हिमालयी आपदाओं के लिए जल्द अर्ली वार्निंग सिस्टम
एनजीआरआई कर रहा एवलांच, बाढ़, भूस्खलन के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करने के लिए उत्तराखंड में फील्ड स्टडी
देहरादून। नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआई) ने हिमालयी राज्यों में अचानक आने वाली बाढ़ो, शिलास्खलन, हिमस्खलनों, भूस्खलनों, हिमनदीय झीलों के फटने की घटनाओं की पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करने के लिए अध्ययन शुरू कर दिया है।
बीते दिनों उत्तराखंड में हिमस्खलन की घटना में दर्जनों लोग मारे गए थे। काउंसिल फर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) के तहत आने वाले एनजीआरआई हैदराबाद के निदेशक वीएम तिवारी का कहना है कि वर्तमान में हम भूभौतिकी व भूकंप शा के जरिए भूकंप व अन्य घटनाओं का पता लगाने में तो सक्षम है लेकिन अभी सबसे बड़ी दिक्कत घटना से पर्याप्त समय पहले और पर्याप्त दूरी से घटना की पूर्व चेतावनी देने की है।
खासकर ऐसी प्राकृतिक आपदा वाली घटनाओं की जैसी कि चमोली के रैणी से दस गुना अधिक तीव्र हों। एनजीआरआई के वैज्ञानिक आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली (अर्ली वार्निंग सिस्टम )विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कुछ स्थान चिति किए हैं जहां 100 से 60 तक सिस्मोमीटर और रिवर गज लगाए जाएंगे।
इसका उद्देश्य नदियों के प्रवाह की लगातार निगरानी है ताकि नदी के जलस्तर में आने वाले ऐसे हर बदलाव की जानकारी पहले से हो जो कि बाढ़ में बदल सकता है। पांच सेंटीमीटर तक बारिश या ग्लेशियर का पिघलना संभव है खतरनाक न हो लेकिन अगर कोई बड़ी चट्टान नदी में गिरती है या फिर कोई झील टूटती है तो इससे भारी बाढ$ आ सकती है।
अध्ययन के बाद विशेषज्ञों व लोगों से विचार विमर्श कर यह तय किया जाएगा कि कितने समय पहले और कितनी दूरी से चेतावनी दी जाए कि लोग अपना बचाव कर सकें। वैज्ञानिकों ने सीस्मोमीटरों द्वारा रिकार्ड की जाने वाली उन आवृत्तियों, आवाजों का भी संज्ञान लेने का फैसला लिया है जो भूकंप के कारण नहीं बल्कि वाहनों की आवाजाही, जानवरों की आवाजाही, बारिश और नदी प्रवाह आदि के कारण पैदा होती हैं।
ये उपकरण बड़ी ढांचागत परियोजनाओं, जल विद्युत परियोजनाओं की सुरक्षा के लिए जरूरी है। अभी वैज्ञानिक 30-40 किमी दूर के अचानक प्रवाह की पहचान करने में सक्षम हैं क्योंकि सिस्मिक तरंगे नदी के प्रवाह से तेज चलती है ऐसे में कम से आधा घंटे पहले चेतावनी दी जा सकती है।
लेकिन उच्च हिमालयी क्षेत्र में सबसे बड़ी दिक्कत समय से आंकड़े न मिलना है क्योंकि एक तो वहां बर्फ बिछी रहती है दूसरे मोबाइल टावर नहीं होते। वीएम तिवारी का कहना है कि एनजीरआई चाहता है कि उपाय महंगे न हों। हालांकि एनजीआरआई के उपकरण ऋण 20 डिग्री सेल्सियस में भी काम कर सकते हैं लेकिन जब सूरज की कोई रोशनी नहीं होती तो फ्यूल सेल की जरूरत होती है। एनजीआरआई जल्द ही उत्तराखंड व अरुणाचल प्रदेश में अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करेगा।
भूकंप अलर्ट एप डाउनलोड करने की अपील
हाल में आए भूकंपों को देखते हुए सचिव आपदा प्रबंधन रंजीत सिन्हा ने प्रदेश के लोगों से उत्तराखंड भूकंप अलर्ट एप डाउनलोड करने की अपील की है। यह ऐप एंड्रॉइड प्ले स्टोर और एप्पल प्ले स्टोर दोनो में उपलब्ध है। इस एप के जरिए भूकंप का अलर्ट मिल जाता है जिससे अपनी सुरक्षा के इंतजाम किए जा सकते हैं।