उत्तराखंड को बाल हितैषी राज्य बनाएगी सरकार: मुख्यमंत्री

देहरादून। ‌उत्तराखंड में किशोर न्याय प्रणाली के सुदृढ़ीकरण व पोक्सो अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन विषय पर आयोजित दो दिवसीय परामर्श कार्यशाला का उदघाटन मा. मुख्यमंत्री  पुष्कर सिंह धामी ने किया।

अवधि में किशोर न्याय समिति उच्च न्यायालय उत्तराखंड के तत्वावधान में महिला कल्याण के सहयोग से आयोजित परामर्श कार्यशाला में उन्होंने उत्तराखंड को बाल हितेषी राज्य बनाने का आव्हान किया।

उद्घाटन सत्र में चीफ जस्टिस  विपिन सांघी ने बच्चों के प्रकरण में संवेदनशीलता व त्वरित न्याय की महत्ता, बाल मनोविज्ञान को समझने व पुनर्वास में गुणवत्ता पर प्रकाश डाला।

जस्टिस आलोक वर्मा ने कहा कि राष्ट्र का भविष्य स्वस्थ व सुरक्षित बच्चों में हैं। प्यार व संरक्षण हर बच्चे का अधिकार है। संविधान की धारा 31 बच्चों के प्रति जिम्मेदारी तय करता है। कई निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों को राष्ट्र की संपत्ति बताया है। बच्चों का शोषण लंबे समय मे देश को कुप्रभावित करता है। हमें बच्चों को सुरक्षित, स्वच्छ व आशा भरा भविष्य देना है।

श्री हरि चंद्र सेमवाल ने स्वागत संबोधन में मुख्यमंत्री जी का धन्यवाद देते हुए कहा कि
किशोर न्याय समिति मा0 उच्च न्यायालय अपेक्षा को पूरा किया जायेगा। राज्य सरकार बाल संरक्षण के लिए समर्पित है

जस्टिस रविंद्र मैठाणी ने कहा कि आज बच्चों की सुरक्षा का पवित्र दिन है। कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका, बच्चो से जुड़े सभी हित धारक उपस्थित हैं।

उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल श्री विवेक भारती शर्मा ने धन्यवाद संबोधन में कहा कि बच्चों के हित से जुड़े हम सभी अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन कल्याण की भावना से करें।

17 सितम्बर 2022 को प्रथम तकनीकी सत्र का विषय था ‘किशोर न्याय अधिनियम 2015 व पोक्सो अधिनियम 2012 का प्रभावी क्रियान्वयन”। सत्र की अध्यक्षता न्यायमूर्ति श्री संजय कुमार मिश्रा ने की।
पुलिस महानिदेशक श्री अशोक कुमार ने कहा कि यह दोनों अधिनियम नए हैं लेकिन पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी व उनके प्रशिक्षक दोनों पक्ष ही इन अधिनियमों को गहराई से नही जान पाये हैं। 24 घंटे के भीतर पॉक्सो पीड़ित का मेडिकल अभी भी चुनौती है। उन्होंने बताया कि राज्य के समस्त 160 थानों को महिला हितेषी बनाना है। प्रत्येक जिले में एक थाना बाल मित्र थाना बनाया गया है। वर्ष 2021 से महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ने का कारण केस दर्ज होने की दर में बढ़ोतरी है। उन्होंने खोये हुए बच्चों को घर वापिस भेजने हेतु ऑपरेशन स्माइल व भिक्षावृत्ति रोकने हेतु आपरेशन मुक्ति के अनुभव सांझा किये।

अधिवक्ता अनंत अस्थाना ने कहा कि विधि विरुद्ध बच्चा समाज की असफलता व उसके दंश का प्रतीक है।किशोर न्याय अधिनियम समाज का प्रायश्चित है। पोक्सो व किशोर न्याय अधिनियम दोनों ही सामाजिक रूप से संवेदनशील है व जिम्मेदारी से इनका क्रियान्वयन करना होगा। बाल कल्याण समिति को इस अधिनियम ने असीमित शक्तियां दी हैं, उनका उपयोग सही तरह से करना व आदेश सही तरीके सेंकरने का प्रशिक्षण बाल कल्याण समितियों को दिए जाने की आवश्यकता है।

बाल अधिकार विशेषज्ञ श्री धनंजय टिंगला ने कहा कि निर्भया प्रकरण में भी विधि विरुद्ध बच्चा सामाजिक दुर्व्यवहार व शोषण का शिकार रहा था। अतः बच्चे के शोषण के भयानक दुष्परिणाम समाज भुगतता है लेकिन बच्चे को अपराधी नहीं बल्कि समाज के व्यवहार की अभिव्यक्ति के रूप में देखना होगा। अंतरराष्ट्रीय मानकों पर किशोर न्याय अधिनियम श्रेष्ठतम कानून है लेकिन क्रियान्वयन में बाधाएं हैं। उन्होंने उत्तराखंड को ऑपेरशन मुक्ति व ऑपरेशन स्माइल के लिए बधाई दी।

ओपन हाउस सेशन में श्रीराम आश्रम हरिद्वार के श्री राजीव भल्ला, बाल कल्याण समिति अल्मोड़ा के श्री रघु तिवारी, पिथौरागढ़ से लक्ष्मी भट्ट ने बताया कि पोक्सो पीड़ित के मेडिकल में समस्या होती है व उनका सामना अपराधी से होता है। हर जनपद में बाल गृह नही हैं, इसके समाधान के लिए बाल कल्याण समिति को फिट पर्सन व फिट फैसिलिटी घोषित करनी चाहिए।

अध्यक्ष उत्तराखंड बाल आयोग ने कहा कि विशेष किशोर न्याय पुलिस की पोस्टिंग लंबी व नियत अवधि तक होनी चाहिए। किशोर न्याय व पोक्सो से जुड़े हित धारकों का प्रशिक्षण व अंतर्विभागीय समन्वय आवश्यक है।

द्वितीय सत्र का विषय था ” विधि विरुद्ध, आवश्यकता की श्रेणी के बच्चों व पोक्सो उत्तरजीवियो का मानसिक स्वास्थ्य व मनोविज्ञान”। इस सत्र की अध्यक्षता न्यायमूर्ति श्री रविन्द्र मैठाणी ने की व क्लीनिकल मनोविज्ञानी डॉ प्रतिभा शर्मा ने पैरेंटिंग की महत्ता पर प्रकाश डाला। ATI नैनीताल की प्रतिनिधि डॉ मंजू ढोढ़ीयाल ने बाल गृहों के बच्चों पर शोध के परिणामों को प्रस्तुत किया। बचपन बचाओ आंदोलन से डॉ संगीता गौड़ ने बच्चों से निरंतर संवाद की आवश्यकता पर बल दिया

तृतीय सत्र का विषय था बच्चों का पुनर्वास, अध्यक्षता न्यायमूर्ति श्री आलोक कुमार वर्मा ने की। कर्नाटक के पूर्व राज्य बाल आयोग के अध्यक्ष श्री अन्थोनी सबेस्टियन ने दो फिल्मों के माध्यम से शोषण के शिकार बच्चों के पुनर्वास की महत्ता को उजागर किया। बचपन बचाओ आंदोलन से ज्योति माथुर ने कहा कि पुनर्वासित बच्चों का फॉलोअप बेहद जरूरी है।

अंतिम सत्र का समापन न्यायमूर्ति श्री आलोक कुमार वर्मा ने एक कविता से किया….
जब बचपन तुम्हारी गोद मे
आने से कतराए
समझो कुछ गलत है…

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