सीबीआई से कैसा ‘डर’!

 व्यापम घोटाले में बैन कंपनी को काम देने की क्या मजबूरी थी?
भर्ती घोटालों में ‘महाएक्शन’, लेकिन मास्टरमाइंड गिरफ्त से बाहर
-मौहम्मद शाहनजर, देहरादून।

‘विसाल-ए-यार से दूना हुआ इश्क, मर्ज बढ़ता गया, ज्यों ज्यों दवा की’, ये पक्तियां हैं, मशहूर शायर शाद लखनवी की। जिसका अर्थ है ‘सुधार के बजाय बिगाड़ होता जाना या गया’। हिन्दी मुहावरे और लोकोक्तियां में ‘मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की’ जैसे मुहावरे कई प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, बीएड, सब-इंस्पेक्टर, बैंक भर्ती परीक्षा, समूह ‘ग’ सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षाओं के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होते हैं। लेकिन मौजूदा समय में उक्त पक्तियां उत्तराखण्ड में भर्ती परीक्षाओं में सामने आ रहे घोटालों पर एकदम सटीक बैठ रही है।
सरकार की ओर से एक भर्ती घोटाले की जांच शुरू होती नहीं, कि दूसरा घोटाला सामने आ जाता है, दूसरे की चर्चा हो रही होती है कि तीसरा मामला उछल जाता है, या गुटबाजी के चलते उछाल दिया जाता है। जिन परीक्षाओं में यह मुहावरा अभ्यर्थियों को हल करने के लिए दिया जाता है, उन्हीं परीक्षाओं में हो रही धांधली-घोटालों में यह मुहावरा उपयोग किया जा रहा है।

विपक्ष ही नहीं, सरकार के भीतर से भी भर्ती परीक्षाओं और विधानसभा में बैकडोर से हुई भर्तियों को लेकर सवाल उठाए जाने लगे हैं। हर रोज नये-नये खुलासे होने के साथ-साथ मास्टर माइंड तक बदले जा रहे हैं। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्ती परीक्षाओं में धांधली का आरोप काफी समय पहले से विपक्षी पार्टी कांग्रेस व कुछ युवा लगा रहे थे, कांग्रेस की ओर से उप नेता प्रतिपक्ष व सीएम पुष्कर सिंह धामी को हरा कर विधायक बने भुवन कापड़ी ओर बोबी पंवार व उनकी टीम खुल कर सोशल मीडिया-मीडिया में इस बात को उठा रहे थे, कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर हुई है।

लेकिन उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष एस राजू व सचिव संतोष बडोनी हर आरोप को नकार रहे थे, बाद में जांच शुरू होते ही गिरफ्तारियां होते ही इन दोनों को भी अपना पद त्यागना पड़ा। फिलहाल, राजू-बडोनी जांच की आंच से बाहर हैं?
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्तियों की जांच को लेकर सीएम धामी के आदेश के बाद 22 जुलाई को मुकदमा दर्ज हुआ और 24 जुलाई से गिरफ्तारियों का जो दौर शुरू हुआ था, वह अब तक जारी है। पिछले 53 दिनों में एसटीएफ इस अकेले मामले में 41 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है।

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक मामले की जांच एसटीएफ कर ही रही थी कि फिर तो विभाग-दर-विभाग भर्तियों में हुए घोटाले सामने आने लगे। वर्तमान समय में शायद ही कोई ऐसा विभाग बचा होगा, जहां शक की सुई न पहुंच रही हो। राज्य गठन से लेकर अब तक विधानसभा में हुई बैकडोर भर्तियों का मामला उछला तो इस की आंच में भाजपा-कांग्रेस दोनों हाथ ‘तापते’ दिखाई दे रहे हैं। यही नहीं, वीडीओ, वीपीडीओ, वन दारोगा सहित कई भर्तियां शक के दायरे में आ गई। सरकार ने आनन-फानन करीब 13 भर्ती परीक्षाओं को रद्द कर दिया।
अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की ओर से प्रस्तावित भर्तियों को कराने की जिम्मेदारी लोक सेवा आयोग के सुपुर्द कर दी गर्द, इस पर सवाल उठ ही रहे थे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक वरिष्ठ पदाधिकारी की सिफारिश पर सरकारी विभागों और संस्थानों में नौकरी हासिल करने वालों की सूची सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो उत्तराखंड से लेकर नागपुर तक हंगामा मच गया। इस मामले में संघ के उत्तराखंड प्रांत कार्यवाह दिनेश सेमवाल की शिकायत पर साइबर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है।
सोशल मीडिया में वायरल सूचियों में भर्ती ही नहीं, खनन व निर्माण के ठेके भी चहेतों को दिलवाये जाने का उल्लेख किया जा रहा है। हालांकि, सोशल मीडिया में तैर रही किसी भी सूची की सत्यता को जाने बिना उस पर यकीन कर लेना बेहतर नहीं है।

