सत्ता की चाबी आदिवासियों के पास!

  • विधानसभा चुनाव से भाजपा-कांग्रेस का दो करोड़ आदिवासियों पर विशेष फोकस
  • आदिवासी अंचलों के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ बना रहे फुल प्रूफ रणनीति

राकेश प्रजापति, भोपाल।

 साल के आखिरी माह में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के लिए आदिवासी अंचल प्रमुख चुनावी मैदान बन गया है। दोनों दलों का फोकस प्रदेश के दो करोड़ आदिवासियों पर है। कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही रणनीतिकार मानते हैं कि प्रदेश के आदिवासी जिस दल के साथ होंगे, सत्ता उसी दल की होगी। इस कारण से आदिवासियों को लुभाने में कांग्रेस और भाजपा के बीच होड़ मची हुई है।
कांग्रेस विशेष अभियान के जरिए आदिवासी क्षेत्र में अपना नेटवर्क मजबूत करना चाहती है। हाल ही में कमलनाथ ने विंध्य-महाकौशल और बुंदेलखंड अंचल का दौरा किया। दूसरी ओर, भाजपा आदिवासियों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता के साथ ही केंद्र तथा राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं पर जोर दे रही है।
भाजपा को संघ परिवार के नेटवर्क का भी अतिरिक्त लाभ मिल रहा है। संघ परिवार का भी पूरा फोकस आदिवासी अंचलों पर है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मध्यप्रदेश के अपने प्रत्येक प्रवास में संघ परिवार के पदाधिकारियों से कहा है कि आदिवासी क्षेत्र में कार्य विस्तार के विशेष प्रयास किए जाएं। संघ अपने शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आदिवासी क्षेत्र में प्रतिदिन लगने वाली शाखाओं को बढ़ाने वाला है।
इस संबंध में लक्ष्य निर्धारित कर दिए गए हैं। भाजपा 2018 की गलतियों को दोहराना नहीं चाहती। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा अति आत्मविश्वास में आ गई थी। इस कारण उसने आदिवासी अंचल पर अधिक ध्यान नहीं दिया। नतीजा यह रहा कि आदिवासियों के लिए सुरक्षित 47 में से 31 सीटें उसके हाथ से चली गईं। खासतौर पर मालवा निमाड़ में उसे नुकसान हुआ।
यहां उसने आदिवासी सुरक्षित सीटों में से केवल 5 में ही जीत हासिल की। धार, झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी और खरगोन जिलों की आदिवासी सीटों पर भाजपा का लगभग सफाया हो गया। पार्टी ने इससे सबक सीखा और वापसी करने की कोशिश की। भाजपा 2023 में आदिवासी अंचलों को किसी भी हालत में अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहती है। दूसरी तरफ, आदिवासी मतदाताओं की निर्णय की स्थिति को कमलनाथ भी जानते हैं। कमलनाथ को प्रबंधन और रणनीति का महागुरु माना जाता है इसलिए उन्होंने भी अपना पूरा फोकस आदिवासी अंचल पर कर रखा है।

