खौफनाक मंज़र

विशेष रिपोर्ट

  • तीसरी लहर को लेकर एक बात पर सभी वैज्ञानिक एकमत हैं कि टीकाकरण, मास्क, सैनिटाइजेशन, सामाजिक दूरी जैसे कदम कारगर होंगे। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा। दूसरी लहर में लाशों के अंबार देखकर भी यदि हम कोई सीख नहीं लेते तो हम न केवल अपने लिए अपितु परिवार, समाज और देश के लिए खतरा बन रहे हैं…
                                                                                     
  आरके प्रसाद
कोलकाता। कोरोना की पहली लहर का दर्द भूल भी नहीं पाये थे कि दूसरी लहर आ धमकी और इस भयावह त्रासदी के बीच केंद्र सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार विजय राघवन ने तीसरी लहर के बारे में चेतावनी दी है और कहा है कि तीसरी लहर भी आयेगी जरूर। हालांकि, यह तय नहीं है कि तीसरी लहर कब आयेगी और कितनी खतरनाक होगी, लेकिन हमें नयी लहर के लिए तैयार रहना होगा। वैसे, कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यह सितंबर के आसपास आ सकती है। कुछ का मानना है कि महाराष्ट्र में जुलाई में ही तीसरी लहर आ सकती है। कोरोना की तीसरी लहर-मतलब कयामत का इंतजार।
दूसरी लहर की त्रासदी अवर्णनीय है, अकल्पनीय है और हृदयविदारक भी, ऐसे में तीसरी लहर की आशंका लोगों को आतंकित कर रही है। फोन का रिंगटोन बजते ही सिहरन दौड़ जाती है, उधर से क्या पता कौन सी आवाज कौन सी दर्दभरी दास्तां बयां करने वाली हो। यदि प्रतिदिन दो-तीन परिचितों, मित्रों, सहयोगियों के कोरोना से मृत्यु की खबर मिले तो पत्थर दिल भी पिघल जाये, विचलित हो जाये। दूसरी लहर ने हमसे हमारी सामाजिकता, हमारे मानवीय मूल्य-बोध, दायित्व-ज्ञान, संवेदना तक छीन ली है।
लोगों की मौत और असहायता से भयातुर आंखें झकझोरती हैं। सामाजिक ताना-बाना विच्छिन्न हो गया है, हमारा जीवन और हमारी जीवन-शैली अचानक बदल गयी है, लोग हताशा-निराशा-भय-आतंक में जी रहे हैं, अधिसंख्य लोग शोकाकुल हैं, खिन्न हैं तो कई एकाकीपन और अलग-थलग पड़ने से व्यग्र हैं, अनेक अस्तित्व-संकट की घातक मानसिकता से जूझ रहे हैं।
सरकार का प्रचारतंत्र कहता है कि भयभीत न हों, आतंकित न हों लेकिन सरकार यह नहीं बताती कि आतंकित क्यों न हों। आतंकित तो खुद सरकार कर रही है। टीवी चैनलों, सोशल मीडिया, समाचार पत्रों आदि में जब यह देखने और पढ़ने को मिले कि अस्पताल में बेड की कमी, आक्सीजन, वेंटीलेटर, आईसीयू, आवश्यक औषधियों की अनुपलब्धता के कारण मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है, यदि ये चिकित्सा सुविधाएं कोरोना संक्रमितों को मिल पातीं तो अनेक जानें बचायी जा सकती थीं, तो लोग आतंकित क्यों न हों। जब लोग यह देख रहे हों कि लाशों की अंत्येष्टि के लिए श्मशान की भूमि कम पड़ रही है, परिजन अंत्येष्टि के लिए 10-12 घंटे प्रतीक्षा करने के लिए बाध्य हैं तो आतंक कैसे नहीं होगा।
नये श्मशान बनाये जा रहे हैं, हजारों लाशों को अंत्येष्टि सुविधा के अभाव में गंगा किनारे या तो मात्र दो फीट जमीन के नीचे दफना दिया जा रहा है या गंगा में प्रवाहित कर दिया जा रहा है, एक दिहाड़ी मजदूर कोरोना प्रतिबंधों, लाॅकडाउन के कारण बेरोजगार होकर परिवार का पेट भरने के लिए अपनी पत्नी के गहने बंधक रखने पर मजबूर हंै, फिर आतंक क्यों न हो। दूसरी लहर की भयावहता ने केंद्र से लेकर राज्य सरकारों, आम से लेकर खास, प्रशासन से लेकर न्यायालयों तक को झकझोर दिया है। मद्रास से लेकर इलाहाबाद, पटना से लेकर दिल्ली तक के हाई कोर्ट, यहां तक की देश की सर्वोच्च अदालत ने भी महामारी से निपटने में अक्षम केंद्र और राज्य सरकारों की तीव्र भत्र्सना की है और कई दिशानिर्देश जारी किए हैं। अदालत की यह तल्ख टिप्पणी याद रखी जायेगी कि समस्याओं के प्रति सरकार शुतुरमुर्ग की तरह चेहरा छिपा सकती है, आंखें मूंद सकती है, हम नहीं। सरकार चेते तो जनता आश्वस्त हो।
