- धार्मिक ग्रंथों से बेअदबी के मामले से पंजाब के लोगों में आक्रोश
सुमित्रा, चंडीगढ़।
पंजाब में राजनीति पल-पल रंग बदल रही है। कहीं बेअदबी के मामलों को लेकर आरोपियों की हत्याएं हो रही हैं तो कहीं बम विस्फोट हो रहे हैं। कहीं नशा तस्करी के मामले को लेकर अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के नजदीकी रिश्तेदार बिक्रम मजीठिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा रही है तो केंद्र के कृषि कानून रद्द कर दिए जाने के बाद बॉर्डर से लौटे किसान अब कर्ज माफी की मांग को लेकर पंजाब में रेल की पटरियों पर बैठ गए हैं। आने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर माहौल अभी से गर्म होने लगा है।
इसके साथ ही यह चिंता भी बढ़ने लगी है कि क्या पंजाब में शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव सम्पन्न हो पाएंगे?
धार्मिक ग्रंथों से बेअदबी के मामले पंजाब के लिए नए नहीं हैं। वर्ष 2015 से ऐसी घटनाओं की शुरूआत हुई थी, लेकिन किसी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने से लोगों में गुस्सा था। धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कोटकपूरा और बहिबल कलां में प्रदर्शनकारियों पर पुलिस के गोली चला कर दो लोगों की जान ले लेने के मामलों की जांच अब तक किसी नतीजे पर पहुंची नहीं थी कि अमृतसर स्वर्ण मंदिर और कपूरथला जिले के निजामपुर गांव के गुरुद्वारे में बेअदबी के आरोपियों को श्रद्धालुओं ने पीट-पीट कर मार दिया।
स्वर्ण मंदिर में बेअदबी
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के आरोपी की पीट-पीट कर जान ले ली गई। पंजाब पुलिस ने भी स्वीकार किया कि एक युवक ने दरबार साहिब में गुरु ग्रंथ साहिब से बेअदबी करने की कोशिश की। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के सदस्य उसे काबू कर के बाहर लाए।
यह युवक सचखंड साहिब के जंगले को पार कर पवित्र ग्रंथ के पास पहुंचने की कोशिश कर रहा था। इस दौरान एसजीपीसी के सदस्यों ने इसे काबू कर लिया। इसी दौरान संगत के लोगों ने उसके साथ मारपीट की, जिससे उसकी मौत हो गई। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, यह युवक पाठ के दौरान स्वर्ण मंदिर के गर्भगृह में घुसने के प्रयास कर रहा था। आरोप यह भी है कि इस दौरान उसने दरबार साहिब की सेवाओं को बाधित करने के भी प्रयास किए।
युवक की इन हरकतों से नाराज सेवादारों और संगत ने उसे पीट-पीट कर वहीं मार दिया। मृतक के पास से कोई पहचान पत्र भी नहीं मिला है। इसी वजह से अभी तक मृतक करीब 20 वर्षीय इस युवक की पहचान नहीं हो पाई है।स्वर्ण मंदिर में उस वक्त काफी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। मृतक युवक भी दर्शन के इंतजार में था। इसी बीच अचानक वह रेलिंग पर चढ़ा और श्री गुरुग्रंथ साहिब के पवन स्वरूप के सामने रखी तलवार को उठाने की कोशिश की।
सेवादारों ने फौरन उसे पकड़ लिया और उसे एसजीपीसी के दफ्तर में लाया गया। यहां युवक के साथ बर्बरतापूर्ण तरीके से मारपीट की गई। पिटाई से बेहोश हो कर युवक वहीं फर्श पर गिर पड़ा और उसकी मौत हो गई।यह मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अगले ही दिन कपूरथला जिले में बेअदबी के एक अन्य आरोपी की पीट-पीट कर हत्या कर देने का मामला सामने आया है।
आरोप है कि निजामपुर गांव के गुरुद्वारा साहिब में निशान साहिब से बेअदबी की कोशिश की गई। गुरुद्वारा साहिब में संगत ने जब एक व्यक्ति को बेअदबी करते देखा तो पहले उसे पकड़ा गया और फिर उसे बुरी तरह से पीटा गया। गुरुद्वारे से साथ ही पुलिस चौकी है। ऐसे में पुलिस ने सिख जत्थेबंदियों के चंगुल से आरोपी को छुड़वा कर एक कमरे में बंद कर दिया। लेकिन गुस्साए लोगों ने खिड़की तोड़ कर पुलिस के सामने ही आरोपी को मार डाला।
