सिस्टम तार-तार, कोरोना से मचा हाहाकार

  • दुनिया भर के वैज्ञानिक क्या कह रहे थे, उस पर गौर करने का हमारी सरकार के पास समय ही नहीं था। हम बाजारों में भीड़ लगाने लगे तो उसे रोकने की बजाय सरकार ने उस भीड़ को राजनीतिक रैलियों और कुंभ में बुला लिया। एक तरह से सरकार और लोग, सब निश्चिंत हो गए।
  • अतिउत्साह और गलतफहमी का शिकार हमारा अवाम भी हो गया, कहा जाने लगा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, गृह मंत्री अमित शाह जी, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जी, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जी, बंगाल की बेटी ममता जी लाखों लोगों की भीड़ को जमा कर चुनावी रैली कर सकती हैं तो, भला हम बेचारे भारतीय बाजारों में जाकर खरीददारी भी नहीं कर सकते क्या?
  • आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड में आज प्रति एक लाख आबादी पर 475 लोग संक्रमित हैं।इसकी तुलना में केवल महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल आगे हैं। केरल इस सूची में सबसे ऊपर है जहां एक लाख आबादी में 822 संक्रमित हैं। दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र में एक लाख पर 589 और कर्नाटक में एक लाख पर 502 सक्रिय संक्रमित हैं। खास बात यह है कि केरल कर्नाटक और महाराष्ट्र को लेकर पूरे देश में भारी चिंता है जो कि उत्तराखंड को लेकर नहीं दिखती।

विशेष रिपोर्ट: मौहम्मद शाहनजर

देहरादून।‘‘हर किसी को पता है कि महामारियों के पास दुनिया में लौट आने का रास्ता होता है। फिर भी न जाने क्यों हम उस चीज पर यकीन ही नहीं कर पाते जो नीले आसमान से हमारे सिरों पर गिरती है’’

अदृश्य कोरोना वायरस ने समूचे मानव जगत को झकझोर कर रख दिया है। इस वैश्विक महामारी से विकसित हो या विकासशील सभी देश निजात हासिल करने को जंग करते हुए दिखाई दे रहे हैं। कुछ देशों में कोरोना संक्रमितों की संख्या को उचित प्रबंधन कर काबू में कर भी लिया गया है, मगर भारत में इस वक्त कोरोना की दूसरी लहर ने कोहराम मचाया हुआ है। चुनाव वाले राज्यों ओर कुंभ मेले को छोड़ कर देश भर में कोरोना कर्फ्यू के बीच हर तरफ सन्नाटे को चीरती हुई एंबुलेंस की ही आवाज सुनाई दे रही है।

विश्व गुरु बनने की कगार पर खड़े भारत में अस्पतालों, श्मशान घाटों, कब्रिस्तानों, आक्सीजन आपूर्ति करने वाली एजेंसियों और मानवता को सात तालों में कैद कर चुके दवा कारोबारियों के दर पर लंबी-लंबी कतारें कोरोना वायरस की भयावहता और सिस्टम के तार-तार होने की कहानी बयां कर रही है। पिछले साल कोरोना की पहली लहर के पूरी तरह खत्म होने से पहले ही हम उसके समाप्त होने का जश्न मनाने लगे। सरकार अपनी पीठ ठोकने लगी। उसे भुलाने के प्रयास में एक तरह से हमने मान लिया कि बस कोरोना गया और अब वह नहीं आएगा। दुनिया भर के वैज्ञानिक क्या कह रहे थे, उस पर गौर करने का हमारी सरकार के पास समय ही नहीं था। हम बाजारों में भीड़ लगाने लगे तो उसे रोकने की बजाय सरकार ने उस भीड़ को राजनीतिक रैलियों और कुंभ में बुला लिया। एक तरह से सरकारें और लोग, सब निश्चिंत हो गए।