तीसरी लहरयह लहर कब आयेगी, निश्चित रूप से कह पाना संभव नहीं है लेकिन महामारी विशेषज्ञ तथा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, बेंगलुरु के प्रोफेसर गिरिधर बाबू का मानना है कि नवंबर के अंत या दिसंबर के आरंभ में यह लहर दस्तक दे सकती है। तब तक हमारे पास लोगों की जीवन-रक्षा के पर्याप्त समय है, यदि हम देश की 18 से अधिक आयु वर्ग के लोगों का टीकाकरण कर पाने में सक्षम हों। तीसरी लहर का असर कई कारकों पर निर्भर करता है।
देश में उस समय तक टीकाकरण की संख्या, सुपर स्प्रेडर कार्यक्रम (कुंभ स्नान, चुनावी रैलियां आदि), सभी प्रकार की भीड़ सबसे बड़े कारक तो हैं लेकिन यह लहर वैज्ञानिकों, डाक्टरों आदि की भी कठिन परीक्षा लेगी कि हम नये वैरिएंट का कितनी जल्द पता लगा पाते हैं और प्रतिरोधक तैयार कर पाते हैं।
सरकार के मैथमेटिकल मॉडलिंग विशेषज्ञ प्रो. एम विद्यासागर के अनुसार दूसरी लहर में संक्रमितों की संख्या अधिक हो सकती है क्योंकि कुछ ऐसे लोग हैं जिनका परीक्षण नहीं हो पाया है, कुछ ऐसे हैं जिनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं हैं लेकिन संक्रमित हैं, कुछ ऐसे हैं जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अगले छह माह तक ठीक रहेगी लेकिन तब घटने लगेगी, जब तीसरी लहर शुरू होगी। तीसरी लहर को कुंद करने के लिए हमें युद्ध स्तर पर टीकाकरण करना होगा जो अब तक काफी श्लथ है। सुदृढ़ माइक्रोप्लानिंग, सघन टीका कार्यक्रम तथा प्रभावशाली सूचना रणनीति से इस लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। दूसरी लहर से उबरने के शीघ्र बाद इस ओर ध्यान देने की जरूरत होगी।
संक्रमितों तथा मृतकों की संख्या यथासंभव कम रखने के लिए कंटेंटमेंट नीति कठोर बनानी होगी, टेस्टिंग में तेजी लानी होगी, इस उद्देश्य के लिए तैयार जिला प्रयोगशालाओं को हर तरह के आवश्यक उपकरणों से लैस करना होगा, एक सुदृढ़ कार्यबल की स्थापना करनी होगी, पर्याप्त धन की जरूरत होगी, प्रधानमंत्री ने हर जिला अस्पताल में एक आक्सीजन संयंत्र की स्थापना की घोषणा की है जो एक शुभ संकेत है।
दूसरी ओर, तीसरी लहर को काफी गंभीर बताते हुए वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के महानिदेशक शेखर सी मंडे ने कहा है कि यह लहर दूसरी से तीव्र और घातक होने वाली है। जलवायु परिवर्तन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन से जो भयावह आपदा आयेगी, वह समूची मानवता को निगल सकती है। राहत की बात है कि भारत सामूहिक संक्रमण से बचा हुआ है और मास्क, सैनिटाइजर के प्रयोग तथा सामाजिक दूरत्व जैसे उपायों से इससे बचा जा सकता है।
जनता और वैज्ञानिकों को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि थोड़ी सी भी ढिलाई या अति आत्मविश्वास हमें ले डूबेगी क्योंकि तीसरी लहर की भयावहता कल्पनातीत है। कोविड के वैरियंट की आशंका के बारे में उन्होंने कहा कि टीकाकरण से उस खतरे से निपटा जा सकता है। इस बात के कोई गंभीर संकेत नहीं है कि म्यूटेंट वायरस में टीका कारगर नहीं है। बंद कमरे में वायरस का अस्तित्व बना रहता है जबकि खुले वातावरण में यह कुछ देर बाद नष्ट हो जाता है।
