सियासत: बदलती निष्ठाओं से आहत पार्टियां
यूपी में सर्वाधिक दलबदलुओं ने पार्टियों के दिग्गजों का बढ़ाया पारा
- विचारधारा से ज्यादा सत्ता सुख का मोह लुभा रहा नेताओं को
डॉ. संजीव मिश्र
लखनऊ। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। दल-बदल से लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है। चुनाव आयोग की सख्ती से बड़ी जनसभाओं और गली-गली लाउडस्पीकर का शोर तो नहीं सुनाई दे रहा है, किन्तु सोशल मीडिया के मैदान में नए-नए अस्त्र-शस्त्र दागे जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश से गोवा, बड़े से छोटे राज्य तक सर्वाधिक उथल पुथल प्रत्याशिता को लेकर मची हुई है। यह सब यूं ही नहीं हो रहा है। सब सत्ता की बाजीगरी है। चुनाव तो हर साल होते हैं किन्तु 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले के ये चुनाव बेहद मायने रखते हैं।
यह सत्ता का सेमीफाइनल है। इसे जीतने के लिए कुछ भी किया जाएगा। यही कारण है कि इस चुनाव में दल बदल भी अनूठे किस्म वाला हो रहा है। वैसे अभी शुरुआत ही हुई है, अगले कुछ दिन-महीने देश में कुछ भी देखने-सुनने के लिए तैयार रहिए।
शुरुआत एक छोटे से राज्य गोवा से करते हैं। वहां जिन मनोहर पर्रिकर को भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा अपनी ईमानदारी का पोस्टर ब्वाय बनाया, उन्हीं पर्रिकर का बेटा उत्पल पर्रिकर टिकट न पा सका। टिकट तो अन्य बहुतों को भी नहीं मिलता है किन्तु चूंकि उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के पोते तक टिकट पा चुके हैं, इसलिए पर्रिकर का बेटा भी टिकट चाह रहा था।
अब टिकट नहीं मिला तो पर्रिकर का बेटा पार्टी छोड़ने ही नहीं, निर्दलीय चुनाव लड़ने तक को तैयार हो गया। यह चुनाव जीतने की मशक्कत ही है कि नेता पुत्रों को खूब टिकट देने वाली भाजपा गोवा में पर्रिकर के बेटे को टिकट देने ले इनकार कर देती है।
खास बात ये है कि परिवारवाद का मुखर विरोध करने वाली भाजपा को पर्रिकर के बेटे में तो परिवारवाद दिखा, किन्तु उसी गोवा में उसी भाजपा ने दो दंपती (पति-पत्नी) को टिकट दिया है।
यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे कि टिकट वितरण का यह विशिष्ट भाव किसे कितना फायदा पहुंचाता है। यह राजनीति ही है कि हर दिन भाजपा व भाजपा नेताओं को कोसने वाले अरविंद केजरीवाल पर्रिकर के बेटे को अपनाने के लिए तुरंत तैयार हो गए।
हालांकि, यह गौर करने वाली बात है कि उत्पल पर्रिकर को अब शिवसेना का साथ मिल गया है। इसलिए पणजी सीट से उम्मीदवारी वापस लेने की घोषणा पार्टी ने की है।
गोवा ही क्यों, उत्तराखंड से पंजाब तक आम आदमी पार्टी दल बदल के इस वातावरण को खुले दिल से स्वीकार कर ही रही है। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने दर्जन भर से अधिक टिकट दूसरे दलों से आए नेताओं को दिये हैं।
यही नहीं, आम आदमी पार्टी ने अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार चुनते वक्त वोटिंग में कांग्रेसी सिद्धू तक का नाम शामिल कर लिया था। उत्तराखंड में भी आम आदमी पार्टी दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट देने में पीछे नहीं हट रही है। दिल्ली में पहले ही भाजपा व कांग्रेस से आए लोग आम आदमी पार्टी से विधायक तक बन चुके हैं।
इस चुनाव में दल बदल का यह सिलसिला आदर्शों का कतई मोहताज नजर नहीं आ रहा है। पंजाब में वर्षों तक भाजपा को कोसते रहे अमरिंदर सिंह अब भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, तो उत्तराखंड में हरक सिंह रावत दलबदल की अनूठी मिसाल बन गए हैं।
