राहुल का साथ चल रहे डेढ़ सौ पैदल यात्रियों के पैरों में छाले और तेज बुखार के बाद भी जज्बा कम नहीं

बेंगलुरु। कर्नाटक में राहुल गांधी की यात्रा को पहले से ज्यादा लोकप्रियता मिल रही है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की 3570 किलोमीटर की इस यात्रा में लगातार चलने वाले डेढ़ सौ लोगों में से अधिकांश के पैरों में छाले हैं। दरअसल लगातार चलने की वजह से उनके छालों को ठीक होने का मौका भी नहीं मिल रहा है। कई लोगों ने 102 की बुखार के बाद भी दूसरों की मदद से यात्रा जारी रखा था।

इसके बाद भी यह सारे लोग मानते हैं कि यह पूरे जीवन के लिए एक यादगार यात्रा है। तुमकूर मे इस यात्रा के पहुंचने के बाद इन यात्रियों ने अपने अनुभव भी बताये। इनमें करीब तीस प्रतिशत महिलाएं हैं। उनकी दिनचर्या सुबह साढ़े चार बजे प्रारंभ होती है। तैयार होने के बाद झंडोत्तोलन होता है और छह बजे राष्ट्रगान के बाद वे यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं।

राजस्थान के अलवर से आये 58 वर्षीय विजेंद्र सिंह मेहलावत ने कहा कि पहले कुछ दिनों तक तो उनके घुटनों में दर्द हुआ लेकिन लगातार चलते रहने से वह ठीक हो गया है। इसमें सबसे कम उम्र की अनुलेखा बूसा 27 साल की हैं और तेलेंगना से आयी हैं। वह केरल में चार दिन के लिए बीमार पड़ गयी थी। एक दिन का आधा सफर तो वह एंबुलेंस में रही। इन यात्रियों को सफर प्रारंभ होने के पहले ही समझाया गया था कि लगातार मौसम और इलाका बदलने का शरीर पर असर पड़ता है।

इसलिए वे बाहर से कुछ भी खाने से परहेज करें। लेकिन मेहलावत ने कहा कि केरल में अचानक एक महिला आयी। खुद को शिक्षिका बताते हुए उन्होंने उनके जत्थे को बिस्किट किये और कहा कि यह उन्होंने अपने घर में बनाया है। पर्दे के पीछे चलने वालों में केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चंडी के पुत्र चंडी ओमेन भी हैं।

वह मानते हैं कि वह पहले देर से उठने वाले थे लेकिन इस यात्रा ने उनकी दिनचर्या ही बदल दी है। दिल्ली के सेंट स्टीफंन कॉलेज में पढ़े इस युवा के लिए यह एक अद्भूत अनुभव है। उन्होंने कहा कि किसी की सलाह पर मैंने खाली पैर चलने की कोशिश की। शुरू में तो दिक्कत हुई लेकिन बाद में पता चला कि इससे अधिक ऊर्जा मिलती है। इसलिए अब खाली पैर ही चल रहा हूं।

वह कहते हैं कि राहुल गांधी को अपनी मां के जबरन चलने से रोकने और हाथ पकड़कर कार में बैठाते तो दुनिया ने देखा। लेकिन मैंने यह देखा कि मेरे पिता को भी राहुल गांधी ने उसी तरह ज्यादा चलने से रोका और सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उन्हें गाड़ी में बैठाते वक्त उनके पैरों को उठाकर गाड़ी के अंदर रखा क्योंकि मेरे पिता के पैरों में दिक्कत है। इस आचरण ने मुझे बहुत प्रेरित किया है।

इन पैदल यात्रियों में शायद सबसे लोकप्रिट शुश्रुत हाडेन है. 48 वर्षीय हाडेन पेसे से न्यूरोलॉजिस्ट हैं। अमेरिका में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वह पंद्रह वर्षों तक वहां रहे हैं। बाद में वह वर्ष 2019 में देश लौट आये हैं। वह किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं है। उन्होंने कहा कि वह हमेशा से पूरे देश के ग्रामीण परिवेश को देखना और समझना चाहते थे। इस यात्रा ने उन्हें यह अवसर प्रदान कर दिया है।

वहग कहते हैं कि कोरोना की वजह से हुई परेशानी की वजह से देश में टेलीमेडिसन के मुद्दे पर जब पहली बार राहुल गांधी से उनकी बात हुई तो वह राहुल के ज्ञान से अचंभित रह गये। वह कहते हैं कि देश के नेता इस तरीके से जानकारी रखते हैं, ऐसा मेरा अनुमान नहीं था। इसलिए मैं राहुल के व्यक्तित्व और उनके अंदर छिपे ज्ञान से बहुत प्रभावित हुआ हूं।
वैसे इन पैदल यात्रियों का चयन कोई आसान काम नहीं था। दिग्विजय सिंह और मुकुल वासनिक ने मिलकर सभी आवेदनों पर विचार कर इस सूची को अंतिम रूप दिया है। अब तो यात्रा में अनेक वैसे लोग सक्रिय तौर पर जुड़ गये हैं जिनका कांग्रेस के साथ कोई जुड़ाव नहीं है। वे सिर्फ इस यात्रा के मकसद को समर्थन करने के लिए भारत जोड़ो यात्रा में चल रहे हैं।

 

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