पश्चिमी देशों में इसकी तीव्रता का प्रमुख कारण यह रहा कि लोग शीतकाल के मौसम में घरों में बंद रहे। संभावना व्यक्त की जा रही है कि कोरोना की तीसरी लहर कम उम्र वालों को ज्यादा प्रभावित करेगी। तीसरी लहर से सबसे अधिक बच्चों को खतरा होने की आशंका है। हालांकि, इसका कोई वैज्ञानिक अध्ययन नहीं है।
यह क्या अनुमान पर आधारित है: तीसरी लहर आने पर शिशुओं के अधिक संक्रमित होने की आशंका जतायी जा रही है। इस संबंध में शिशु रोग विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरी लहर में 5.6 प्रतिशत शिशु संक्रमित हैं जबकि उनकी आबादी 41-42 प्रतिशत है। इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि समस्या गंभीर नहीं है। सतर्कता अनिवार्य है। विशेषज्ञों के अनुसार, शिशुओं का कोरोना परीक्षण भी एक समस्या है क्योंकि नाक और गले के पिछले भाग से नमूना संग्रह यदि ठीक से नहीं हुआ तो कोरोना संक्रमण की सही रिपोर्ट मुश्किल होती है। अन्य वायरस की ही तरह कोरोना में भी सर्दी-खांसी-श्वास कष्ट के साथ पेट के रोग और शरीर पर लाल चकत्ते हो सकते हैं।
कोरोना ठीक होने के बावजूद मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी रोग हो सकते हैं। श्वसन-गति से भी कोरोना की संभावना का अनुमान लगाया जा सकता है। जब बच्चे सो रहे हों तो उनके पेट के उठने-गिरने की गति से यह अनुमेय है। यदि दो माह के शिशु की यह गति प्रति मिनट 60, 12 माह के शिशु की गति 50, एक से पांच वर्ष के बच्चे की गति 40 और पांच से बारह वर्ष के बच्चे की गति 30 से अधिक हो तो वह संकट का संकेत है। आक्सीमीटर से श्वसन गति मापी जा सकती है और यदि यह 94 से कम है तो यह समस्या की गंभीरता का द्योतक है। स्तनपान की क्षमता का कम होना, शिथिलता आदि यदि अधिक है तो अस्पताल में भर्ती कराना ही बेहतर है।
यह ध्यान भी रखा जाना परमावश्यक है कि संक्रमण के दौरान बच्चे पर मानसिक दबाव न पड़े। एक और बात पर सर्वाधिक ध्यान देने की जरूरत है। यदि मां-बाप संक्रमित हैं तो बच्चे को दादा-दादी के पास रखने से बचें क्योंकि इससे एक ओर जहां वृद्धों के संक्रमित होने की आशंका रहती है, वहीं बच्चे पर मानसिक दबाव भी पड़ता है। तीसरी लहर में बच्चों के अधिक संक्रमित होने की बात अभी एक अनुमान मात्र है क्योंकि यह लहर आने के पहले अधिसंख्य व्यस्कों का टीकाकरण हो चुका रहेगा अतः वे सुरक्षित रहेंगे और बच्चों का जब तक टीका नहीं आ जाता, उनके संक्रमण का खतरा बना रहेगा।
तीसरी लहर को लेकर एक बात पर सभी वैज्ञानिक एकमत हैं कि टीकाकरण, मास्क, सैनिटाइजेशन, सामाजिक दूरी जैसे कदम कारगर होंगे। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा। दूसरी लहर में लाशों के अंबार देखकर भी यदि हम कोई सीख नहीं लेते तो हम न केवल अपने लिए अपितु परिवार, समाज और देश के लिए खतरा बन रहे हैं।
क्या है सरकारी तैयारीः तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए केंद्र के साथ ही राज्य सरकारों ने भी इससे निपटने के लिए कमर कस ली है। कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अपने यहां चिकित्सकीय व्यवस्थाओं को पूर्ण रूप से दुरुस्त करने के निर्देश दिए हैं ताकि लोगों को असुविधाओं का सामना नहीं करना पड़े। वहीं, अधिक से अधिक टीकाकरण पर जोर दिया जा रहा है। महाराष्ट्र में सरकार ने बच्चों के लिए विशेष अस्पतालों के निर्माण तथा वर्तमान अस्पतालों में विशेष व्यवस्था के निर्देश दिये हैं।
हमें तीसरी लहर से आतंकित होने की जरूरत नहीं है। यदि हम सावधान हैं तो जोखिम की आशंका न्यूनतम है।

