उठिये, चलिये और दौड़िये…

सुशील उपाध्याय
सही क्या है ?
आये, गये, जाये, पाये, खाये, धोये, सोये
आए, गए, जाए, पाए, खाए, धोए, सोए
आय, गय, जाय, पाय, खाय, धोय, सोय
ऐसे और भी अनेक उदाहरण ढूंढे जा सकते हैं जिनमें भ्रम की स्थिति बनी रहती है और कई प्रबुद्धजनों की भाषा या डिक्शनरी देखकर अनुमान लगाने की कोशिश करते हैं तो वहां भी एक से अधिक रूप देखने को मिलेंगे। हिंदी में इन सब क्रियाओं के किसी न किसी स्थान पर तीनों तरह के उदाहरण मिल जाएंगे। तब ये मान लिया जाता है कि ये सब ठीक ही होंगे, जो चल रहा है उसे चलने दीलिए। वक्त और जरूरत के अनुरूप खुद ही अंतिम रूप निर्धारित हो जाएगा। लेकिन, यह सवाल हमेशा बना रहता है कि क्या कोई ऐसी पद्धति या सिद्धांत उपलब्घ है जिसके आधार पर इनके सही और स्वीकार्य रूपों का निर्धारण किया जा सके ? इसका जवाब है-हां।
बोलने में मुख-सुख और लिखने में संक्षेप-प्रियता प्रायः सभी भाषाओं में देखने को मिलेगी। हिंदी में भी ऐसा ही है। इन दोनों बातों को आये, गये, जाये, पाये, खाये, धोये, सोये पर लागू करके देखने से पता चलता है कि इनका उच्चारण मुख-सुख के अनुरूप नहीं है। इनके मुकाबले आए, गए, जाए, पाए, खाए, धोए, सोए का उच्चारण आसान है और इनमें एक व्यंजन भी कम हो गया यानी इनका रूप संक्षिप्त हुआ है। व्यारण की दृष्टि से भले ही दोनों प्रकार ठीक हों, लेकिन व्यवहार की दृष्टि से आए, गए, जाए, पाए, खाए, धोए, सोए ही ठीक हैं। आय, गय, जाय, पाय, खाय, धोय, सोय आदि का प्रयोग काव्य में मिलता है। ऐसे प्रयोग पुरानी हिंदी में भी देखने को मिलते हैं। इसलिए जो लोग समकालीन मानक भाषा के लिखित रूप में इनका प्रयोग कर रहे हैं, वे गलत हैं।
क्रियाओं में पुल्लिंग और स्त्रीलिंग का भेद होता है। आया क्रिया का स्त्रीलिंग आई होगा, लेकिन कुछ लोग इसे आयी लिखते हैं। इसी तरह से खायी, पायी, धोयी, खोयी, रोयी, सोयी भी लिखे जाते हैं। भले ये रूप गलत न हों, लेकिन इस तरह की क्रियाओं में दो अ-कार और दो इ-कार साथ रखने का कोई औचित्य नहीं है। इनकी तुलना में खाई, पाई, धोई, खोई, रोई, सोई में एक व्यंजन कम है और इन रूपों को समझने तथा इनका अर्थ निर्धारण करने में कोई समस्या पैदा नहीं हो रही है इसलिए इसी रूप को व्यवहार में लाना चाहिए। लेकिन, इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है कि संस्कृत के तत्सम शब्दों में य को ए अथवा इ/ई में परिवर्तित नहीं किया जाएगा। जैसे स्थायी को स्थाई लिखना गलत होगा।
अक्सर नये, नयी को लेकर भी दुविधा रहती है कि इन्हें इसी रूप में प्रयुक्त किया जाए या नए, नई लिखा जाए। पहली बात तो यह कि इन दोनों रूपों को सही माना गया है। लेकिन, जब एकरूपता का प्रश्न आएगा तो फिर नई, नए ही ठीक रहेगा। विस्तार में देखें तो कह सकते हैं कि संस्कृत के नव से नया, नये, नयी बना और फिर य का लोप हुआ तो नए, नई जैसे शब्द सामने आए। लेकिन ये बातें केवल हिंदी के संदर्भ में कही जा रही हैं। इन्हीं को मराठी या पंजाबी में लागू करेंगे तो उपुर्यक्त बातों में से कुछ गलत दिखाई देंगी। जैसे मराठी में नव से नवी (नवी मुंबई) बन जाएगा और पंजाबी में नवा (नवा शहर)।
इन क्रियाओं को लेकर भी दुविधा की स्थिति रहती है-
चलिए, रहिए, जाइए, उठिए, सुनिए, लीजिए, करिए, चाहिए
चलिये, रहिये, जाइये, उठिये, सुनिये, लीजिये, करिये, चाहिये
चलिय, रहिय, जाइय, उठिय, सुनिय, लीजिय, करिय, चाहिय
इन शब्दों में पहला प्रकार ही सही है। भले ही प्रचलन में दोनों प्रकार के शब्द मिलते हों, लेकिन दूसरे प्रकार के पीछे कोई तार्किक और व्याकरणिक आधार मौजूद नहीं है। यह संभव है कि कोई संस्कृत व्याकरण के आधार पर इन्हें सही साबित कर दे, लेकिन हिंदी की प्रकृति इन्हें स्वीकार नहीं करती। और यदि इन्हें संस्कृत से भी जोड़ना हो तो पठनीय, करणीय आदि को सामने रखकर तीसरे प्रकार के शब्द काव्य की परंपरा में मिल जाते हैं, लेकिन चलिये, रहिये, जाइये, उठिये, सुनिये, लीजिये, करिये, चाहिये आदि का आधार नहीं मिलेगा। कुछ लोग तो इच्छार्थक शब्दों को भी बहुवचन में बदल देते हैं। जैसे, चाहिएं, उठिएं, रखिएं। इस प्रकार के सभी प्रयोग गलत हैं। उपुर्यक्त उदाहरणों के संबंध में यह बात ध्यान में रखी जानी कि क्रियाओं की तरह संज्ञाओं में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

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