कभी कांग्रेस से भाजपा में आकर भाजपा की सरकार बनवाने वाले हरक सिंह को भाजपा ने चुनाव के ठीक पहले सरकार और पार्टी से बाहर कर दिया। हरक वापस कांग्रेस में चले गए। वहीं, 40 साल तक कांग्रेस के साथ रहने वाले किशोर उपाध्याय ने कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा का साथ चुन लिया है और टिहरी से चुनाव लड़ रहे हैं।
उत्तर प्रदेश का चुनाव तो बदलती निष्ठाओं का प्रतिमान बन गया है। एक-दूसरे के दलों से लोगों को अपने दल में लाकर खुद को बड़ा साबित करने की होड़ सी लगी हुई है। पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य सहित दर्जन भर नेता अचानक मौजूदा चुनाव अभियान से ठीक पहले समाजवादी पार्टी का हिस्सा बन गए।
समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव इसे अपनी बड़ी जीत मानकर फूले नहीं समा रहे थे, तभी भारतीय जनता पार्टी ने अखिलेश के सौतेले भाई की पत्नी यानी मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू को समाजवादी पार्टी से तोड़ लिया।
मुलायम की बहू का भाजपा आगमन ऐसे गाजे-बाजे से हुआ, मानो कोई बहुत बड़े जनाधार वाले नेता को तोड़ लिया गया हो। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी में दूसरे दलों से नेताओं का आना कोई बड़ी बात नहीं है।
प्रदेश सरकार में कई बार मंत्री रहे बहुजन समाज पार्टी के नेता रामवीर उपाध्याय का भाजपा से जुड़ना उतने गाजे बाजे से नहीं हुआ, जितने गाजे बाजे के साथ मुलायम की बहू को भाजपा में शामिल कराया गया।
उन्हें दिल्ली कार्यालय में भाजपा का सदस्य बनाया गया, ताकि राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित कराया जा सके।
यही नहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित लगभग समूची उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी उस दिन दिल्ली में मौजूद थी। जवाबी दल-बदल का यह खेल इस बार ही विशेष रूप से देखने को मिल रहा है।
चुनाव में टिकट की लड़ाई भी अनूठी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता माने जाने वाले इमरान मसूद ने समाजवादी पार्टी की टिकट की चाह में कांग्रेस छोड़ दी, किन्तु उन्हें समाजवादी पार्टी से भी टिकट नहीं मिला। अब वे निराश हैं और अपने कुछ समर्थकों को समाजवादी पार्टी में पद दिलाकर संतोष जाहिर कर रहे हैं।
बरेली में कांग्रेस ने सुप्रिया एरन कांग्रेस की प्रत्याशी घोषित हुई थीं, किन्तु नामांकन से पहले ही वे समाजवादी हो गयीं। ऐन मौके पर सुप्रिया अपने पति के साथ कांग्रेस छोड़ कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गयीं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को ऐसे झटके कुछ ज्यादा ही लग रहे हैं।
प्रियंका गांधी के बहुचर्चित अभियान लड़की हूं, लड़ सकती हूं की पोस्टर गर्ल रहीं प्रियंका मौर्य कांग्रेस से टिकट न मिलने पर पार्टी से नाराज हो गयीं। भाजपा ने उन्हें भी तुरंत मौका दिया और पार्टी का हिस्सा बना लिया। टिकट की मारामारी का आलम यह है कि स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ समाजवादी पार्टी में गए विनय शाक्य की बेटी रिया ने भारतीय जनता पार्टी का साथ नहीं छोड़ा है।
भारतीय जनता पार्टी ने भी उन्हें टिकट देकर पिता-पुत्री को आमने-सामने खड़ा कर दिया। पिछले चुनाव से पहले बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के लिए अभद्र शब्दों का इस्तेमाल कर चर्चा में आए भाजपा नेता दयाशंकर सिंह की पत्न स्वाति सिंह को भाजपा ने पिछला चुनाव लड़ाया था। स्वाति मंत्री भी बनीं।
अब दयाशंकर सिंह और स्वाति सिंह में भाजपा की टिकट को लेकर रार मची है। पति-पत्नी आमने सामने हैं और विवाद थम नहीं रहा है। कुल मिलाकर यह चुनाव अभियान अनूठा हो चला है। अभी तो यह शुरुआत ही है, आगे यह अभियान और गुल खिलाएगा।