देहरादून। आपदा और विकास की मार से जिले की 3.7 फीसदी नहरों का अस्तित्व समाप्त हो गया है। वर्ष 2012 में जिले में 127 नहरें थीं। इनमें से 12 नहरें भूस्खलन और पानी सूखने से तो 27 नहर सड़क निर्माण के कारण नष्ट हो गई हैं।
इन नहरों के सूखने और गायब होने से क्षेत्र के 2 हजार से अधिक किसान खेतों को सींच नहीं पा रहे हैं और उन्हें मजबूरन बारिश पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। सिंचाई के अभाव में कई किसानों ने खेती भी छोड़ दी है।
पर्वतीय क्षेत्रों में नहरों की संख्या के साथ ही सिंचित भूमि भी लगातार घट रही है। सिंचाई विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार एक दशक पूर्व जिले में 2666.20 हेक्टेयर भूमि सिंचित थी। वर्तमान में नहरों की कम होती संख्या के बीच सिंचित भूमि 1734 हेक्टेयर कम होकर महज 932 हेक्टेयर रह गई है।
सिंचाई खंड अल्मोड़ा ने पिछले दस वर्षों में महज 25 नई नहरों का निर्माण किया। आपदा या सड़क निर्माण के चलते इनमें से दस नहरें नष्ट हो गई हैं। जगह-जगह क्षतिग्रस्त नहरों के बीच सिंचाई में किसानों को खासी दिक्कत झेलनी पड़ रही है। लमगड़ा में 27, भैंसियाछाना में दस, धौलादेवी में 28, ताकुला में आठ, हवालबाग में पंद्रह नहरें संचालित है।
सिंचाई खंड के ईई मोहन सिंह रावत का कहना है कि बजट के अभाव में नहरों का रख-रखाव नहीं हो पा रहा है। जिससे नहरें आपदाकाल या सड़क निर्माण के चलते क्षतिग्रस्त हो रही हैं। यही कारण है कि जिले में नहरों की संख्या घटी है। वहीं विभाग में कर्मचारियों की कमी भी इसकी बड़ी वजह है।