ब्रेन की संरचना प्राचीन मानवों से भिन्न है, डीएनए के बदलाव की वजह से विकसित हुई इंसान की बुद्धि

रांची। इंसान के क्रमिक विकास की दिशा में वैज्ञानिक हर गुत्थी को सुलझाना चाहते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान से यह तो पहले ही पता चल चुका है कि हम चिंपाजी के बाद के क्रमिक विकास के परिणाम है। प्राचीन काल के इंसानों के बारे में भी हमें हर रोज नई जानकारी मिल रही है।
इसकी वजह से पूर्व की अवधारणाओं को बदलना पड़ रहा है। अब इसी क्रम में पता चला है कि सिर्फ एक डीएनए के बदलाव की वजह से आज के दौर का इंसान अपने दिमाग की शक्ति का अन्य प्राणियों से बेहतर इस्तेमाल कर पा रहा है। हमारी प्राचीन पीढ़ी, जिन्हें नेदरलैंडल्स कहा जाता है, के पास यह तकनीकी सुविधा नहीं थी।

दिमाग का यह बदलाव ही हमें उन जानवरों से अलग बनाता है तो क्रमिक विकास के दौर में कभी हमारे करीबी रिश्तेदार हुआ करते हैं। डीएनए के इस बदलाव के बारे में माना जा रहा है कि यह विकास कई हजार वर्षों के निरंतर काल में हुआ।
इस बारे में प्रकाशित शोध प्रबंध में विस्तार से जानकारी दी गयी है। यह बताया गया है कि इस शोध में मैक्स प्लैंक इंस्टिट्यूट के अलावा जर्मनी के शोधकर्ता भी शामिल थे। शोधकर्ताओं ने हमारे पूर्वजों से भिन्न वह जीन भी खोज निकाला है, जिसकी वजह से यह सब हुआ है। सिर्फ इस एक वजह से इंसान जिस तरीके से सोच और आचरण कर सकता है, दुनिया के दूसरे प्राणी वैसा नहीं कर पा रहे हैं। इस क्रम में यह भी पता चल गया है कि हमारे सबसे करीबी पूर्वज रिश्तेदार चिंपांजी के मुकाबले हमारा ब्रेन चार गुणा बड़ा है।

इसी वजह से हम अधिक सोच पाते हैं। कई किस्म की कठिन मुद्दों को सुलझाने का जो ज्ञान हमें प्रकृति से प्राप्त होता है, वह अन्य प्राणियों में नहीं है। ब्रेन का आकार ही सिर्फ नहीं बदला है बल्कि इंसानी दिमाग में न्यूरॉनों की संख्या भी अधिक होने की वजह से ऐसा होता है।
करीब सात मिलियन वर्ष पहले हम एक ही प्रजाति थे। उसके बाद क्रमिक विकास के दौर में अलग अलग प्रजातियों का विकास होता चला गया। प्राचीन इंसान की पहली पीढ़ी को होमोसैपियंस कहा गया। दिमाग के बढ़ने का यह क्रम करीब दो मिलियन वर्ष पहले प्रारंभ हुआ है। मिले फॉसिलों से इसकी पुष्टि होती है। इंसान के वर्तमान दिमाग का आकार करीब छह लाख वर्ष पूर्व हासिल हुआ था, जो उस दौर की इंसानी प्रजाति नेदरलैंडल्स की थी। उनके दिमाग का आकार हमारे जितना ही था। अंदर में इसमें काफी कुछ अलग था। इस नेदरलैंडल्स की दूसरी प्रजाति डिसोवांस मे भी ऐसा ही देखा गया है।

आधुनिक जेनेटिक विज्ञान की मदद से यह पता चला है कि हमारे डीएनए में 19 हजार जीन हैं। इसमें जो प्रोटिन तैयार होते हैं, वे प्राचीन काल के इंसानों के जैसे ही है। लेकिन इसके बीच 96 किस्म के जेनेटिक म्युटेशनों की वजह से आधुनिक इंसान का ब्रेन अधिक काम करने की शक्ति हासिल कर चुका है। इसी शोध के तहत टीकेटीएल1 नामक एक जीन की पहचान की गयी है जो दिमाग के सामने वाले हिस्से में मौजूद होता है।

इस जीन की गुत्थी सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों ने चूहों और पक्षियों पर इसे आजमाया है। यह देखा गया कि जब यह जीन दूसरे प्राणियों में प्रवेश कराया गया तो उनके दिमाग में भी अधिक न्यूरॉन बनने लगे। अब इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि यह एक जीन ही दिमाग में कई किस्म की जटिल समस्याओं को समझने और सुलझाने की दिमागी शक्ति प्रदान करता है। इस जीन की सक्रियता की वजह से इंसानी दिमाग के अंदर की रासायनिक और विद्युतीय संरचना भी अपने पूर्वजों से भिन्न हो चुकी है। अब शोध दल उन 96 प्रोटिनों की भी बारी बारी से जांच कर हरेक के असर को समझने की कोशिश कर रहा है।

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