विवादों में झारखंड की नई आबकारी नीति

रांची। झारखंड की नई आबकारी नीति भी धीरे धीरे सिंडिकेट की भेंट चढ़ चुकी है। इसका नतीजा है कि अब शराब विक्रेता अपने पीछे के लोगों के समर्थन से मनमानी पर उतर आये हैं। पहले से चलने वाले कई ब्रांड इसी वजह से अब बाजार से गाहे बगाहे गायब हो रहे हैं। इनके स्थान पर लगभग उसी कीमत पर नई ब्रांडों को लाया जा रहा है। यह स्थिति सिर्फ विदेशी शराब के साथ ही नहीं बल्कि बीयर के धंधे में भी चलने लगी है।

दूसरी तरफ सूत्रों का मानें तो अपना कारोबार बढ़ाने के चक्कर में शराब निमार्ता कंपनियां भी इसमें फंस चुकी हैं। कुछ नई ब्रांडों को झारखंड में चलाने के मौखिक आश्वासन पर इन ब्रांडों को बाजार में खपाया गया। जब पैसा देने की बारी आयी तो आना कानी होने की वजह से कंपनी ने आगे माल भेजना बंद कर दिया। नतीजा हुआ कि ऐसे नये ब्रांडों में से कई फिर से बाजार से गायब हो गये हैं।
पता चला है कि ऊपर तक इसकी शिकायत पहुंचने की वजह से आबकारी विभाग ने अपनी तरफ से रांची और जमशेदपुर में भी अधिक कीमत पर शराब बेचे जाने की मामले की जांच की थी। जांच में आरोप सही पाये जाने के बाद संबंधित पक्षों पर चालीस लाख से अधिक की वसूली का नोटिस भी जारी किया गया है। जानकार बताते हैं कि आबकारी विभाग को पहले से ही इस गोरखधंधे की जानकारी तो थी लेकिन जब तक ईडी की कार्रवाई नहीं हुई थी, वे इस बारे में आश्वस्त थे। बाद में अपने सर पर खतरा मंडराता देख खुद को पाक साफ बताने की कोशिश में यह छापामारी की गयी है।
इस बीच नकली शराब का कारोबार भी फिर से सर उठा रहा है। पता चला है कि लोकप्रिय ब्रांडों के उत्पाद में यह मिलावट की जा रही है। खास तौर पर छोटे आकार के बोतलों में ही यह मिलावट है और इसके जरिए भी न सिर्फ अवैध कमाई की जा रही है बल्कि चंद विभागीय लोगों की मिलीभगत से सरकार को भी हर माह लाखों के राजस्व का चूना लग रहा है।

दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल की दुकानों से आने वाले चर्चित ब्रांड की शराब की वजह से भी झारखंड सरकार को आबकारी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। सीमावर्ती इलाकों के लोग झारखंड में अपनी पसंद का ब्रांड नहीं मिलने की स्थिति में बंगाल जाकर यह ब्रांड खरीद रहे हैं क्योंकि वहां इनकी कीमत भी कम है।
वैसे इस पूरे मामले में सिंडिकेट के हावी होने की जानकारी देने वालों ने संकेत दिया है कि कारोबार का नियंत्रण अब उस कंपनी के पास चला गया है जो अब स्थान बदलकर ओऱमाझी से अपना उत्पादन बाजार में पहुंचा रहा है। कंपनी ने रांची में भी अपना कार्यालय कई बार बदला है। इसकी खास वजह भी है और अब ऐसा लगता है कि ईडी को इस कारोबार और उससे जुड़े लोगों का पक्का सुराग मिल चुका है। इसी वजह से अब अचानक से पूरा महकमा ही खुद को सतर्क कर चुका है।

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