प्रधानमंत्री मोदी के जूते के साथ केदारनाथ की परिक्रमा करने के पीछे मंदिर के प्रांगण को खत्म कर उसे फुटबॉल के मैदान जैसा बनाना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जूता पहन कर केदारनाथ जी के मंदिर की परिक्रमा करने और नंदी की पवित्र मूर्ति के पास जाने की सभी हिंदु धर्मावलंबियों ने आलोचना की है ।
केदारनाथ मंदिर में अ ब कोई भी मंदिर के दरवाजे तक जूता लेकर जाता है । आखिर क्या कारण है कि बेहद भक्ति भाव से केदारनाथ मंदिर के दर्शन करने आने वाले यात्री पवित्र परिसर में जूता लेकर जाने का दुस्साहस कर रहे हैं या अनजाने में गलती कर रहे हैं ।
इसके पीछे भी नरेन्द्र मोदी के निर्देशन में केदारनाथ मंदिर के वास्तु और प्रांगण में की गई छेड़खानी सबसे बड़ा कारण है । केदारनाथमंदिर मध्य हिमाद्री शैली के अंतर्गत छत्र रेखा शिखर प्रासाद शैली में निर्मित है। जमीन पर यह मंदिर वर्गाकार है।
क्या मंदिर को जीवित शरीर माना जायेगा ?
राजा भोज द्वारा रचित समरांगण सूत्रधार जो उत्तरीय शैली के मंदिरों के लिए मूल ग्रंथ है के अनुसार मंदिर को प्रासाद पुरुष याने जीवित शरीर माना गया है और मंदिर के भीतर स्थापित मूर्ति को जीवा उच्च्ययते याने उस शरीर (प्रासाद पुरुष ) की आत्मा माना गया है।
मंदिर रुपी प्रासाद पुरुष एक इकाई होती है । यह इकाई गर्भ गृह, शिखर, मण्डप, प्राकार (चारदिवारी) , और पटांगण (प्रांगण) से मिलकर पूरी होती है। जैसे किसी मनुष्य का शरीर बिभिन्न अंगों से मिलकर बना होता है वैसे ही मंदिर का प्रासाद पुरुष भी इन सभी भागों से मिलकर पूरा होता है। प्रासाद पुरुष का हर भाग मंदिर वास्तु और शास्त्र के अनुसार होना चाहिए तभी यह इकाई संतुलित रहेगी।
मंदिर का आंगन याने पटांगण कितना बड़ा होना चाहिए ?
पहाड़़ में मंदिर के चौक याने आंगन को पटांगण कहा जाता है। उत्तर भारतीय मंदिर वास्तु शास्त्र के अनुसार मंदिर के पटांगण की सबसे बड़ी भुजा की लंबाई उतनी ही होनी चाहिए जितनी मंदिर की जमीन से शिखर तक ऊंचाई। याने किसी भी हाल में मंदिर का प्रांगण उसकी ऊंचाई से बड़ा नही होना चाहिए।
उत्तर भारत और ऊंपरी गढ़वाल के मंदिरों में इन पटांगण के बाद प्राकार (चारदिवारी) का होना आवाश्यक है ।उत्तर भारतीय मंदिर शैली में प्राकार के बाद ही यदि आवश्यकता हो तो उत्सव हेतु अन्य मैदान अलग से प्राकार याने चारदिवारी से हट कर उसके तल से अलग तल पर बन सकता है।
दक्षिण भारत के मंदिरों में आंगन बड़े और फैले होते हैं क्योंकि आंगन के बीच में सरोवर होते हैं जिन तक स्नान करने के लिए सीढ़ियां होती हैं।
उत्तर भारत में अभिषेक हेतु जल कुंड पृथक स्थान पर होता है। खुजराहों में कही मण्डप , उत्सव आदि कार्यों हेतु बने हैं परंतु उत्तर भारत और पर्वतीय शैली में कंही भी मंदिर के साथ उत्सव हेतु प्रांगण नहीं बने हैं।
केदारनाथ मंदिर में क्या- क्या छेड़ाखानी की गई हैं
1- मंदिर के प्रांगण याने पटांगण को फुटबाल मैदान की तरह बड़ा कर दिया गया है। जिससे मंदिर गौण और प्रांगण महत्वपूर्ण हो गया है। पहले मंदिर का प्रांगण शास्त्रोक्त था याने मंदिर की एक भुजा की लंबाई के बराबर।
पहले मंदिर के पटांगण के एक किनारे पर एक गेट था जिस पर घंटा लगा हुआ था। पटांगण के किनारे घंटा युक्त गेट के बाद 9 सीढ़ियां थी तब उसके बाद केदारनाथ बाजार आता था। मंदिर की इकाई याने प्रासाद पुरुष बाजार आदि से बिल्कुल अलग और अलग तल पर स्थित था ।
2017 के बाद भाजपा सरकार ने क्या छेड़खानी की ?
2013 की आपदा सके पहले श्रद्धालु अपने जूते मंदिर के पटांगण के बाद 9 सीढ़ियों के नीचे खोलते थे याने किसी भी हालत में केदारनाथ जी के मंदिर के प्रांगण में जूते नही जाते थे। अब मंदिर के प्रांगण का आकार फुटबॉल के मैदान के बराबर होने के कारण प्रांगण की कोई सीमा रेखा नही है न ही प्राकार(बाउंडरी) है न ही गेट ।
इसलिए मंदिर के दरवाजे तक जूते जाते हैं
केदारनाथ मंदिर के वास्तु में ये छेड़छाड़ गुजरात के कथित वास्तुविद , निकुल शाह के दिशा निर्देशन में सरकारी विभागों द्वारा की गई है।
मोदी जी ने अपने भाषण में खुद कहा है कि वे अपने आफिस से इस काम को ड्रोन और अन्य तकनीकी से देखते हैं। सभी को पता है कि न केवल PM Office बल्कि उत्तराखंड के मुख्यसचिव के ऑफिस और रुद्रप्रयाग के जिला अधिकारी के कार्यालय से भी केदारनाथ के कामों को लाइव देखा जा सकता है।
प्रश्न ये है कि इतनी निगरानी में हो रहे काम के बाद भी केदारनाथ जी जैसे ज्योतिर्लिंग के वास्तु में इतनी बड़ी गड़बड़ हो गयी जो प्रधानमंत्री की जग हंसाई का कारण बन गयी तो मामला गंभीर है।
मैंने पहले भी इस विषय पर लंबी पोस्ट लिखी थी पर कोई चेते नहीं। क्योंकि आज वही सही है जो मोदी और उनके लोग कहते-सोचते हैं। उनके आगे वेद-पुराण भी गौण हैं।
(मनोज रावत, विधायक, केदारनाथ के फेसबुक से)