उत्तरकाशी में मानकों को ताक पर रख घर में चल रहा बीएड कॉलेज
राजभवन से लेकर शासन को भेजी शिकायत पर नहीं हुई कार्रवाई
- श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय के कुलपति पर लग रहे गंभीर आरोप
- सवालों के घेरे में विश्वविद्यालय द्वारा गठित मान्यता कमेठी
- बिना शिक्षकों के प्रति वर्ष 100 छात्रों को बांटी जा रही बीएड की डिग्रियां
देहरादून। उत्तरकाशी में वर्षों से संचालित एक बी.एड. कॉलेज का फर्जीवाड़ा सामने आया है। महज घर के तीन कमरों में संचालित पी.आई.टी.एस. बी.एड. कॉलेज को संचालक द्वारा अपने निजी आवास में चलाया जा रहा है। कॉलेज में न तो शिक्षक हैं, न लाइब्रेरी है और न ही छात्र-छात्राओं के बैठने के लिए कक्षा कक्ष। कॉलेज में प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राओं को सीधे परीक्षा देने किसी दूसरे सेंटर में बुलाया जाता है। जिसमें विश्वविद्यालय व शासन-प्रशासन की मिलीभगत के भी आरोप लगे हैं।
उत्तरकाशी में पी.आई.टी.एस. बी.एड. कॉलेज को श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय द्वारा बी.एड की 100 सीटों के लिए मान्यता दी गई है। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पी.पी. ध्यानी द्वारा कुछ समय पूर्व कॉलेज का निरीक्षण किया गया लेकिन कुलपति ने कॉलेज में व्याप्त फर्जीवाडे को लेकर आंख मूद रखी है। मानकों के विपरीत फर्जी तरीके से कॉलेज चलाये जाने के पीछे विश्वविद्यालय के कुलपति, कुलसचिव सहित शासन में बैठे अधिकारियों पर गंभीर आरोप लग रहे हैं साथ ही विश्वविद्यालय द्वारा कॉलेज को मान्यता देने के लिए गठित मान्यता समिति भी सवालों के घेरे में है।
कॉलेज के पूर्व संचालक प्रदीप असवाल ने राजभवन, शासन-प्रशासन एवं विश्वविद्यालय के अधिकारियों को भेजे गये शिकायती पत्र में आरोप लगाया है कि उत्तरकाशी में शम्भू प्रसाद नौटियाल द्वारा पी.आई.टी.एस. बी.एड. कॉलेज पिछले दस वर्षों से अपने घर के तीन कमरों में संचालित किया जा रहा है। जबकि कॉलेज का भवन वर्ष 2013 में आई आपदा में बह गया था।
कॉलेज को दो करोड़ का भवन बीमा मिलने के बावजूद नया भवन नहीं बनाया गया बल्कि संचालक द्वारा बीमा की पूरी धनराशि हजम कर ली गई है। असवाल ने बताया कि इस संबंध में उन्होंने राज्यपाल उत्तराखंड, उच्च शिक्षा मंत्री, अपर मुख्य सचिव, विश्वविद्यालय के कुलपति एवं कुलसचिव को शपथ पत्र के साथ लिखित शिकायत भेजी है। इसके बावजूद सत्र 2021-2023 के लिए बी.एड. की 100 सीटों पर कॉउंसिलिंग की तैयारी चल रही है।
जबकि एनसीटीई के मानकों के अनुसार बी.एड कॉलेज के लिए 24500 वर्गफिट का भवन, जिसमें 3-3 हजार स्क्वायर फीट के दो मल्टीपर्पज हॉल, 600-600 स्क्वायर फिट के चार कक्षा कक्ष, 1500 स्क्वायर फिट का पुस्तकालय जिसमें तीन हजार पुस्तकें रखने की सुविधा हो, 600-600 स्क्वायर फिट के छात्र एवं छात्राओं के लिए दो कॉमन रूम, प्राचार्य कक्ष, लेखाकार कक्ष, खेल मैदान आदि होना आवश्यक है।
इसके अलावा 50 छात्र संख्या पर 07 टीचिंग स्टाफ तथा 100 छात्रों पर 14 टीचिंग स्टाफ सहित एक प्रोफेसर स्तर का प्राचार्य होना आवश्यक है। लेकिन पी.आई.टी.एस. बी.एड कॉलेज में तीन कमरों के अलावा कोई भी सुविधा नहीं है। 100 छात्र-छात्राओं के लिए परीक्षा केन्द्र विश्वविद्यालय के अधिकारियों की मिलीभगत से अन्यत्र रखवा दिया जाता है।
यहां तक कि कई सालों तक इस कॉलेज के छात्र-छात्रों का परीक्षा केन्द्र हरिद्वार स्थित एक निजी संस्थान को बनाया गया। कॉलेज में फर्जीवाडे की भनक लगते ही विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पी.पी.ध्यानी ने कॉलेज का औचक निरीक्षण किया तथा मौके पर ही संचालक को कॉलेज बंद करने के निर्देश दिये। लेकिन वापस विश्वविद्यालय आते आते कुलपति ने कॉलेज संचालक को न तो कोई नोटिस दिया और न ही कोई कार्रवाई की बल्कि पूरे मामले को दबा कर बी.एड सत्र 2021-2023 के लिए कांउसिलिंग की अनुमति दे दी।
आरोप है कि इस दौरान उक्त कॉलेज के संचालक ने कुलपति के निजी आवास पर मुलाकात कर मोटा लेने देन कर कॉलेज की मान्यता को निरस्त करने से बचा लिया। पूर्व संचालक ने विश्वविद्यालय की मान्यता कमेटी पर भी गम्भीर आरोप जड़े। उन्होंने कहा कि जब कॉलेज धरातल पर ही नहीं हैं तो फिर विश्वविद्यालय की मान्यता समिति ने कैसे मान्यता की संस्तुति कर दी।
यही नहीं कॉलेज संचालक द्वारा राज्य कोटे की 50 सीटों पर भी मैनेजमेंट कोटे से छात्र-छात्राओं को पूरा शुल्क वसूल कर प्रवेश दे दिया जबकि कॉलेज में 100 में से 50 सीटें स्टेट कोटे की होती हैं जिनका शुल्क राज्य सरकार द्वारा 45 हजार नियत किया गया है। इससे इतर ईडब्ल्यूएस कोटे की सीटों पर भी झोल है।
इस संबंध में संस्था के पूर्व संचालक ने राज्यपाल उत्तराखंड, उच्च शिक्षा मंत्री, अपर मुख्य सचिव, विश्वविद्यालय के कुलपति एवं कुलसचिव को शपथ पत्र के साथ लिखित शिकायत की लेकिन अभी तक किसी भी स्तर से न तो कॉलेज की मान्यता रद्द करने की कार्यवाही की गई और न ही वर्तमान सत्र में प्रवेश प्रक्रिया को रोका गया। कॉलेज के पूर्व संचालक का कहना है कि यदि सरकार व शासन के स्तर से कॉलेज संचालक के खिलाफ समुचित कार्रवाई नहीं की गई तो उनको छात्र-छात्राओं के व्यापक हित में न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा।