नैनीताल । भूकंपीय संवेदनशीलता के .ष्टिकोण से जोन-4 में आता है, जैसे जिस तरह शहर के आधार बलियानाला से लेकर नगर के मुकुट आल्मा व नैना पहाडिय़ों पर बड़े भूस्खलन लगातार होते रहे हैं, उससे नगर की भूगर्भीय संवेदनशीलता अपने जोन के दूसरे शहरों के मुकाबले कहीं अधिक है।
नैनीताल में 1841 में बसासत के बाद से ही भूस्खलनों के साथ मानो चोली-दामन का साथ रहा है। यहां 1866 व 1879 में आल्मा पहाड़ी में बड़े भूस्खलनों से इनकी आहट शुरू हुई और 18 सितंबर 1880 को वर्तमान रोपवे के पास आए महा विनाशकारी भूस्खलन ने उस दौर के केवल ढाई हजार की जनसंख्या वाले नगर में 108 भारतीयों व 41 ब्रितानी नागरिकों सहित 151 लोगों को जिंदा दफन कर दिया था।
वहीं 17 अगस्त 1898 को बलिया नाला क्षेत्र में आया भूस्खलन नगर के भूस्खलनों से संबंधित इतिहास की दूसरी सबसे बड़ी दुर्घटना बनी। इस दुर्घटना में 27 भारतीयों व एक अंग्रेज सहित कुल 28 लोग मारे गए थे। इधर बलिया नाला में बीती 20 अगस्त 2022की रात्रि तथा इससे पहले 12 सितंबर 2017, 20 अक्टूबर 2021 व 23 अक्टूबर 2021 को हुए ताजा भूस्खलनों के बाद यहां पूर्व में हुए और कमोबेश हर वर्ष होने वाले भूस्खलनों की कड़वी यादें फिर हरी हो गयी हैं।
नगर को इन भूस्खलनों के खतरों से बचाने के लिए बनी हिल साइड सेफ्टी कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार 1898 के भूस्खलन की घटना की पृष्ठभूमि में नौ अगस्त से 17 अगस्त तक नगर में हुई 91 सेमी बारिश कारण बनी थी। बारिश का बड़ी मात्रा में पानी यहां की चट्टानों में फंस गया था।
आज भी इस क्षेत्र में भारी बरसात और नैनी झील के पानी के किसी न किसी रूप में रिसकर यहां जल स्रोत फूटने के रूप में जारी है, जिसकी पुष्टि यहां खुले अनेक बड़े जल श्रोतों से होती है। 1898 के बाद भी बलिया नाला क्षेत्र में 1935 तथा 1972 में बड़े भूस्खलन हुए, तथा इनके अलावा भी यह क्षेत्र लगातार बिना रुके धंसता ही जा रहा है। 1972 में हुआ भूस्खलन हरिनगर के तत्कालीन वाल्मीकि मंदिर के पास आया था।
स्थानीय सभासद डीएन भट्ट बताते हैं कि इस घटना के बाद यूपी के तत्कालीन वित्त मंत्री नारायण दत्त तिवारी ने सुधार कार्यों के लिए 95 लाख रुपए स्वी.त किए थे, तथा पूरे क्षेत्र को स्लिप जोन घोषित कर दिया था।
लेकिन गलती यह हुई कि उन्होंने इसकी डीपीआर बनाने का काम सिंचाई विभाग को और बचाव कार्यों को लोनिवि को दिया। सिचाई विभाग ने डीपीआर बनाने में करी ब 3 वर्ष लगा दिए। 2004-05 में जब तक डीपीआर बनी और करीब 15 करोड़ रुपए आए, तब तक बलिया नाला का घाव नासूर बन चुका था।
1972 की घटना के बाद गठित हुई हाई लेवल एक्सपर्ट कमेटी ने बलिया नाला को चैनल नंबर एक से दुर्गापुर-वीरभट्टी तक आरसीसी का आधार बनाकर इस चैनल के रूप में विकसित करने की संस्तुति भी की थी। किंतु काम न होने से पैसा आकर लैप्स हो गया।