भाजपा-कांग्रेस में सेंध लगाने में जुटी गोंगपा

इस बीच गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) में भी तैयारियों को लेकर बैठकों का दौर जारी है। प्रदेश के विभिन्न जिलों में पार्टी के पदाधिकारी बैठक लेकर संगठन को मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं। साथ ही, अपने नेटवर्क को मजबूत कर आदिवासी वोटरों को भाजपा और कांग्रेस में जाने से रोकने की भरपूर कोशिशों में जुट गए हैं। इसेे लेकर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के शीर्ष नेताओं की चिंतन बैठक अमरकंटक में हुई। मौका था गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक स्वयं हीरा सिंग मरकाम की जयंती जिसमें तीन दिनों तक पार्टी की रीति, नीति और रणनीति पर मंथन हुआ।
पार्टी के स्थापना दिवस, युवा प्रकोष्ठ के विभिन्न कार्यक्रमों में पचास हजार से भी अधिक पार्टी के कार्यकर्ता एवं प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ से भी वरिष्ठ पदाधिकारी शामिल हुए। पार्टी के शीर्ष नेताओं ने आदिवासियों के साथ-साथ अनुसूचित जाति केे लोगों को भी पार्टी से जोड़ने पर चर्चा की।
इस मौके पर गोंगपा के अनुसूचित जाति के राष्ट्रीय अध्यक्ष सतीश नागवंशी ने अपनी रणनीति का खुलासा करते हुए पार्टी के नामानुसार लोगों में यह भ्रम दूर करने पर भी कार्यकर्ताओं से कहा कि गोंगपा में सभी जाति, धर्मों सम्प्रदायों के लोगों का स्वागत है। पार्टी के द्वार सभी के लिए खुले हैं।
यह पार्टी केवल आदिवासी साथियों की ही नहीं, बल्कि सभी की है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के चार विधायक उनके संपर्क में हैं जो चुनावों से ठीक पहले गोंगपा का दामन थामने के लिए तैयार है। इस अवसर पर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तुलेश्वर मरकाम, राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश प्रभारी श्याम मरकाम, राष्ट्रीय महासचिव बलवीर तोमर ने भी कार्यकर्ताओं से आह्वान करते हुए पार्टी को इस विधानसभा चुनावों में 46 सीटों में से लगभग 30 सीटों पर विजय श्री पाने के लिए जुट जाने को कहा।

आदिवासी अंचल में भाजपा का फोकस

भाजपा ने आदिवासी अंचल पर जबरदस्त फोकस किया हुआ है। वह यात्राओं के माध्यम से आदिवासियों से संपर्क कर रही है। 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आदिवासी सुरक्षित 47 में से क्रमशः 36 और 31 सीटें मिली थीं, लेकिन 2018 में उसका आदिवासी सीटों से सफाया हो गया था। तब कांग्रेस को 31 सीटें हासिल हुई थीं और नतीजे में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो सकी थी।
भाजपा ने 2018 की पराजय के बाद लगातार आदिवासी क्षेत्रों में काम किया है। इसी का नतीजा है कि 2020 के बाद हुए विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने आदिवासी अंचल की नेपानगर, जोबट जैसी सीटों पर जीत हासिल की। इसके अलावा खंडवा लोकसभा में जीत दर्ज की, जहां एक लाख से अधिक आदिवासी मतदाता हैं। खरगोन जिले में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी, लेकिन खरगोन के उपद्रव के बाद वहां स्थिति बदली है।
इसी तरह भाजपा ने पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव में झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी, खरगोन जिले में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। भाजपा के लिए मालवा निमाड़ में वापसी करना जरूरी था। पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव के परिणामों ने जाहिर किया कि मालवा निमाड़ का गढ़ फिर से उसने फतह कर लिया है। दूसरी ओर, पार्टी के लिए मुख्य चुनौती विंध्य अंचल बन गया है।
जहां गुटबाजी और जातिवाद के कारण पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन अपेक्षा अनुरूप नहीं था। महाकौशल अंचल में भी उसे परेशानी आ रही है। भाजपा यहां वापसी करने की कोशिश कर रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान केंद्र और राज्य की जनकल्याणकारी योजनाओं की लगातार सौगातें आदिवासी अंचल को दे रहे हैं।
उन्होंने हाल ही में ‘पेसा एक्ट’ यानि पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 लागू करवाया है जिसके तहत आदिवासियों को विशेष अधिकार दिए गए हैं। प्रदेश में 47 विधानसभा सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं, लेकिन आदिवासियों का प्रभाव 80 से अधिक सीटों पर निर्णायक माना जाता है। प्रदेश के 17 जिले आदिवासी बहुल माने जाते हैं। भाजपा आदिवासी नेतृत्व को भी बढ़ावा देने की लगातार कोशिश कर रही है।

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