किन्हीं दो लोगों के बीच के प्यार के रिश्ते के लिए रिलेशनशिप सामान्य प्रचलित शब्द है, लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जहां प्यार तो है, लेकिन दोनों में से कोई भी पक्ष उसे परिभाषित नहीं करना चाहता, इसके लिए ‘सिचुएशनशिप’ नया शब्द है। इस सिचुएशनशिप के साथ कुछ अन्य शब्द भी प्रचलन में आ गए हैं। जब किसी रिश्ते में कोई एक व्यक्ति मैसेज, बातचीत या मिलना जुलना बंद करने लगे तो इसे ‘बैंचिंग’ नाम दिया गया है। इससे पहले यह शब्द खेल जगत में प्रचलित था। अन्य संदर्भ में ‘घोस्टिंग’ एक प्रचलित शब्द है, लेकिन प्रेम के संदर्भ में जब कोई एक व्यक्ति/पार्टनर अचानक गायब हो जाता है और फिर कोई संपर्क नहीं करता तो उसे घोस्टिंग कहा जाता है और ‘पिंक फ्लैग‘ वह है जो रिश्ते में छोटी-मोटी गलतियों को अनावश्यक रूप से बड़ा बना देता है। पुराने लोगों को इन शब्दों में भले ही कुछ नयापन लगे अथवा ये शब्द अजनबी दिखाई दें, लेकिन ये नई पीढ़ी की जबान पर चढ़े हुए हैं।
पिछले दिनों गूगल ने वर्ष 2022 में भारत में सर्वाधिक सर्च किए गए शब्दों का विवरण जारी किया है। इनमें पहला शब्द ‘आईपीएल‘ यानी इंडियन प्रीमियर लीग रहा। दूसरा स्थान भारत सरकार के ‘कोविन‘ प्लेटफार्म शब्द को मिला है। तीसरे शब्द के रूप में ‘फीफा वर्ल्ड कप’ हो तलाशा गया। इसके बाद ‘एशिया कप’ शब्द ने यूजर्स का ध्यान खींचा। सर्च करने की इस प्रक्रिया में पांचवा स्थान ‘ब्रह्मास्त्र’ फिल्म को मिला। चूंकि ‘पठान’ फिल्म 2023 में रिलीज हुई यदि यह फिल्म 2022 में रिलीज होती तो यकीनन पठान शब्द उन शब्दों में शामिल होता जिन्हें सर्वाधिक सर्च किया गया है। इन 5 शब्दों को देखें तो स्पष्ट है कि तीन शब्द खेल से, एक शब्द फिल्म से और एक शब्द हेल्थ से जुड़ा हुआ है। ये शब्द नई पीढ़ी की प्राथमिकताओं को भी प्रदर्शित करते हैं।
इस वर्ष के अन्य शब्दों में ‘पार्टीगेट‘ जोकि इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ जुड़ा हुआ है, ने भी लोगों का ध्यान खींचा। इसी तरह कुछ साल पहले जब इंग्लैंड यूरोपीय यूनियन से अलग हुआ था तब ब्रेक्जिट शब्द चर्चा में आया था। इंग्लैंड में ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस शब्द का प्रयोग दोबारा बढ़ गया क्योंकि ऋषि सुनक ब्रेक्जिट का समर्थन करने वाले लोगों में शामिल थे। वर्ष 2022 में वार्मबैक शब्द दुनिया की सभी भाषाओं में प्रयुक्त होता रहा है और अब भारतीय भाषाओं का हिस्सा भी बन गया है। यह शब्द जलवायु परिवर्तन और उससे पैदा होने वाले ऊर्जा संकट के साथ जुड़ा हुआ है। वस्तुतः हिंदी एवं भारतीय भाषाओं में जो शब्द अन्य भाषाओं से आ रहे हैं, वे मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों, सामाजिक परिवर्तनों, आर्थिक और स्वास्थ्यगत चुनौतियां को भी सामने रख रहे हैं। शब्दों के आवागमन का यह सिलसिला ऐसा है जो टेक्नोलॉजी के प्रसार के साथ-साथ बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रकारांतर से अब ऐसा कोई तरीका या मैकेनिज्म संभव नहीं होगा जिसके जरिए विदेशी शब्दों को अपनी भाषाओं में आने से रोका जा सके। इसका आसान तरीका यही है कि दूसरी भाषाओं के शब्दों को स्वीकार करने के साथ-साथ अपनी भाषाओं के शब्दों का प्रचलन इस तरह से विस्तारित किया जाए कि दूसरी भाषाएं भी उन्हें सहजता के साथ स्वीकार कर सकें।