रांची। चेरोनबिल के परमाणु बिजलीघर के विस्फोट को परमाणु ऊर्जा के मामले में सबसे बड़ी दुर्घटना के तौर पर देखा जाता है। 26 अप्रैल 1986 में यह हादसा हुआ था। वहां के चार रियेक्टरों में अचानक हुए रिसाव की वजह से कुछ लोगों की मौत हुई थी।
एहतियात के तौर पर आस पास के लोगों को भी आनन फानन में हटा लिया गया था। इसका मकसद परमाणु विकिरण के कुप्रभाव से लोगों को बचाना था। इसके पहले ही जापान में अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराने का क्या असर होता है, यह दुनिया देख चुकी है।
अब नये शोध में पता चला है कि वहां के इस परमाणु विकिरण और रेडियोधर्मिता से वहां के अन्य प्राणियों से भी बचाव किया है। इतने दिनों बाद वहां की स्थिति की जांच करने गये वैज्ञानिक दल को वहां जंगली प्राणी नजर आये हैं। वहां के प्राणियों पर इसका क्या असर पड़ा है, इसकी जांच मेढ़कों पर हुई है। वैसे वहां कई अन्य जंगली जानवर भी देखे गये हैं।
वहां इस विकिरण और रेडियोधर्मिता की वजह से पर्यावरण और अन्य प्राणियों पर क्या प्रभाव पड़ा है, इसी बात की जांच हुई थी। पहली बार इस बात की जानकारी मिली है कि कई जंगली प्राणियों ने अपने आप में बदलाव कर इस रेडियोधर्मी माहौल में भी जीवित रहना सीख लिया है।
इस बारे में सबसे महत्वपूर्ण जानकारी वहां के मेढ़कों ने दी है। वरना आम तौर पर इस किस्म के रेडियेशन की चपेट में आने के बाद हर जीवित प्राणी के भीतर का जीवित कोष ही नष्ट हो जाता है। इसके अलावा आंतरिक तौर पर ऐसी प्रतिक्रियाएं होती हैं, जिससे प्रभावित प्राणी पर कैंसर का असर हो जाता है।
लेकिन वहां के ईस्टर्न ट्री फ्राग प्रजाति (बोटानिकल नाम हायला ओरियेंटालिस) के मेढ़कों ने शोधकतार्ओं को चौंका दिया है। इन मेढ़कों पर काले रंग का असर ज्यादा दिखा है। आम तौर पर हरे रंग के यह मेढ़क अब थोड़े काले रंग के हो गया है।
समझा गया है कि चमड़ी में मौजूद मेलानिन में हुए बदलाव ने इन्हें अल्ट्रावायोलेट रेडियेशन से बचाने का काम किया है। यह उनके बीच प्राकृतिक तौर पर हुए तेज क्रमिक विकास का एक नमूना है। इस मेलानिन की वजह से ही किसी भी प्राणी की चमड़ी में काला रंग बनता है। अब मेढ़कों पर हुए शोध से पता चला है कि इसी मेलानिन ने ऐसी ऊर्जा को अपने अंदर सोखने के बाद उन्हें विखंडित कर दिया है।
ऐसा हो सकता है, इसकी कल्पना पहले नहीं की गयी थी। शोध दल ने चेरोनबिल के आस पास के जंगलों और तालाबों में मौजूद दो सौ पुरुष मेढ़कों की जांच की। इन इलाकों में रेडियोधर्मिता सबसे अधिक है। इनमें काले रंग की मात्रा अधिक है। कुछ तो पूरी तरह काले रंग के हो चुके हैं लेकिन जीवित अवस्था में ही हैं।
इसलिए माना जा रहा है कि वहां परमाणु रेडियेशन फैलने के बाद प्रकृति ने इन जीवों को बचाव का नया साधन उपलब्ध कराया है। लेकिन इसकी वजह से उनके क्रमिक विकास का जो क्रम प्रारंभ हुआ है वह औसत से काफी अधिक तेज है। इस बीच वहां इस प्रजाति के मेढ़कों की करीब दस पीढ़ियां गुजर चुकी है।