हालात को देखते हुए पुलिस को हवाई फायरिंग करनी पड़ी थी। पुलिस के अनुसार, आरोपी चोरी के इरादे से गुरुद्वारे में आया था। दूसरी तरफ, संगत का कहना है कि आरोपी ने पकड़े जाने के बाद बताया था कि बेअदबी के लिए नौ लोगों की टीम दिल्ली से आई हुई है। लेकिन आखिर तक उसने अपना और किसी अन्य का नाम नहीं बताया। लेकिन यह मामला संदिग्ध हो गया है। जांच के दौरान पाया गया है कि पीट-पीट कर जिस युवक की हत्या की गई, वह मंदबुद्धि था।
गुरुद्वारे के प्रबंधक बाबा अमरजीत सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इसके साथ ही 101 अज्ञात लोगों पर हत्या का मामला भी दर्ज कर लिया है। इनमें 25 लोग तेज धारदार हथियारों से लैस थे। पुलिस मानती है कि यह मामला बेअदबी का नहीं, बल्कि साजिशन हत्या का है। बेअदबी के आरोपों में दो युवकों की हत्या ने न केवल पंजाब को दहला दिया है, बल्कि केंद्र सरकार की चिंता भी बढ़ा दी है।
इस बीच पंजाब सरकार ने वर्ष 2018 में केंद्र सरकार को बेअदबी के मामले में भेजे एक प्रस्ताव की याद दिलाई है। इस प्रस्ताव में श्री गुरुग्रंथ साहिब, भगवत गीता, कुरान और बाइबल को चोट, क्षति या अपमान करने वालों को धारा-295 ए के तहत न्यूनतम दस साल की सजा का प्रावधान था। इस प्रस्ताव के सिलसिले में पंजाब के गृह मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा न केवल एक बार फिर केंद्र सरकार को लिखेंगे, बल्कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी करेंगे। केंद्र पंजाब के इस प्रस्ताव पर कब गौर करेगी, करेगी या नहीं, अभी कुछ कहना मुश्किल है।
संयुक्त समाज मोर्चा
पंजाब में संयुक्त समाज मोर्चा के बैनर पर किसान संगठनों के चुनावी मैदान में कूदने के ऐलान के बाद राजनीतिक पार्टियों में खलबली मच गई है। किसानों ने सभी पार्टियों को नए सिरे से अपनी रणनीति तैयार करने को मजबूर कर दिया है।
राज्य की कुल 117 विधानसभा सीटों में से 77 सीटें ऐसी हैं, जहां ग्रामीण वोट बैंक का दबदबा है. इनमें 26 सीटें पूरी तरह ग्रामीण और 51 सीटें अर्ध शहरी हैं, लेकिन इन सभी सीटों पर किसान असरदार हैं। ग्रामीण वोट बैंक पर अपना कब्जा मान कर चल रही पार्टियों के लिए यही चिंता की बात है।किसान मोर्चा मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर बलबीर सिंह राजेवाल को आगे कर चुनाव लड़ेगा।
राजेवाल एक सुलझे हुए किसान नेता हैं, जिन्होंने बड़े धैर्य से एक साल से भी ज्यादा समय तक दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के अहिंसक आंदोलन की अगुवाई की है। राजेवाल ने हमेशा यही कहा कि कृषि कनून रद्द करवाए बिना किसान बॉर्डर से पीछे नहीं हटेंगे। अपने कहे मुताबिक वे केंद्र सरकार को झुका कर ही एक विजेता की तरह पंजाब लौटे।
भाजपा का फोकस शहरी क्षेत्रों की 40 सीटों पर
ऐसे समय में भाजपा का ज्यादा फोकस शहरी क्षेत्रों की 40 सीटों पर है। गांवों में भाजपा को अब तक जो वोट मिलता था, वह अकाली दल के साथ गठबंधन की वजह से ही मिलता था। अकाली दल और भाजपा की राहें अब अलग हो चुकी हैं, ऐसे में भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस के भरोसे गांवों में आगे बढ़ने की सोच रही थी।
कैप्टन की किसानों में अच्छी पैठ रही है, लेकिन 25 किसान संगठनों के एकजुट हो कर मैदान में उतरने का ऐलान कैप्टन के लिए भी किसी झटके से कम नहीं है। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के कारण भाजपा को पहले ही पता था कि उसे किसानों का समर्थन नहीं मिलेगा।
चन्नी-सिद्धू को ग्रामीण वोट बंटने की चिंता
संयुक्त समाज मोर्चा के मैदान में आने से मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का परेशान होना भी स्वाभाविक है। चन्नी ने किसानों को कांग्रेस की तरफ खींचने के इरादे से ही एक लाख से ज्यादा किसानों के दो-दो लाख रुपए के कर्ज माफ किए थे, आंदोलन के दौरान दर्ज मुकदमे वापस लेने के निर्देश भी दिए।
आंदोलन में शहादत देने वाले 17 किसानों के आश्रितों को सरकारी नौकरी दी और पांच एकड़ में किसान स्मारक बनाने का भी फैसला किया था। चन्नी के साथ ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को भी अब ग्रामीण क्षेत्रों में वोट हासिल करने के लिए कोई नया प्लान तैयार करना पड़ेगा।