क्या यह जैविक युद्ध है

कोरोना की दूसरी लहर झेल रहा है भारत तो कई देश तीसरी लहर से त्रस्त हैं और भारत में भी तीसरी लहर के आने की चेतावनी जारी कर दी गयी है। इस बीच, एक प्रसिद्ध अमेरिकी वैज्ञानिक ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि यह चीन के जैविक युद्ध का नतीजा है। वैसे, कोरोना की पहली लहर के साथ ही अमेरिका और चीन के बीच इसे लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा है। चीन पर यह आरोप लगाने वाले हैं अमेरिका के विधिवेत्ता, रासायनिक तथा घातक अस्त्र विरोधी संगठन के अन्यतम सदस्य डा. फ्रैंसीस बायल, जिनकी पहल पर 1989 में बायोलॉजिकल वेपंस एंटी टेररिज्म एक्ट पारित हुआ था।
उनका आरोप है कि वुहान के इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के बायो सेफ्टी लेवल फोर प्रयोगशाला में गोपनीय तरीके से इस जैवास्त्र का निर्माण चल रहा है। यह भी आरोप है कि कनाडा के एक माइक्रोबायोलॉजी लैब से वुहान के एक शोधकर्ता ने कोरोना वायरस के सैम्पल की चोरी की है। एक शोधकर्ता के रूप में इस वैज्ञानिक का इस लैब में आना जाना लगा रहता है। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि जेनेटिक म्यूटेशन तैयार कर इस वायरस को छोड़ा गया तो इसके प्रभाव न केवल अति घातक होंगे अपितु सुदूरगामी भी होंगे और उसे संभालना और कठिन होगा। जैव वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्तमान संकट उसका एक अति लघु पूर्वाभ्यास है। सार्स और इबोला संक्रमण के दौरान भी इसी तरह के आरोप लगे थे। अमेरिका ने तो इसके लिए चीन और उसके राष्ट्रपति सी जिनपिंग को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है।
दूसरी ओर, चीन का प्रत्यारोप है कि अमेरिकी सैनिक विश्व में चीन की छवि बिगाड़ने के लिए वुहान शहर में यह महामारी लेकर आये। यदि चीन इसके लिए दोषी है तो वह अपने ही नागरिकों को मौत के मुंह में क्यों ढकेलता। जो भी हो, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस वायरस के फैलने की जड़ कहां है, इस पर मतभेद जारी हैं और इसकी जड़ तक पहुंचने के लिए गहन वैज्ञानिक खोज और अध्ययन की आवश्यकता है। ये दोनों ही देश अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए एक-दूसरे पर आरोप मढ़ते रहेंगे और यह कोरोना के समाप्त हो जाने के बाद भी जारी रहेगा। हां, यह बात जरूर है कि कोरोना के चलते बाॅयोलोजिकल वार या जैव युद्ध एक बार फिर चर्चा में है। जैव युद्ध एक ऐसा युद्ध है जिसमें सेना के तीनों अंगों-थल, नभ, जल- की जरूरत नहीं होती न घातक हथियारों का प्रयोग होता है, बस जल, थल, वायुमण्डल में घातक जीवाणुओं को चोरी-छिपे छोड़ दिया जाता है और फिर शुरू हो जाता है मौत का खेल। इस जैव आतंकवाद के जरिये किसी भी देश की सामाजिक, आर्थिक रीढ़ तोड़ी जा सकती है, राजनीतिक रूप से उसे तबाह किया जा सकता है।