वहीं यूपी सरकार ने 2004-05 में बनी अपनी डीपीआर में 95 लाख की जगह तब तक बढ़ चुकी लागत के अनुसार 26-27 करोड़ के प्रस्ताव बनाए, लेकिन इसके सापेक्ष उत्तराखंड बनने के बाद दो बेड-बार व अन्य सुधारात्मक कार्यों के लिए करीब 15 करोड़ रुपए स्वी.त व अमुक्त हुए, पर सिंचाई विभाग के द्वारा किए गए यह कार्य बिल्कुल भी नहीं टिके और ध्वस्त हो गए।
इधर 204 में पुन: यहां बड़ा भूस्खलन हुआ तथा इसके बाद छोटे-बड़े अनेक भूस्खलन होते रहे। यह कार्य और भ्रष्टाचार को लेकर इन कार्यों की अब तक ठंडे बस्ते में पड़ी उच्च स्तरीय जांच भी हुई। अब मौजूदा हालात यह हैं कि अंग्रेजी दौर के बने बेड-बार आज भी सुरक्षित हैं, जबकि बाद में बने 8 ह्यबेड-बारह्ण व अन्य सुधानात्मक कार्यों के कहीं निशान ढूंढना भी मुश्किल है।
एमबीटी सहित कई भूगर्भीय भ्रंश बनाते हैं नैनीताल को खतरनाक
नैनीताल के भूगर्भीय .ष्टिकोण से बेहद कमजोर होने के पीछे हिमालयी क्षेत्र के सबसे बड़े मेन बाउंड्री थ्रस्ट यानी एमबीटी सहित कई भ्रंश भूमिका निभाते हैं। एमबीटी नैनीताल के पास ही बल्दियाखान, ज्योलीकोट के पास नैनीताल के आधार बलिया नाले से होता हुआ अमृतपुर की ओर गुजरता है।
वहीं नैनीताल लेक थ्रस्ट सत्यनारायण मंदिर, सूखाताल से होता हुआ और नैनी झील के बीचों-बीच से गुजरकर शहर को दो भागों में बांटते हुए गुजरने वाला नैनीताल लेक थ्रस्ट तल्लीताल डांठ से ठीक बलिया नाले से गुजरता है। यूजीसी के वैज्ञानिक डा.बहादुर सिंह कोटलिया के अनुसार यह थ्रस्ट इतना अधिक सक्रिय है कि ज्योलीकोट के पास एमबीटी को काटते हुए उसे भी प्रभावित करता है।
इसके अलावा एक छोटा मनोरा थ्रस्ट भी बलिया नाला की संवेदनशीलता को बढ़ाता है। वहीं भूवैज्ञानिक डॉ. सीसी पंत के अनुसार नैना पीक तथा आल्मा पहाड़ी पर सात नंबर से बिड़ला तक का थ्रस्ट भी सक्रिय है। वहीं अन्य सक्रिय थ्रस्ट की वजह से गत 29 जुलाई को भवाली रोड पर भूस्खलन हुआ और यह सडक़ बंद हो गई।
इस दशक में लगातार जारी हैं बलियानाला में भूस्खलन
बलिया नाला में 10 सितंबर 2014 को हुए भूस्खलन से जीआईसी से ब्रेवरी को जाने वाली सीसी पैदल मार्ग ध्वस्त हो गया था। आगे 10 सितंबर 2018 से इस क्षेत्र के रईस होटल व हरीनगर मोहल्लों में जबरदस्ती भूस्खलन हुआ, जिसके कारण 25 परिवारों के करीब 9 सदस्यों को जीआईसी, जीजीआईसी व जूनियर हाईस्कूल में अस्थाई तौर पर स्थापित किया गया।
इस बीच 30 सितंबर को सुबह करीब 11 बजे जीआईसी के खेल मैदान का एक हिस्सा भी भूस्खलन की भेंट चढक़र बलियानाला में समा गया। भूस्खलन का यह सिलसिला 20 अक्टूबर तक भी जारी रहा। आगे 22 अगस्त 2021 के आसपास भी यहांं रईश होटल के मोड़ के पास सिपाही धारे के रास्ते के नीचे बड़ा और जीआईसी के फील्ड के पास छोटा भूस्खलन हुआ।