नयी दिल्ली। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने कहा है कि वैश्विक बाजार की अनिश्चितताओं के कारण भारत की आर्थिक वृद्धि की राह की चुनौतियों को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक को नीतिगत ब्याज दर बढ़ा कर कर्ज महंगा करने की अपनी गति को कम करने का विचार करना चाहिए।
सीआईआई का कहना है कि भारत वैश्विक परिस्थितियों से अछूता नहीं रह सकता। गौर तलब है कि रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के लिए बैंकों को तात्कालिक उधार पर अपनी ब्याज की दर -रेपो को प्राय: हर द्वैमासिक समीक्षा में लगातार प्रति सैकड़ा आधा -आधा अंक बढ़ाता जा रहा है।
सितंबर में आखिरी बार प्रतिशत 0.50 अंक की बढोतरी के बाद रेपो इस समय 5.90 प्रतिशत पर पहुंच गयी है। रिवर्स रेपो दर 3.35 प्रतिशत है। रिजर्व बैंक इस वर्ष मई से अब तक रेपो प्रति सैकड़ा कुल मिला कर1.90 रुपये बढ़ा चुका है।
रेपो दर बढ़ने से बैंकों के लिए अपनी दैनिक नकदी की जरूरत के लिए रिजर्व बैंक से पैसा लेना मंहगा हो जाता है और वे अपने धन की लागत के बढ़ने पर ग्राहकों के लिए कर्ज की दर बढ़ाने को मजबूर होते हैं। सीआईआई ने रविवार को एक बयान में कहा,‘‘घरेलू मांग में सुधार अच्छा है और यह बात जल्दी-जल्दी प्रकाशित किए जाने वाले कई आंकड़ों में झलक रही है, पर इस समय व्याप्त भू-राजनीतिक संकट का हमारी आर्थिक वृद्धि की संभावनाओं पर प्रभाव पड़ सकता है।
’’ घरेलू मांग अच्छी तरह से ठीक हो रही है जैसा कि कई उच्च-आवृत्ति संकेतकों के प्रदर्शन से पता चलता है, हालांकि, प्रचलित वैश्विक पॉलीक्राइसिस के हमारे विकास की संभावनाओं पर भी प्रभाव पड़ने की संभावना है। मुख्य रूप से वैश्विक अनिश्चितताओं से उत्पन्न घरेलू विकास की बाधाओं को देखते हुए, आरबीआई को अपनी मौद्रिक सख्ती की गति को पहले के 50 आधार अंकों से कम करने पर विचार करना चाहिए।
यह बात सीआईआई ने आरबीआई को आगामी मौद्रिक नीति पर अपेक्षाओं के संबंध में कही। खुदरा मुद्रास्फीति इस वर्ष सितंबर के 7.41 प्रतिशत की तुलना में नरम हो कर अक्टूबर में 6.77 प्रतिशत पर आ गयी जिससे अपेक्षा की जा रही है कि रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति में ब्याज की चूड़ी कसने की रफ्तार कुछ कम करना चाहिए।