अब गोदियाल बोले, हरीश के खिलाफ हुआ भिरतघात

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा हाईकमान नहीं ले रहा उनका इस्तीफा

देहरादून। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने कहा है कि हरीश रावत को रामनगर से लालकुआं भेजने में उनका भी हाथ रहा और ऐसा पार्टी के भीतर संभावित टकराव से बचने के लिए किया गया। उन्होंने कहा कि चुनाव परिणाम बता रहे हैं, रावत के खिलाफ भितरघात हुआ।
आज कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में गोदियाल ने किसी कार्यकर्ता के द्वारा उनका इस्तीफा मांगे जाने पर कहा कि वे सभी से निवेदन करते हैं कि उनके खिलाफ भी कुछ कहना है तो पार्टी फोरम पर कहें। नहीं तो पार्टी को नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि हमारी हार हुई है, हमने नैतिक जिम्मेदारी ली है। जहां तक त्याग पत्र की बात है हाईकमान ने ऐसा नहीं करने के निर्देश दिए है।
हार को लेकर उन्होंने कहा कि होली बाद समीक्षा करेेंगे। धन सिंह के उन्हें मुंबई भेजने वाले बयान पर गोदियाल ने कहा कि धन सिंह कैसे हैं यह हम सब जानते हैं,जो व्यक्ति जैसा होता है वैसा ही बयान देता है। भले ही वह चुनाव जीत गये हैं, लेकिन उनमें इतनी ताकत नहीं कि मुझे मुंबई भेज सकें।
हार के सवाल पर उन्होंने कहा कि भाजपा वोटों को ध्रुवीकरण करने में सफल रही। राजनीति में मुद्दे गले नहीं उतरते, ध्रुवीकरण वाली बातें लोगों पर जल्दी असर करती हैं। किसी नेता की कोई गलती नही है। एक प्रकरण जरूर है, जिसमें यूनिवर्सिटी खोलने की बात कही गयी। जिस व्यक्ति ने यह कहा वह कोई बड़ा नेता नहीं था, लेकिन पीएम ने उस बात को खुद अपने मुंह से कह कर हवा दे दी। और भाजपा को ध्रुवीकरण का मौका मिल गया।
किशोर उपाध्याय को लेकर उन्होंने कहा कि वे कांग्रेस में नंबर दो के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे थे, लेकिन अब भाजपा में बतायें कि कौन से नंबर पर है। उन्होंने कहा कि किशोर को पहली बार ही जीतने के बाद मंत्री बनाया, प्रदेश का अध्यक्ष बनाया। अगर वे यह समझते हैं कि हरीश रावत नंबर वन हैं तो वे दूसरे नंबर के लिए प्रतिस्पर्धा में थे।
उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि हरीश रावत जल्दबाजी में लालकुआं चले गये इसलिए हार गये। वे स्वयं पांच साल से श्रीनगर में काम कर रहे थे। क्या हुआ। जहां तक बात है हरीश रावत की तो उनकी इच्छा रामनगर से ही लडऩे की थी।

लेकिन हम सबने उन्हें लालकुआं जाने के लिए राजी किया। उन्होंने कहा कि हरीश रावत के साथ भितरघात हुआ है। दुर्गापाल व हरेन्द्र पूरी मेहनत के साथ लगे हुए थे, लेकिन एक उम्मीदवार थी वो नहीं मानी यह सब भितरघात के ही संकेत हैं।

अतीक अहमद के लिए उन्होंने कहा कि पदाधिकारी बनाने की प्रक्रिया उस दौरान उन्होंने चुनावी लाभ को देखते हुए दी थी। कि अगर चुुनाव में फायदा मिल सकता है तो किया जाए। अकील अहमद को मेरी अनुपस्थिति में पदाधिकारी बनाया गया। पार्टी इसकी समीक्षा करेगी।

उस व्यक्ति ने कोई मांग रखी, लेकिन पार्टी ने उसे स्वीकार नहीं किया था। यूनिवर्सिटी वाले उसी मुद्दे को वह भुनाने में सफल रहे, जबकि कांग्रेस की ओर से ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया था। एक व्यक्ति ने एक यूनिवर्सिटी खोलने की बात कही।

वह कांग्रेस की थीम लाइन में कहीं नहीं था, अब यह जांच का विषय है कि उसने ऐसा किसी रणनीति के तहत किया। भाजपा ने इसको ध्रुवीकरण करने में सफलता पायी।

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