जब कोरोना वायरस की शुरुआत हुई थी तो अल्बर्ट केमस-आल्बेर कामू के ‘प्लेग’ उपन्यास की खूब चर्चा हुई, इस उपन्यास को विश्व साहित्य में किसी महामारी की परिस्थितियों का चित्रण करने वाला बेहतरीन उपन्यास माना गया है। उपन्यास के लेखक को 1957 में नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। आप सोच रहे होंगे कि कोरोना महामारी से एक उपन्यास का क्या लेना-देना? जी हां, इस उपन्यास का महामारी में बरती जाने वाली सुस्ती-सरकारों और जनता की अनदेखी का भी चित्रण है। प्लेग दो लाख की आबादी वाले शहर की कहानी पर आधारित है। महामारी का पता चलते ही शहर के सभी दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं।

जो जहां है, वही रोक दिया जाता है। (लॉकडाउन की तरह) पहले हर तरफ चूहे मरने लगते हैं, फिर इंसानों की बारी आती है। उपन्यास में एक जगह लिखा है कि ‘हर किसी को पता है कि महामारियों के पास दुनिया में लौट आने का रास्ता होता है। फिर भी न जाने क्यों हम उस चीज पर यकीन ही नहीं कर पाते जो नीले आसमान से हमारे सिरों पर गिरती है’। दरअसल, हम महामारियों को भूल जाते हैं।

आगे के लिए कोई कारगर तैयारी नहीं करते जिसका नतीजा हम सब को देखने और सिसक-सिसक कर हाथ मलते रहने को मजबूर करता है। ऐसा ही कुछ फिलवक्त हमारे साथ भी हो रहा है। जब कोरोना के प्रकोप से बचाव को कदम उठाने का समय था, तब हमने सरकार गिराने, सरकार बनाने, कुछ राज्यों में सत्तासीन सरकारों को बेदखल करने के लिए लाखों की भीड़ जमा कर चुनावी रैलियां करने में अपना कीमती वक्त लगा दिया। अब जब पानी सर से उपर गुजर गया तो हमें आक्सीजन प्लांट लगाने, वेंटिलेटर बेड बढ़ाने की याद आ रही है।
श्मशान घाट में रात-दिन जल रही चिताओं से उठने वाले धुएं को छिपाने के लिए बड़े-बड़े बैनर लगाए जाने लगे हैं। पहले भी अपनी नाकामी को छिपाने के लिए दीवारें तक बनाई गई हैं। क्या हमारा स्वास्थ्य सिस्टम पहले से ही खोखला था, या अचानक दबाव बढ़ने पर पोल खुली है। दरअसल, स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर हमारी सरकारें और आम जनमानस कभी उतना गंभीर नहीं रहा जितना होना चाहिए था।

खासकर, उत्तराखंड में तो अब तक की सरकारें लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैय्या कराने में नाकाम ही साबित हुई हैं।
‘फलां अस्पताल में तीन माह से खराब हैं एक्सरे मशीन’, ‘फलां मेडिकल काॅलेज में एमआरआई मशीन महीनों से जंग खा रहीं’, ‘प्रसूता को 40 किमी तक कंधे पर लाद कर लाए फौजी’, ‘लिफ्ट खराब, तीमारदारों ने कंधों पर गर्भवती को पहुंचाया ओटी’, ‘तीन माह में आ रहा अल्ट्रासाउंड का नंबर’ हर रोज अखबारों की यह सुर्खियां हर कोई पढ़ रहा था, आज जो मंत्री अपने भांजे तक को एक अदद बेड दिलाने को दिन भर इधर से उधर फोन करते हुए सिस्टम को नाकारा करार दे रहे हैं, कल तक उनकी हनक से सरकार और सीएम तक बदले गये हैं, लेकिन अब लाचारी का आलम है।

कोरोना ने सरकारी सिस्टम की तो पोख खोली ही है, अपने आप को वक्त का खुदा समझ बैठे सियासतदानों को भी जमीन दिखा दी है। इटली, तुर्की और ब्राजील में जब मौतों का आंकड़ा आसमान छू रहा था, तो हमारे कर्णधार जश्न मना रहे थे कि हमारी सरकार और दुनिया की सब से बड़ी सियासी जमात ने कोरोना को मात देने की दहलीज पर कदम रख लिया है, फलां राज्य के चुनाव के बाद भारत कोरोना मुक्त हो जाएगा?

