शिक्षा महकमे में जबर्दस्त फर्जीवाड़ा, हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

नैनीताल। उत्तराखंड में शिक्षा विभाग में उच्चाधिकारियों की नियुक्ति के मामले में एक जबर्दस्त फर्जीवाड़ा सामने आया है। राज्य स्कूल शिक्षा अधिनियम, 2006 का उल्लंघन कर प्रदेश में गैर कानूनी तरीके से उच्चाधिकारियों के 300 से अधिक पद सृजित किए गए है। सबसे मजेदार बात यह रही कि कई साल पहले हुए इस फर्जीवाड़े को लेकर प्रदेश में ऊपर से लेकर नीचे तक सभी ने आंखें मूंद ली हैं। यहां तक कि पक्ष एवं विपक्ष सभी इस मामले में खामोश हैं। इस फर्जीवाड़े से राज्य के कोष पर भी जबर्दस्त असर पड़ा है। इससे प्रदेश को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। याचिकाकर्ता सतीश चंद्र लखेड़ा की ओर से उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका से इस मामले का खुलासा हुआ है।

मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने इस मामले को सुनने के बाद सरकार को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है। पता चला है कि उच्च न्यायालय में मामला पहुंचने के बाद अब शिक्षा महकमे में हड़कंप मच गया है और इन नियुक्तियों को निरस्त करने की कवायद शुरू होने लगी है।

याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि प्रदेश में स्कूली शिक्षा के लिये 2006 में उत्तराखंड स्कूल शिक्षा अधिनियम वजूद में आया। इस अधिनियम के तहत शिक्षा का एक ढांचा तैयार किया गया लेकिन 2011 में एक आदेश जारी कर शिक्षा विभाग में गैर कानूनी तरीके से लगभग 300 से अधिक नये पद सृजित किए गये। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि शिक्षा अधिनियम, 2006 की धारा 2(सी) के तहत प्रदेश में शिक्षा महकमे में शिक्षा निदेशक का एक पद का प्रावधान है लेकिन 14 जून, 2011 को जारी शासनादेश के बाद गैर कानूनी तरीके से निदेशक तीन नये पद सृजित कर दिये गये।

जिनमें निदेशक प्राथमिक शिक्षा, निदेशक सेकेंडरी एजूकेशन एवं निदेशक एससीईआरटी शामिल हैं। याचिका में आगे कहा गया है कि अधिनियम की धारा 2(डी) के तहत जिलों में जिला शिक्षा अधिकारी के एक पद का प्रावधान है लेकिन अधिनियम में बिना संशोधन किये प्रत्येक जिले में मुख्य शिक्षा अधिकारी का एक और पद सृजित कर दिया गया। मतलब 13 जनपदों में मुख्य शिक्षा अधिकारी के 13 नये पद सृजित कर दिये गये। साथ ही इन पदों के लिये नये वेतन का भी निर्धारण कर दिया गया।

याचिका में आगे कहा गया है कि शिक्षा विभाग के कारनामे यही खत्म नहीं होते। शिक्षा महकमे के अधिकारियों ने गैर कानूनी तरीके से ब्लाकों में भी खंड शिक्षा अधिकारी के 97 पद भी सृजित कर दिये। इसका भी अधिनियम में कहीं कोई प्रावधान या जिक्र नहीं है और न ही इसके लिये अधिनियम में संशोधन की जेहमत उठायी गयी। और तो और सरकार ने एक कदम आगे बढ़कर प्रदेश में ग्रुप बी के 100 पद भी बढ़ा दिये। इसका भी शिक्षा अधिनियम में कोई उल्लेख नहीं है।

शिक्षा विभाग की कहानी यही खत्म नहीं होती। याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया है कि अधिनियम की धारा 2(पी) में प्रावधान है कि प्रदेश में दो मंडलों में एक-एक अतिरिक्त निदेशक (एडी) तैनात होंगे लेकिन सरकार ने एडी के पदों की संख्या बढ़ाकर 10 कर दिये। इसी प्रकार संयुक्त निदेशक के 39 पद व उप निदेशक के 48 नये पद भी सृजित कर दिये गये। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रदेश में जहां कम छात्र संख्या के चलते एक ओर सरकारी स्कूल बंद होते जा रहे हैं वहीं शिक्षा महकमे में अधिकारियों की फौज बढ़ाई गयी है।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि इससे प्रदेश पर जबर्दस्त वित्तीय बोझ बढ़ा है। याचिकाकर्ता की ओर से अदालत से शिक्षा महकमे के 14 जून, 2011 के आदेश को निरस्त करने के साथ ही दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने और अभी तक वेतन पर खर्च धन को वसूल करने की मांग की गयी है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सीके शर्मा ने इस मामले को गंभीर बताते हुए कहा कि अदालत ने सरकार से चार सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है।

वार्ता

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