पिछले विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) को 20 सीटें मिली थीं। इनमें ज्यादातर सीटें ग्रामीण क्षेत्रों से ही थी। किसान संगठनों के मैदान में आने से आप को भी गांवों में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। शिरोमणि अकाली दल का वोट बैंक ही ग्रामीण सिख मतदाता माने जाते हैं।
किसानों के चुनाव लड़ने से गांवों में अकाली दल का वोट बंटेगा। केंद्र के कृषि कानूनों का शुरू में समर्थन कर अकाली दल पहले ही विवादों में घिर गया था। यही वजह रही कि ग्रामीण वोट बैंक को साधने के लिए हरसिमरत कौर को केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था।
भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद अकाली दल को शहरी वोट के लिए तो संघर्ष करना पड़ ही रहा है, अब ग्रामीण क्षेत्रों में वोट हासिल करने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ेगी।बहरहाल, अभी तो महज शुरूआत है, चुनाव नजदीक आते आते पंजाब की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आने हैं। पंजाब की राजनीति अगले साल फरवरी में होने वाले मतदान तक कितने रंग बदलती है, यह जानने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।
लुधियाना में बम धमाका
चुनावी सरगर्मियां शुरू होते ही पंजाब में बम धमाके की घटना ने चिंता और बढ़ा दी है। ऐसा माना जा रहा है कि चुनाव के इस मौके पर देश विरोधी ताकतें आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे सकती हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कई बार ऐसी आशंकाएं जाहिर कर चुके हैं। राज्य में अमन-चैन बहाल रखने के लिए चन्नी सरकार को सचेत कर चुके हैं। इसी दौरान लुधियाना की अदालत में विस्फोट की घटना चौंकाने वाली है।
क्या इसमें किसी देश विरोधी एजेंसी का हाथ है? ऐसे सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। जांच के बाद ही पूरी स्थिति स्पष्ट हो पाएगी।लुधियाना की अदालत में हुए बम धमाके में गगनदीप नाम के जिस व्यक्ति की मौत हुई है, वह पंजाब पुलिस का बर्खास्त सिपाही है। धमाके में चार लोग गंभीर रूप से जख्मी हो गए हैं।
धमाका अदालत की दूसरी मंजिल के बाथरूम में हुआ. मृतक का शव भी बाथरूम में ही मिला है। धमाके के बाद अदालत में अफरा-तफरी मचनी ही थी। इससे अदालत की इमारत हिल गई, खिड़कियों के शीशे टूट गए और पार्किंग में खड़ी गाड़ियां भी क्षतिग्रस्त हो गईं। बम धमाके के बाद हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया।
जांच के दौरान पाया गया है कि बम धमाका ड्रग माफिया, गैंगस्टर और खालिस्तानी आतंकियों का संयुक्त प्रयास है। धमाके के लिए आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया था। डीजीपी सिद्धार्थ चटोपाध्याय का कहना है, ह्यधमाके का मकसद लुधियाना अदालत के रिकॉर्ड रूम को उड़ाना था, ताकि केस से जुड़े सभी कागजात नष्ट हो जाएं और आरोपी गगनदीप अपने खिलाफ विचाराधीन सभी मामलों से साफ बच जाए।
बर्खास्त पुलिस कर्मचारी गगनदीप पहले नशा तस्करी के आरोप में पकड़ा गया था। जेल में बंद रहने के दौरान उसकी ड्रग माफिया से जान-पहचान हो गई। यहीं से वह गैंगस्टरों के संपर्क में आया. धमाके के लिए इस्तेमाल विस्फोटक सीमा पार से आतंकियों के जरिए आया था। ऐसे में लुधियाना की अदालत में हुए ब्लास्ट में ड्रग माफिया, गैंगस्टर और खालिस्तानी आतंकियों का मिश्रण नजर आता है।
धमाके के बाद मौके पर मिले कपड़ों, सिम कार्ड, मोबाइल और मृतक के बदन पर बने टैटू से आरोपी गगनदीप की पहचान संभव हो पाई।पुलिस के पास इस बात के सबूत हैं कि गगनदीप का सीमा पार बैठे नशा तस्करों से संपर्क रहे हैं। पाक में बैठे बब्बर खालसा इंटरनेशनल से जुड़े हरविंदर सिंह रिंदा से उसके लिंक हैं।
रिंदा जर्मनी में रह रहे खालिस्तानी आतंकी जसविंदर सिंह मुल्तानी से जुड़ा है। ऐसे में चुनावी मौसम में पुलिस को और ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत है, ताकि लोगों में किसी तरह का कोई डर पैदा नहीं हो।
मजीठिया पर एफआईआर