यही अतिउत्साह और गलतफहमी का शिकार हमारा अवाम भी हो गया, कहा जाने लगा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, गृह मंत्री अमित शाह जी, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जी, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जी, बंगाल की बेटी ममता जी लाखाों लोगों की भीड़ को जमा कर चुनावी रैली कर सकती हैं तो, भला हम बेचारे भारतीय बाजारों में जाकर खरीददारी भी नहीं कर सकते क्या? इसी का परिणाम है कि आज दुनिया के करीब 50 फीसदी केस हर दिन भारत में दर्ज किए जा रहे हैं। दुनिया में हर तीसरी मौत भारत में हो रही है। अमेरिका के बाद कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित अपना भारत ही है। देश के कुछ राज्यों में कोरोना संक्रमण का कहर पहले से कम हुआ है लेकिन संकट अभी टला नहीं है। तीसरी लहर के आने के खतरे के बीच ब्लैक फंगस की दस्तक से स्वास्थ्य मंत्रालय की बेचैनी बढ़ गई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, पिछले 24 घंटों (13 मई 2021) में 343,144 नए कोरोना केस आए और 4000 संक्रमितों की जान चली गई है। हालांकि, 3,44,776 लोग कोरोना से ठीक भी हुए हैं। 13 मई 2021 तक देशभर में 17 करोड़ 92 लाख 98 हजार 584 कोरोना डोज दिए जा चुके हैं। अब तक 31.13 करोड़ से ज्यादा कोरोना टेस्ट किए जा चुके हैं। देश में कोरोना की ताजा स्थिति पर नजर डाली जाए तो भयावह हालात नजर आते हैं।

अब तक दो करोड़ 40 लाख 46 हजार 809 लोगों को कोरोना अपनी चपेट में ले चुका है। दो करोड़ 79 हजार 599 मरीजों को सही होने के बाद डिस्चार्ज किया जा चुका है। 37 लाख 4 हजार 893 एक्टिव केस दर्ज किये गये हैं। अब तक कोरोना से 2 लाख 62 हजार 317 जिंदगियां समाप्त हो चुकी हैं। देश में कोरोना से मृत्यु दर 1.09 फीसदी है, जबकि रिकवरी रेट 83 फीसदी से ज्यादा है। एक्टिव केस घटकर करीब 16 फीसदी हो गए हैं।

कोरोना एक्टिव केस मामले में दुनिया में भारत का दूसरा स्थान है। कुल संक्रमितों की संख्या के मामले में भी भारत का दूसरा स्थान है। जबकि दुनिया में अमेरिका, ब्राजील के बाद सबसे ज्यादा मौत भारत में हुई है। अगर उत्तराखण्ड जैसे पहाड़ी और कम जनसंख्या वाले राज्य की बात की जाए तो यहां कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों का औसत राष्ट्रीय औसत से अधिक है। देश में कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों की संख्या उत्तराखंड में सबसे कम है। उत्तराखंड में सबसे कम रिकवरी रेट 67.8 प्रतिशत है। इसके बाद सिक्किम (68.5 प्रतिशत), कर्नाटक (70.6 प्रतिशत ), हिमाचल (72 प्रतिशत), गोवा (73.2 प्रतिशत), राजस्थान (73.4 प्रतिशत) और केरल (78.3 प्रतिशत) हैं। मिजोरम, लक्षद्वीप, नागालैंड, जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी अन्य ऐसे राज्य हैं जिनका रिकवरी रेट 75 प्रतिशत से कम है।

