अब उठने लगी बैकडोर भर्ती वालों से वसूली की मांग

देहरादून। विधानसभा में बैकडोर भर्ती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब गलत तरीके से भर्ती हुए लोगों से वसूली की मांग उठने लगी है।

कुछ दिन पहले हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाले कांग्रेस नेता व सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने कहा कि विधानसभा भर्ती में भ्रष्टाचार से नौकरियों को लगाने वाले ताकतवर लोगों पर हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में जांच कराने व लूट मचाने वालों से ‘सरकारी धन की रिकवरी के लिए उन्होंने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा भर्ती घोटाले पर चल रही उनकी जनहित याचिका के मुख्य बिंदुओं – ‘ नियमों की अनदेखी, भ्रष्टाचार व लूट’ के विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने 216 से हुई भर्तियों पर याचिका खारिज कर मुहर लगा दी। अब सरकार को जल्दी ही हाईकोर्ट को यह बताना चाहिए कि 20 से 222 तक सभी भर्तियों में क्या नियमों की अनदेखी हुई  व जिन मंत्री व अफसरों ने यह लूट का रास्ता बनाया उनसे सरकारी धन की वसूली पर क्या कार्यवाही हुई।
थापर का कहना है कि  इस विषय पर अब तक अपने करीबियों को भ्रष्टाचार से नौकरी लगाने में शामिल सभी विधानसभा अध्यक्षों और मुख्यमंत्रियों पर भी सरकार ने चुप्पी साधी हुई है। इसी कारण उन्हें हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ा। याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने बताया कि याचिका में मांग की गई है कि राज्य निर्माण के वर्ष 20 से 222 तक समस्त नियुक्तियों की जांच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में किया जाय और भ्रष्टाचारियों से सरकारी धन के लूट को वसूला जाय।

विस में पक्षपातपूर्ण कार्य कर अपने करीबियों को नियमों को दरकिनार करते हुए नौकरियां दी गई है जिससे प्रदेश के लाखों बेरोजगार व शिक्षित युवाओं के साथ धोखा हुआ है यह जघन्य किस्म का भ्रष्टाचार है ।

नियुक्ति पाने और नियुक्ति करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवारई हो: मैखुरी

भाकपा माले के गढ़वाल सचिव इेंश मैखुरी ने कहा है कि इस फैसले के बाद तत्काल उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए, जिन्होंने ये नियम विरुद्ध नियुक्तियां की, जिन्होंने बिना सार्वजनिक विज्ञप्ति और अन्य प्रक्रिया के, अयोग्य, अक्षम लोगों की सैकड़ो की संख्या में विधानसभा में नियुक्ति की। विधानसभा में अयोग्य, अक्षम लोगों की नियुक्ति और उत्तराखंड के योग्य युवाओं से योग्यता और दक्षता के आधार पर विधानसभा में नियुक्ति पाने का अवसर छीनने वालों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्यवाही अमल में लायी जानी चाहिए।
उच्चतम न्यायालय द्वारा उत्तराखंड विधानसभा के बर्खास्त तदर्थ कर्मचारियों की याचिका खारिज किए जाने से यह पुन: स्पष्ट है कि ये नियुक्तियां नियम विरुद्ध हुई थी। उच्च न्यायालय की डबल बेंच के बाद उच्चतम न्यायालय के इस फैसले ने विधानसभा में नियुक्तियों में धांधली होने की बात पर मोहर लगा दी है।
मैखुरी ने कहा कि यह विचित्र विरोधाभास है कि उत्तराखंड सरकार और विधानसभा अध्यक्ष, नियम विरुद्ध नियुक्ति पाए कर्मचारियों की बर्खास्तगी का श्रेय तो लेना चाहते हैं, लेकिन इन नियम विरुद्ध नियुक्तियों को करने वालों के खिलाफ कार्यवाही के सवाल पर मुंह नहीं खोलना चाहत।

यह हैरत की बात है कि जिन प्रेमचंद अग्रवाल ने  विधानसभा अध्यक्ष रहते, विधानसभा में बैकडोर से नियम विरुद्ध भर्तियां की, वे वर्तमान सरकार में संसदीय कार्य,वित्त, शहरी विकास जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री बने हुए हैं$ यह भ्रष्टाचार का फल पाने वालों के खिलाफ कार्यवाही और भ्रष्टाचार का पेड़ लगाने वालों का संरक्षण करने जैसा कृत्य है। सरकार को चाहिए कि प्रेमचंद अग्रवाल को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाए विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल व प्रेमचंद्र अग्रवाल के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम,1988 तथा अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाये साथ ही उत्तराखंड की विधानसभा में वर्ष 2000 से 2016 की बीच में हुई बैकडोर नियुक्तियों के मामले में भी नियुक्ति पाने और नियुक्ति करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाए।

Leave a Reply