देहरादून। उत्तराखंड में किशोर न्याय प्रणाली के सुदृढ़ीकरण व पोक्सो अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन” विषय पर दो दिवसीय परामर्श कार्यशाला का आयोजन किशोर न्याय समिति उच्च न्यायालय उत्तराखंड के तत्वावधान में महिला कल्याण के सहयोग से किया गया।
18 सितम्बर 2022 को प्रथम सत्र का विषय था “पॉक्सो अधिनियम 2012 की आत्मा के आधार पर अपराधों की विवेचना”
सत्र की अध्यक्षता जस्टिस रविन्द्र मैठाणी ने की।
प्रथम वक्ता के रूप में अधिवक्ता अनंत अस्थाना ने बताया कि पॉक्सो कोर्ट में बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम की शक्तियां भी निहित हैं अतः दोनों अधिनियमों का उपयोग किया जा सकता है।
अस्थाना ने उपस्थित पुलिस अधिकारियों को जानकारी दी कि पोक्सो प्रकरण मे विवेचक अधिकारी को किन बारीकियों का ध्यान रखना चाहिए ताकि पीड़ित के अधिकार सुरक्षित रहें। इन प्रकरणों में बाल कल्याण समिति द्वारा जारी आयु प्रमाण पत्र का संज्ञान भी विवेचना में होना चाहिए।
वक्ता के रूप में अध्यक्ष ,महिला आयोग श्रीमती कुसुम कंडवाल ने बताया कि आयोग पोक्सो प्रकरणों को गंभीरता से लड़ता है, जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक से रिपोर्ट तलब की जाती है।
पीड़िता को बयां के लिए बार बार न बुलाया जाए, उसके साथ बाल सुलभ व्यवहार करें। बाल गृहों में सुरक्षा कड़ी रखी जाए व विद्यालयों में लड़कियों को जागरूक करने की आवश्यकता है ताकि वे यौन शोषण से सुरक्षित रहें।
जस्टिस रविंद्र मैठाणी ने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका, बच्चों से जुड़े सभी हित धारकों को बच्चों का सम्मान करना सीखना होगा।
द्वितीय तकनीकी सत्र का विषय था “पोक्सो अधिनियम में बाल हितेषी न्यायालय प्रक्रिया” ‘सत्र की अध्यक्षता न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा ने की।
सुश्री संपूर्णा बेहुरा निदेशक बचपन बचाओ आंदोलन ने कहा कि बाल हितेषी प्रक्रिया मूलतः मानसिकता से जुड़ी है, जो बच्चों का सम्मान करती है। पोक्सो में सपोर्ट पर्सन की अत्यधिक महत्ता है जो लीगल ऐड, चिकित्सा सुविधा, काउंसलर, द्विभाषी आदि की सुविधा बच्चों को उपलब्ध करवाने में सहायक होते हैं।
न्यायालयों को बाल हितैषी बनाने में निर्भया फण्ड से राशि भारत सरकार द्वारा प्रदान की गई है।
अध्यक्ष उत्तराखंड बाल आयोग ने कहा कि उच्च व निम्न दोनों आय वर्गों में पॉक्सो के प्रकरण होते हैं लेकिन रिपोर्टिंग गरीब वर्ग की ज्यादा है। मेडिकल डॉक्टर व स्टाफ को प्रशिक्षण की आवश्यकता है कि ऐसे पीड़ितों के सैंपल कैसे लें।
ओपन हाउस सेशन में जस्टिस संजय कुमार मिश्र ने कहा कि बच्चों के कानूनों के क्रियान्वयन में संवेदनशीलता व कर्तव्यपरायणता की आवश्यकता है। सेवाभाव से ही बाल कल्याण संभव है।
उत्तराखंड की बाल देखरेख संस्थाओं के बच्चों को कबड्डी, रस्साकशी, दौड़, मेहंदी, निबंध, पेंटिंग, ऐपण आदि प्रतियोगिताओं के पुरस्कार व प्रमाण पत्र प्रदान किये गए।
उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल श्री विवेक भारती शर्मा ने धन्यवाद संबोधन में कहा कि बच्चों के उज्जवल भविष्य में ही राष्ट्र का उज्जवल भविष्य निहित है। उन्होंने उच्च न्यायालय व महिला कल्याण की टीम को सफल आयोजन के लिए बधाई दी।