अंतरिक्ष में विज्ञान के लिए ढेर सारी पहेलियां अभी भी मौजूद 

रांची। धरती पर अब तक लोहा को ही सबसे भारी धातु माना गया था, जो कठोर भी है। वैसे कठोरता के मामले में धरती पर हीरा को शीर्ष स्थान प्राप्त है। अब प्रयोगशालाओं में तैयार कृत्रिम हीरों की आणविक संरचना को बदलकर उसे और कठोर बनाया गया है।

इसके बाद भी पहली बार यह पता चला है कि बाहरी दुनिया में लोहा से भी भारी धातु मौजूद है। अंतरिक्ष में यह खोजा गया यह धातु बेरियम है जो लोहा से करीब ढाई गुणा अधिक भारी है। इसकी खोज होने के बाद भी वहां की स्थिति क्या है, इसे लेकर खगोल वैज्ञानिक भी चकराये हुए हैं।

आम तौर पर यही माना जाता है कि भारी कोई भी चीज गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव की वजह से नीचे चली आती है। जहां पर इस बेरियम के होने का पता चला है वह दो ग्रहों के ऊपरी हिस्से में मौजूद है। ऐसा क्यों है और वह बेरियम ग्रहों के जमीनी सतह पर क्यों नहीं है, इसका उत्तर अभी नहीं मिल पाया है।
यूरोपियन साउथर्न आबजरभेटरी के खगोल दूरबीन की मदद से दो गैस वाले तारों की खोज हुई है। इन्हें वास्प 76 बी और वास्प 121 बी नाम दिया गया है। इनके बाहरी वातावरण में इस बेरियम की मौजूदगी पायी गयी है। यह दोनों गर्म हवा के बड़े तारे हैं जो हमारे सौरमंडल से बाहर स्थित है।

वे भी बाहरी हिस्से में मौजूद तारों के बीच चक्कर काट रहे हैं। बेरियम के इनके बाहरी वातावरण में होने की जानकारी ने गुरुत्वाकर्षण के प्रचलित सिद्धांत को गलत साबित कर दिया है। इन दो तारों के अंदर का तापमान करीब एक हजार डिग्री है।

इसलिए वे दोनों गर्म तारा माने जाते हैं और आकार में हमारे जूपिटर ग्रह के बराबर हैं। इनपर खगोल वैज्ञानिकों का ध्यान जाने पर यह भी पता चला है कि वे आपसी में एक दूसरे का भी चक्कर काट रहे हैं और एक से दो दिन में यह चक्कर पूरा होता है।
इतने भारी धातु के बाहरी वायुमंडल में मौजूद होने की वजह से वैज्ञानिकों का अनुमान है कि तब शायद वहां लोहे की बारिश होती होगी। इस खोज को शोध से जुड़े वैज्ञानिक अजेवेडो सिल्वा ने कहा है यह एक दुर्घटनावश हुई खोज है, जो इतनी महत्वपूर्ण साबित हो रही है। शोध दल को इस इलाके में बेरियम की मौजूदगी का अंदाजा भी नहीं था। वैसे इन दो तारों का पता चलने के बाद उनकी संरचना और अंदर की गतिविधियों पर वैज्ञानिकों का आकर्षण बढ़ गया है।

यहां के प्रयोगशालाओं में भी बेरियम का उत्पादन होता है। वैसे आतिशबाजी के हरे रंग के अलावा आसमान पर भी कई बार हरे रंग की चमक का कारण इसी बेरियम की उपस्थिति होती है। लेकिन किसी गर्म तारा के बाहरी हिस्से में बेरियम कैसे बन रहा है, यह समझना फिलहाल कठिन है।

वहां बेरियम होने का संकेत मिलने के बाद वैज्ञानिकों ने कई अन्य तरीकों से भी इसकी पुष्टि की। दरअसल इस वातावरण के ऊपरी हिस्से में बेरियम जैसा भारी धातु होने की उम्मीद नहीं थी। इस बात का पता चलने के बाद अब खगोल वैज्ञानिक भी मान रहे हैं कि अंतरिक्ष को समझने में हमारा विज्ञान अब भी काफी पिछड़ा हुआ है और कहां क्या तथा क्यों हो रहा है, इसे समझने के लिए और अधिक अनुसंधान करने की आवश्यकता है।

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