देहरादून। पीएम मोदी ने गढ़वाली बोली में अपने सम्बोधन की शुरूआत कर फिर भाषण के अंत में उत्तराखंड का आभार जताते हुए लंबी हिंदी कविता सुनाकर स्थानीय लोगों से कनेक्ट करने को कोशिश की।
उन्होंने भाषण की शुरुआत ऐसे की- ‘ उत्तराखंड के सभी दाना, सयानो, दीदी भुलियों भै बैणो आप सबुथैं, म्यरो प्रणाम।
मिथै भरोसा छ, सब कुशल मंगल होला, मी आप लोगों थैं सेवा लगाण छूं आप स्वीकार करा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा आपके आशीर्वाद का प्रसाद पाकर वह अभिभूत है।
उन्होंने अपने भाषण का अंत भी उत्तराखंड को लेकर लंबी हिंदी कविता से किया। हालांकि एक बाद बार उनकी जबान फिसल भी गई और वह शीश को नीश बोल गए।
पीएम ने अंत में सुनाई यह कविता
जहां पवन बहे संकल्प लिये, जहां पर्वत गर्व सिखाते हैं
जब ऊंंचे नीचे सब रस्ते, बस भक्ति के सुर में गाते हैं
उस देवभूमि के ध्यान से ही, मैं सदा धन्य हो जाता हूं
है भाग्य मेरा सौभाग्य मेरा, मैं तुमको शीश नवाता हूं
धन्य धन्य हो जाता हूं, तुम आंचल हो भारत मां का
जीवन की धूप में छांव हो तुम, छूने से ही तर जाये
सबसे पवित्र धरा हो, बस लिये समर्पण तन मन से
मैं देवभूमि मैं आता हूं, है भाग्य मेा सौभाग्य मेरा
मैं तुमको शीश नवाता हूं, धन धन्य हो जाता हूं
जहां अंजुलि में गंगा जल हो, जहां हर एक मन बस निश्चल हो
जहां गांव-गांव में देश भक्त, जहां नारी में सच्चा बल हो
उस देवभूमि का आशीर्वाद लिये, मैं चलता जाता हूं
है भाग्य मेरा सौभाग्य मेरा, मैं तुमको शीश नवाता हूं
और धन्य धन्य हो जाता हूं, मंडवे की रोटी हुड़ के की थाप
हर एक मन करता, शिवजी का झाप
ऋषि मुनियों की है ये तपोभूमि, कितने वीरों की ये जन्म भूमि
मैं देवभूमि मैं आता हूं, मैं तुमको शीश नवाता हूं, धन्य धन्य हो देवभूमि