अकाली नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ मोहाली में नशा तस्करी में संलिप्तता का मामला दर्ज करने के बाद राज्य की राजनीति में और उबाल आ गया है। मजीठिया रिश्ते में शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के साले हैं। मजीठिया के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत यह मामला उस समय दर्ज किया गया है।
जब विधानसभा चुनावों के लिए कभी भी घोषणा हो सकती है। मजीठिया के खिलाफ विरोधी पार्टियों की तरफ से लंबे समय से नशे की तस्करी को लेकर आरोप लगाए जाते रहे हैं। राज्य के नए कार्यकारी डीजीपी की कमान सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय को सौंपे जाने के बाद जूनियर बादल ने आरोप लगाया था कि चन्नी सरकार अकाली नेताओं के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करने के लिए दबाव बना रही है। अब जब मजीठिया पर मामला दर्ज कर लिया गया है, उनकी गिरफ्तारी की संभावनाएं बढ़ गई हैं।
गृह विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने भी कहा है कि मजीठिया को जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा। अकाली दल को पहले ही अंदेशा था कि मजीठिया के खिलाफ कभी भी एफआईआर दर्ज की जा सकती है, ऐसे में वे पहले ही पंजाब से बाहर निकल कर भूमिगत हो गए हैं। भूमिगत होने से पहले मजीठिया ने पंजाब पुलिस की सुरक्षा भी छोड़ दी।एफआईआर में आरोप है कि मजीठिया ने अपनी प्रॉपर्टी और गाड़ियों के जरिए नशा तस्करी में मदद की। नशा बांटने और बेचने के काम के लिए वित्तीय मदद भी की।
उन्हें नशा तस्करी की साजिश में शामिल माना गया है। यह एफआईआर नशा तस्करी के मामलों में गिरफ्तार आरोपियों के बयान के बाद दर्ज की गई है। एडीजीपी हरप्रीत सिंह सिद्धू की अगुवाई में गठित एसटीएफ की रिपोर्ट में भी मजीठिया का नाम आने का दावा किया गया था। इस मामले को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी लगातार उठाते रहे हैं।
मजीठिया की मुश्किलें इसलिए भी बढ़ गई हैं कि मोहाली की अदालत उनकी अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर चुकी है। अदालत का मानना था कि एफआईआर में देरी की दलील से यह नहीं माना जा सकता कि मजीठिया के खिलाफ दर्ज किया गया केस झूठा हैै। अग्रिम जमानत रद्द होने पर मजीठिया के वकील ने कहा कि उनके पास पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में जाने का विकल्प है और जल्दी ही इस बारे में याचिका दायर की जाएगी।
एफआईआर में मजीठिया पर गंभीर आरोप हैं। एफआईआर के मुताबिक, नशा तस्करी के आरोपी सतप्रीत सत्ता उनके अमृतसर और चंडीगढ़ स्थित घर पर ठहरता रहा है। उसे गाड़ी और गनमैन दिए जाते रहे हैं। नशा तस्करों के बीच पैदा हुए डेढ़ करोड़ रुपए का विवाद सुलझाने का भी उन पर आरोप है। एक रिपोर्ट के आधार पर मजीठिया के खिलाफ केस दर्ज करने के बाद पुलिस का कहना था कि नशा तस्करी के मामले में संलिप्तता और वित्तीय लेन-देन की जानकारी हासिल करने के लिए मजीठिया को हिरासत में लेकर पूछताछ जरूरी है।
अग्रिम जमानत मिलने की स्थिति में ऐसा करना संभव नहीं हो पाएगा। मोहाली की अदालत ने अपने 14 पेज के आदेश में मजीठिया की अग्रिम जमानत खारिज करने का फैसला सुनाया। मजीठिया ने इसे राजनीतिक बदले की भावना से की गई कार्रवाई बताया था, लेकिन अदालत से उन्हें कोई राहत नहीं मिल पाई। पंजाब में कुछ साल पहले बेनकाब हुए नशा तस्करी के इस मामले को छह हजार करोड़ रुपए के सिंथेटिक ड्रग रैकेट से जोड़ा गया था।
एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस मजीठिया की गिरफ्तारी के लिए चंडीगढ़ सहित कई जगह छापेमारी कर चुकी है, लेकिन मजीठिया अभी गिरफ्त से बाहर हैं। मजीठिया पर एफआईआर दर्ज होने का मतलब यही है कि कांग्रेस और दूसरी पार्टियों की तरफ से अकाली दल पर चुनावों में हमले तेज हो जाएंगे। राजनीति के जानकारों का मानना है कि चुनावों से पहले मजीठिया की गिरफ्तारी अकाली दल के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।