जिस प्रकार यह सूची बाहर आई है, और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने जिस प्रकार से उसे अपनी सोशल साइट पर अपलोड किया है, उस की जांच तो अवश्य होगी ही, इस मामले में पुलिस की ओर से भ्रामक समाचार प्रसारित करने वाले लोगों को चिन्हित कर कार्रवाई करने की भी बात कही जा रही है।
आरएसएस के प्रांतीय कार्यवाह दिनेश सेमवाल के नेतृत्व में संघ पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री और डीजीपी से मुलाकात कर बताया कि संघ के प्रचारक युद्धवीर को बदनाम और अपमानित करने की नीयत और मंशा से फर्जी, असत्य व भ्रामक सूची बनाई गई है।

इसमें कुछ लोगों के नाम लिखकर उन्हें प्रांत प्रचारक का रिश्तेदार और नातेदार बताया गया है। आरोप लगाया गया है कि वर्ष 2017-2022 के बीच अपने पद व प्रभाव का दुरुपयोग कर सरकारी विभागों में रिश्तेदारों को नौकरियां दीं गईं। सूची में दर्ज नाम के लोग न तो सेवा में कार्यरत हैं और न ही उनका किसी प्रकार का संपर्क या संबंध प्रांत प्रचारक से है। मुख्यमंत्री ने पुलिस महानिदेशक को इसकी उच्चस्तरीय जांच कर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
सीएम के आदेश के बाद डीजीपी अशोक कुमार ने जांच साइबर थाने को सौंप दी है, इस मामले में अज्ञात के खिलाफ आईटी एक्ट के तहत साइबर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है। डीजीपी अशोक कुमार का कहना है कि जिन-जिन लोगों ने इस पोस्ट को औरों को शेयर किया है, उनकी पहचान कर पूछताछ की जाएगी।

यहीं से सवाल शुरू हो जाते है, कि इस प्रकार की कई सूचियों को पूर्व सीएम हरीश रावत ने भी शेयर किया है, तो मुकदमा अज्ञात में क्यों दर्ज किया गया? क्या इस मामले में हरीश रावत से पूछताछ होगी? क्या सूची में शामिल नाम, पद, पते आदि की भी छानबीन हो सकेगी। पहले से ही कई घोटालों की जांच कर रही एसटीएफ इस नये मामले की गुत्थी आसानी से सुलझाने में सफल हो सकेगी।

दरअसल, हमने बात शुरू की तो थी भर्ती घोटालों की, बात करते-करते हम भी एसटीएफ की तरह इस और मुड़ गये, मुड़ना भी स्वभाविक था, क्योंकि मामला ही इतना संगीन है। ज्यों-ज्यों दवा की जा रही है, दर्द बढ़ता ही जा रहा है।
उत्तराखंड के मेहनतकश नौजवानों के साथ पहले ही कई छलावे हो चुके थे, कई सालों की मेहनत पर खोखले हो चुके सिस्टम ने पानी फेर दिया था, जो अब जले पर नमक छिड़कने को यह सूची वायरल की गई है। जिन 13 भर्तियों को रद्द किया गया है, उनकी तैयारी कर रहे युवाओं का क्या कसूर है? अब नई सूची यदि सच निकलती है, तो बस यही कहा जाएगा, कि उत्तराखंड में नौकरी, खनन का पट्टा, निर्माण कार्य हासिल करने के लिए किसी योग्यता नहीं, बल्कि नेताओं की नजदीकी का पैमाना होना जरूरी है।
अब बात करते हैं पल-पल बदल रहे भर्ती घोटालों के मास्टर माइंड की। उत्तराखंड पुलिस व एसटीएफ को हर दिन नये टास्क का सामना करना पड़ रहा है। पहले कहा गया कि यही असल चिड़िया है, जिसने दाना-पानी डाल कर ‘अफसरों-माननीयों’ को अपना शिकार बनाया। उत्तराखंड की हसीन वादियों की सैर कराकर, प्रकृति के नजदीक ले जाकर सुरीली आवाज से रूबरू कराकर ‘बड़ा’ खेला किया।