जैव युद्ध का इतिहास

इस जैव युद्ध का इतिहास कोरोना से नहीं शुरू हुआ है। इतिहास काफी पुराना है। युद्ध के दौरान प्लेग, स्मालपाॅक्स आदि के जीवाणु छोड़ दिये जाते थे। इनमें प्लेग रोग से मारे गये व्यक्ति के शव को शत्रु पक्ष के शिविर में किसी भी तरीके से रख दिया जाता था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानियों ने जैवास्त्र का प्रयोग कर हजारों युद्धबंदियों को मौत के घाट उतार दिया था। आधुनिक युग में जैविक हथियारों का पहली बार प्रयोग जर्मन सैनिकों ने प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) में एंथ्रेक्स तथा ग्लैंडर्स के जीवाणुओं द्वारा किया था। 2001 में अमेरिका में एंथ्रेक्स के आक्रमण के कई मामले सामने आये थे जिनमें आतंकवादियों ने एंथ्रेक्स संक्रमित पत्र अमेरिकी कांग्रेस के कार्यालयों में भेजे जिसके कारण पांच व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी।
बताया जाता है कि इस समय जैव आतंकवाद के वाहक के रूप में करीब 200 प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस, फंगस पर्यावरण में मौजूद हैं। एंथ्रेक्स, प्लेग, बोटूलिज्म, टुलारेमिया, ग्लैण्डर, जैसे खतरनाक जीव इसमें शामिल हैं।
ये परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, न्यूट्रॉन बम, यूरेनियम, प्लूटोनियम आदि से भी खतरनाक होते हैं। विश्व के साधन संपन्न देश अपने वर्चस्व की स्थापना तथा शत्रु पक्ष को मात देने के लिए जैव अस्त्रों का प्रयोग तथा निर्माण कर रहे हैं और इसका प्रमुख कारण यह है कि एक तो इन पर लागत काफी कम (परमाणु बम की तुलना में करीब 800 प्रतिशत कम) आती है और दूसरे अन्य देशों को इसकी भनक नहीं लग पाती और जब तक भनक लगती है तब तक लाखों लोग इसके शिकार हो चुके रहते हैं।
हर पल है खतरा: वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे वायुमण्डल में रोग फैलाने वाले लाखों जीवाणु हैं। रशियन पैनल आँफ बायो-वेपन की विशेषज्ञ समिति के अनुसार आदर्श जैवास्त्र जीवाणु ऐसे जीवाणु होते हैं जिन्हें दीर्घकाल तक अविकृत रूप में संरक्षित रखा जा सकता है और जिन्हें वायुमण्डल में सहज ही मिलाया जा सकता है।
स्मालपाॅक्स, एंथ्रेक्स, प्लेग, बोटूलिज्म, वायरल एनकेफेलाइटीस आदि 11 जीवाणु इस तालिका में हैं और खूब संभव है कि कोविड-19 भी इसमें शामिल हो जाये।
कल्पना कीजिये कि इस प्रकार के जैवास्त्रों का यदि प्रयोग हुआ तो तृतीय विश्व के गरीब देशों की क्या दशा होगी। इन देशों के पास न तो इनसे लड़ने की कोई रणनीति है, न साधन हैं, न ज्ञान है, न चिकित्सकीय सुविधा। 1994 में गुजरात के सूरत में प्लेग, 1996 में भिवण्डी में बोटूलिज्म तथा 2020 में समूचे विश्व में कोरोना संक्रमण हुआ। क्या संपन्न, क्या विपन्न सभी इसकी चपेट में आये, करोड़ों संक्रमित हुए, लाखों जानें गयीं और डेढ़ साल बीत जाने के बावजूद इसका रामबाण इलाज नहीं मिल पाया है। निःसंदेह, इनसे निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून हैं, भारत में भी तंत्र है लेकिन इनका असर तो सबके सामने है।

10 लाख तक हो सकता है मौत का आंकड़ा

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के वैज्ञानिक सौम्या स्वामिनाथन ने एक वाशिंगटन विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवोल्यूशन के अनुसंधान को उद्धृत करते हुए आशंका जतायी है कि अगस्त तक भारत में कोरोना से 10 लाख लोगों की जान जा सकती है। कोरोना की पहली लहर के बाद विश्व के कई देशों ने कड़े नियमों और प्रतिरोधक उपायों का पालन करते हुए इस रोग से अपने को प्रायः मुक्त कर लिया है लेकिन भारत में न केवल इन उपायों की घोर उपेक्षा की गयी अपितु टीकाकरण में भी ढील बरती गयी।
कोरोना महामारी के एकाधिक माॅडलों ने स्थिति को इतना गंभीर बना दिया है कि निकट भविष्य में भारी संख्या में लोगों के मारे जाने की गंभीर आशंका है। स्वामिनाथन ने अति संक्रामक स्ट्रेन की सक्रियता, जागरूकता के इभाव तथा भारी भीड़ तंत्र का उल्लेख करते हुए कहा कि हम इस मौत के खुद जिम्मेदार हैं। तीसरी लहर के बारे में उन्होंने कहा कि तीसरी लहर हमारी ओर नहीं आ रही है, बल्कि हमने उसे आमंत्रित किया है, उसके अनुकूल परिस्थितियां तैयार की है। भारत में सक्रिय कोरोना बी1.617 प्रजाति को भारतीय वेरिएंट मानने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा कि यह प्रजाति काफी खतरनाक है लेकिन यह भारतीय नहीं है।
टीका के लिए कई राज्यों के ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि जरूरी नहीं कि टेंडर जारी करते ही टीका मिल जाये। सच पूछा जाये तो विश्व में टीका का कोई भण्डार नहीं है अतः टीका मिलने में विलंब होना स्वाभाविक है। हां, रशियन टीका स्पुतनिक से कुछ आशा अवश्य बंधती है।

Leave a Reply