रणविजय
विधानसभा के चुनाव पांच राज्यों में होने हैं। चुनावी राज्यों में चुनावी शोर है, पर आम जनता की समस्याएं हाशिए पर हैं। चुनावी राज्यों में समस्याएं तो काफी विकराल रूप धारण किए हुए हैं। पर चुनावी बिगुल बज जाने जनता की आवाज दब गई है। बात उत्तराखंड की करूं, तो लग रहा है कि पिछले पांच सालों में यहां बहुत कुछ हुआ है। लेकिन जब धरातल पर नजर जाती है तो लगता है कि पिछले पांच सालों के दौरान सत्ता पर काबिज भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में जो वादे किए हैं, उसमें से ऐसा कुछ भी नहीं जिसकी चर्चा की जाए।
मौजूदा हालात में घोषणा पत्र पर चर्चा करने की आवश्यकता इसलिए नहीं है कि क्योंकि उत्तराखंड के लोगों को सब कुछ पता है। चुनाव है, फिर लोग किसी न किसी राजनीतिक पार्टी को वोट देंगे। नयी सरकार बनेगी। यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। लेकिन आम जनता का क्या होगा।
इस पर किसी का भी ध्यान नहीं है। लोकायुक्त बने, यह सपना उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल (अवकाश प्राप्त) भुवन चंद्र खंडूड़ी ने देखा था, इस दिशा में उन्होंने पहल भी की। भाजपा की सरकार पांच साल तक उत्तराखंड की सत्ता पर काबिज भी रही लेकिन किसी भाजपाई ने लोकायुक्त के गठन पर ध्यान ही नहीं दिया।
भाजपा अपने आप को जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली सरकार मानती है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि भाजपा की सरकार ने लोकायुक्त के महत्व को न समझा और न समझने की कोशिश की। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का बड़ा हथियार लोकायुक्त है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने चिल्ला-चिल्ला कर एलान किया था कि सरकार आते ही लोकायुक्त का गठन कर देगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सबको पता है क्यों नहीं हुआ है। पंचेश्वर बांध का सपना भी अधूरा ही रहा।
हालांकि, इसमें 20 साल से भी ज्यादा समय हो गया लेकिन आज तक बांध सपना ही बना हुआ है। उम्मीद थी कि भाजपा सरकार पंचेश्वर बांध के महत्व को समझेगी और इसको पूरा करेगी। डबल इंजन की सरकार भी है। हर अड़चन खत्म हो जाएगी। हां, नेता जरूर इस बांध की उपयोगिता के बारे में लोगों को जानकारी देते रहे, लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं हुआ।
फाइलों में आज भी पंचेश्वर बांध सिमटा हुआ है। गांवों के पुनर्वास का मामला भी झूल ही रहा है। वर्ष 2006 में शिफ्टिंग होने वाले गांवों की संख्या 97 के आसपास थी जो आज बढ़कर 600 से ज्यादा हो गई है। यहां भी फाइलें ही चली हैं, धरातल पर कुछ भी नहीं हुआ है।
पहले तो बहाना कि उत्तराखंड के पास अपनी कोई पुनर्वास नीति नहीं है। इसलिए पुनर्वास का काम बेहतर तरीके से नहीं हो पा रहा है। इस समस्या को दूर करने के लिए पुनर्वास नीति भी बनाई गई। पर गांवों के पुनर्वास का मामला आज भी जब का तस ही है। इस तरह की कई महत्वपूर्ण चीजें हैं जिन्हें कायदे से अब तक हो जाना चाहिए था। लेकिन नहीं हुआ।
दरअसल, यहां के नेताओं में इच्छा शक्ति का अभाव है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने में ही यहां के राजनेता अपनी मयार्दा समझते हैं। ऐसे में विकास कैसे होगा। यह महत्वपूर्ण सवाल है। आज भी पहाड़ों पर न डाक्टर और न शिक्षक हैं। चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराने का दावा करने वाली सरकार महज दावा ही करती रही। सरकार स्कूलों का खस्ता हालत किसी से भी नहीं छिपा है।
तबादला को लेकर बनी नियमावली आज भी धूल फांक रही है। अचरज की बात तो यह रही कि आचार संहिता लागू होने के बाद भी थोक भाव से शिक्षकों के तबादले कर दिए गए, हालांकि जब चुनाव आयोग का चाबुक पड़ा तो तबादले निरस्त कर दिए गए।
कुल मिलाकर यहां की भोली-भाली जनता के साथ एक तरह से मजाक किया जा रहा है। शांत रहने वाला प्रदेश अब अशांत हो गया है। मैदान से पहाड़ तक भू-माफिया सक्रिय है। पुलिस मूकदर्शक बनी है। इसके पीछे यहां की जनता नहीं है बल्कि दबंग किस्म के राजनेता हैं। जो अपनी चला रहे हैं।
सवाल यह है कि ऐसा कब तक चलेगा और राजनेता झांसा देकर, सब्जबाग दिखाकर भोली-भाली जनता को गुमराह करते रहेंगे। अब जनता को अपनी आवाज बुलंद करने की जरूरत है। जब तक जनता अपने हक के लिए आवाज बुलंद नहीं करेगी, कोई भी जननेता जनता की आवाज नहीं बनेगा। वैसे भी चुनावी शोर में आम जनता की आवाज दब गई है।
जनता को राजनेताओं से हिसाब लेना चाहिए। हां, पूरे पांच साल का हिसाब। वरना, फिर आगामी पांच साल तक इंतजार करना पड़ेगा। इसलिए विकास अब तक क्यों नहीं हुआ और भविष्य में विकास का रोड मैप कैसा होगा, इस पर चर्चा करने की आवश्यकता है। नेताओं के अंदर इच्छा शक्ति जगाना होगा। वरना चुनावी गूंज में प्रदेश में सभी महत्वपूर्ण मुद्दे दब जाएंगे।
चुनावी शोर में अपनी बात प्रमुखता से रखना होगा। वरना कलयुगी नेताओं का क्या भरोसा। फिर झूठे वादे दिखा कर लोगों को गुमराह कर सकते हैं। इसलिए अपने मुद्दों को दफन होने मत दीजिए। विकास के लिए आवाज बुलंद करना ही होगा। इसमें ही उत्तराखंड का भला है। क्योंकि विकास महज कागजों पर नहीं, बल्कि जमीन पर भी दिखाई पड़ना चाहिए। इसी प्रयास के साथ मतदान करें ताकि उत्तराखंड का ज्यादा से ज्यादा विकास हो सके।