फिर कहा कि नहीं यह तो फलां ‘कछुए’ का काम है। अब चिड़िया और कछुआ चंगुल में आ चुके हैं, लेकिन असल गुनाहगार अब भी अदृश्य है। कहने को तो पेपर लीक मामले में अब तक 41 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। नये मास्टरमाइंड कहे जा रहे सैयद सादिक मूसा की गिरफ्तारी के बाद कंपनी के एक और कर्मचारी का नाम सामने आया है।
आयोग के स्नातक स्तर के भर्ती परीक्षा पेपर लीक प्रकरण में गिरफ्तार किये गये सैय्यद सादिक मूसा पर उत्तराखंड ही नहीं, उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश में हुई कई प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक कराने का संदेह है। दरअसल, मूसा आरएमएस टेक्ना साल्यूशंस कंपनी के मालिक राजेश चौहान का दोस्त बताया जा रहा है।

ऐसे में एसटीएफ लगातार कड़ियां जोड़ रही है कि उसने कहां-कहां और कब-कब पेपर लीक कराए। उत्तर प्रदेश व हिमाचल राज्य से भी इसी प्रिंटिंग प्रेस को काम दिया गया था, ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि इन राज्यों में भी आरोपित ने गड़बड़ी की होगी।

एसटीएफ के हवाले से कहा गया है कि आरोपित ने पेपर लीक करवाने की बात स्वीकार की है, आरोपित ने यह भी बताया कि उप्र व हिमाचल प्रदेश में भी उसने पेपर लीक करवाए थे, लेकिन कौन-कौन सी परीक्षाओं के उसने पेपर लीक किए, इसकी कोई जानकारी एसटीएफ के पास फिलहाल नहीं है। यही जानकारी हासिल करने को एसटीएफ ने मूसा की रिमांट मांगी है, ताकि रिमांड के दौरान उससे राज उगलवाया जा सके। यही नहीं, उसके सिर पर किस सफेदपोश या गिरोह का हाथ है, इसकी जानकारी भी रिमांड के दौरान ही मिल सकेगी।
वहीं, विजिलेंस भी मूसा के रिमांड का इंतजार कर रही है। वर्ष 2015 में हुई दारोगाओं की भर्ती में भी मूसा का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है, ऐसे में विजिलेंस भी उससे पूछताछ करेगी। वहीं, साल 2016 के ग्राम विकास अधिकारी भर्ती घोटाले मामले में भी एसटीएफ ने एक और गिरफ्तारी की है।

ग्राम पंचायत विकास अधिकारी परीक्षा में ओएमआर शीट से छेड़छाड़ कर कुछ छात्रों को परीक्षा पास कराने के आरोप में उधमसिंह नगर के काशीपुर निवासी मुकेश चौहान पुत्र छत्रर सिंह निवासी भूमि सदन को गिरफ्तार किया है। अभियुक्त मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद (सुल्तानपुर) थाना ठाकुर द्वारा इलाके का रहने वाला है।
पेपर लीक मामले के अलावा, ग्राम पंचायत विकास अधिकारी परीक्षा में ओएमआर शीट से छेड़छाड के प्रकरण की जांच के साथ-साथ राज्य गठन के बाद से वर्तमान तक विधानसभा में हुई नियुक्तियां जांच भी चल रही हैं। हालांकि, यह जांच विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूड़ी भूषण की ओर से गठित की गई विशेषज्ञ समिति कर रही है।

विधानसभा में बैकडोर नियुक्तियां विवाद में आने के बाद अध्यक्ष रितु खंडूड़ी भूषण ने जांच के लिए तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति गठित की थी। इसके साथ ही समिति को एक माह के भीतर जांच रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए थे। विशेषज्ञ समिति रात-दिन नियुक्तियों की जांच कर रही है। राज्य गठन के बाद से 2022 तक कांग्रेस व भाजपा सरकार के समय में अलग-अलग विधानसभा अध्यक्षों के कार्यकाल में हुई नियुक्तियां को जांच की जा रही है।
समिति ने एक-एक नियुक्तियों की फाइल व पत्रावलियों को विधानसभा अधिष्ठान अनुभाग से मांग लिया है, अब समिति की जांच अंतिम चरण में है। फाइलों व पत्रावलियों की जांच के बाद रिपोर्ट तैयार की जा रही है। समिति स्व. प्रकाश पंत के समय हुई 130, यशपाल आर्य के कार्यकाल में हुई 85, स्व. हरबंस कपूर के दौर में हुई 35, गोविंद कुंजवाल की शहंशाहियत में हुई 158 और प्रेमचंद अग्रवाल के प्रेम से नौकरी पाये 73 लोगों की जांच कर रही है। इसके अलावा वन दरोगा भर्ती मामले की जांच कर रही एसटीएफ के एसएसपी अजय सिंह के मुताबिक, वन दरोगा के 316 पदों पर भर्ती परीक्षा 16 से 25 सितंबर 2021 के बीच 18 शिफ्टों में ऑनलाइन हुई थी।
उत्तराखंड में वन दरोगा भर्ती घपले में दर्ज मुकदमे को रायपुर थाने में ट्रांसफर कर दिया गया है। छह लोगों के खिलाफ यह मुकदमा साइबर थाने में चार सितंबर को दर्ज किया गया था। मैमर्स एनएसईआईटी लिमिटेड एजेंसी के माध्यम से यह परीक्षा कराई गई थी। इस कंपनी को व्यापम, मध्य प्रदेश ने बैन किया था। हरिद्वार के दो दलाल भी इस मामले में गिरफ्तार हो चुके हैं।

जांच के बाद परीक्षा में अनियमितता और कुछ छात्रों के अनुचित साधनों के प्रयोग की पुष्टि हुई थी। इसके बाद साइबर थाने में आईटी एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया था। कुछ छात्रों को चिह्नित भी कर लिया गया है। इसमें शामिल कुछ नकल माफिया को हिरासत में लेकर गहन पूछताछ के बाद इस परीक्षा को कराने वाली एजेंसी की संलिप्तता के साक्ष्य भी मिले थे। ऐसे में अब धोखाधड़ी, आपराधिक और नकल अधिनियम की धाराएं भी लगाई गई हैं। इस मामले को साइबर थाने से रायपुर थाने में ट्रांसफर किया गया है, मुकदमे की विवेचना भी एसटीएफ ही कर रही है।
भर्ती घोटाले का मामला दिन पर दिन पेचीदा होता जा रहा है, और राज्य सरकार सीबीआई जांच से कतरा रही है। जिसको लेकर कई प्रकार के सवाल उठ रहे हैं। क्या वास्तव में मूसा ही असल मास्टरमांइड है? क्या एसटीएफ एस राजू और बड़ोनी से पूछताछ नहीं करेगी? हाकम के रिजॉर्ट में हवा-पानी का आनन्द लेने वालों पर शिकंजा कसा जा सकेगा? भर्ती घोटाले-पेपर लीक मामले की आंच उत्तराखंड से निकल कर उत्तर प्रदेश व हिमाचल तक जा पहुंची है।

और जिसको मास्टरमांइड कहा जा रहा है, वह नेपाल जाने की तैयारी में था, उसके आका कहां जाने की तैयारी कर रहे होंगे? क्या हाकम-मूसा बिना किसी सियासी छत के इतने बड़े खेल को अंजाम दे सकते हैं? ऐसी सियासी छतों पर एसटीएफ हाथ डाल सकेगी? इन सवालों को ‘पूछता है भारत’ वाले यदि नहीं उठा रहे, तो उत्तराखंड का नौजवान तो जरूर उठा रहा है। इन हालातों में क्या सीबीआई की जरूरत महसूस नहीं हो रही, जबकि फिलवक्त देश में विपक्ष को इसी ‘तोते’ से कैद किया जा रहा है। विधान सभा भर्ती मामले में भी क्या कोई कुंजवाल-अग्रवाल से पूछताछ करने की हिम्मत दिखा सकता है?

…वो कहें तो में विष पी लूंगा: हरीश


जिस सूची को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) फर्जी बता रहा है और प्रांत कार्यवाह दिनेश सेमवाल की शिकायत पर साइबर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है, उस सूची को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने फेसबुक पेज पर साझा किया है। सूची के साथ हरीश रावत ने एक पोस्ट भी लिखी है, जिसमें उन्होंने खुलासा किया कि कुछ खोजी लोगों ने 20 ऐसी सूचियां उन्हें भेजी हैं, जिनमें से वह दो सूचियों को अपने पेज पर पोस्ट कर रहे हैं। आरोप है कि पिछले पांच-छह वर्षों में ऐसी सैकड़ों नियुक्तियां हुई हैं, जो बैकडोर से हुई हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस नेता हरीश रावत ने इंटरनेट मीडिया में वायरल नियुक्तियों की सूची के आलोक में राज्य में छह वर्षों में हुई नियुक्तियों को लेकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि इसी तरह से ठेके भी दिलवाए गए हैं। इनमें लोनिवि, सिंचाई, यूपीसीएल समेत अन्य विभागों में साज-सज्जा की सामान खरीद आदि के ठेके भी शामिल हैं। यदि ये सभी लिस्ट संज्ञान में आ जाएं तो पता चल जाएगा कि पिछले वर्षों के अंदर उत्तराखंड को किस कदर लूटा या लुटवाया गया है।

उन्होंने कहा कि कुछ और खोजी लोग अधिक गहराई तक में जाकर सत्य को उजागर करेंगे। रावत ने कहा कि निर्माण वाले विभागों में वार्षिक टर्नओवर के नाम पर हमारे लोग ठेकेदार नहीं, किटकनदार बनकर रह गए हैं। हमारी जमीनों पर रिजार्ट बन रहे हैं, हम चौकीदार बन रहे हैं। सरकारी विभागों में पद खाली हो रहे हैं, अस्थाई नियुक्तियों के नाम पर गैर हकदार लोगों को नियुक्तियां दे दी जा रही हैं।
हरीश रावत यही नहीं रुके, उन्होंने कहा कि भावनाएं व्रत तुड़वा देती हैं। मैंने कहा था कि मैं भर्तियों को लेकर 2 माह तक कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष के विवेक पर मैंने भरोसा जताया था। ऐसी लिस्टें आ रही हैं, कितनी सच हैं, कितनी गलत हैं, मैं नहीं जानता।

लेकिन समझ में नहीं आ रहा है कि यह सब कैसे हुआ है। संस्थाएं हमने खड़ी की हैं, चाहे कोई भी विश्वविद्यालय हो। उनमें यदि नियुक्तियां हुई हैं तो चिंताजनक है। संस्थाएं नष्ट हो जाएंगी। मैं तू-तू, मैं-मैं में नहीं पड़़ना चाहता। इसलिए इस सारे प्रकरण से अपने को असंबद्ध करते हुए मैं उन संस्थाओं के प्रमुखों से कहना चाहता हूं कि ईमानदारी से अपनी संस्थाओं में हुई नियुक्तियों का ब्यौरा सार्वजनिक करें। केवल कह देने भर से नहीं होगा। नियुक्तियां यदि अस्थाई आधार पर भी हुई हैं या नियुक्तियां किसी आधार पर भी हुई हों, उस सबका ब्यौरा साझा होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मैं व्रत नहीं तोड़ता, यदि मेरे मन पर आघात नहीं लगता। क्योंकि यह संस्थाएं कांग्रेस के कार्यकाल में खड़ी हुई हैं, हम इन संस्थाओं पर गर्व करना चाहते हैं। जब संस्थाएं टूटती व बिखरती हैं तो उसका कितना नुकसान समाज व राज्य को होता है।

इसका आभास हमको अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में हुई गड़बड़ियों से हुआ है न? फिर भी कुछ लोग मेरे दर्द को समझे बिना बुरा-भला कह रहे हैं। खैर, विष पीने की मेरी आदत है। वो कहें वो विष मैं पी लूंगा। लेकिन, अब इन संस्थाओं को बचाने के लिए अपने दर्द को मैं नहीं रोक पाया, उसके लिए मैं उत्तराखंड से क्षमा ही मांग सकता हूं।

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