उत्तराखंड को लेकर राज्य में और राज्य के बाहर भी ऐसी धारणा है कि यहां कोरोना के मामले बहुत ज्यादा नहीं हैं। खबर लिखे जाने तक उत्तराखण्ड में कुल संक्रमितों की संख्या 30 हजार के आंकड़े को छू रही थी, जबकि सक्रिय मामले 80 हजार तक पहुंच गए थे। और प्रदेश में साढ़े चार हजार लोग कोरोना संक्रमण के कारण अपनी जान गंवा चुके थे। हालांकि, एक लाख 88 हजार से ज्यादा लोग कोरोना को मात भी दे चुके हैं। उत्तराखंड में संक्रमितों की तुलना में ठीक होने वाले मरीजों की संख्या कम होने से सक्रिय मामले लगातार बढ़ रहे हैं। वर्तमान में प्रदेश की रिकवरी दर 67.98 प्रतिशत और सैंपल जांच के आधार पर संक्रमण दर 6.60 प्रतिशत दर्ज की गई है। दिल्ली-मुंबई को लेकर तो सारे देश और मीडिया में हंगामा है कि वहां हालात बेहद गंभीर हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि यदि प्रति लाख जनसंख्या पर कोरोना संक्रमित मामलों के आधार पर देखें तो उत्तराखंड दिल्ली-मुंबई से बहुत आगे निकल चुका है, औेर हमारे एक खेवनहार कोरोना को प्राणी करार देकर उसे बचाने की कवायद करने की बात कह रहे हैं।
यह बात दीगर है कि वह सुशासन का डंका बजाने के बावजूद अपना सिंहासन नहीं बचा सके। जश्न की दहलीज से उन्हें इस शेर के तहत ‘बहुत निकले अरमां मगर फिर भी कम निकले, बड़े बे-आबरू हो कर हम तेरे कूचे से निकले’ वनवास की ओर जाना पड़ा। ओहदा जाते ही साहब को महाभारत के पात्र भी याद आने लगे, ….खैर, बात कहीं ओर निकल जाएगी, वापस कोरोना के दौर में उत्तराखण्ड के हालात पर आते हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड में आज प्रति एक लाख आबादी पर 475 लोग संक्रमित हैं। इसकी तुलना में केवल महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल आगे हैं। केरल इस सूची में सबसे ऊपर है जहां एक लाख आबादी में 822 संक्रमित हैं। दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र में एक लाख पर 589 और कर्नाटक में एक लाख पर 502 सक्रिय संक्रमित हैं। खास बात यह है कि केरल कर्नाटक और महाराष्ट्र को लेकर पूरे देश में भारी चिंता है जो कि उत्तराखंड को लेकर नहीं दिखती। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि जिन प्रदेशों में कोरोना को लेकर बहुत ज्यादा गंभीर हालात बताए जा रहे हैं, वे दरअसल उत्तराखंड से बहुत पीछे है।

क्या हम सही दिशा में चले?

मानवता तार-तार है, हाकिम के आपदा में अवसर तलाशने के हुक्म के बाद हर तरफ कालाबाजारी अपने चरम पर पहुंच गई है। लाचार-बेबस इंसानों को कोरोना के नाम पर हर तरफ नोचने का काम किया जा रहा है। बाजार में ऑक्सीजन से लेकर रेमडेसिवीर की काला बाजारी खुले आम हो रही है। 400 रुपये में मिलने वाला ऑक्सीजन का सिलेंडर 20 हजार रुपए तक में बिक रहा है। देश में हर तरफ कयामत का मंजर नजर आता है। इन हालात की उम्मीद किसी ने भी नहीं की थी और न इस बात की उम्मीद थी कि भारत जैसे विशाल देश में सेहत और स्वास्थ्य के संस्थान इतने खोखले साबित होंगे कि एक हल्की सी हवा से उखड़ जाएंगे।

सेहत के मामले में भारत को दुनिया में भरोसे का मुकाम हासिल है। यहां के अस्पतालों में विदेश के मरीज भी इलाज के लिए बड़ी संख्या में आते हैं। लेकिन आपातकालीन हालात में भारत के अस्पतालों की व्यवस्था और सरकारों की व्यवस्था इतनी नाजुक डाली पर टिकी है, इसका अंदाजा इन दिनों खूब हो रहा है। रोजाना सैकड़ों मरीज केवल ऑक्सीजन की कमी से मर जाते हैं, ऐसा नहीं है कि देश में ऑक्सीजन के भण्डार न हों, या कम हों, भण्डार बहुत और काफी हैं, कुछ और अधिक ऑक्सीजन भी तैयार की जा रही है, और दुनिया भर से मदद के तौर पर भी ऑक्सीजन भारत पहुंच रही है। इसके बावजूद हालात काबू से बाहर हैं।

बुनियादी सुविधाओं के लिए 70 साल में क्या किया?

पिछले सत्तर साल में हमने अपने देश में जरूरी बुनियादी सुविधाओं के लिए कुछ खास नहीं किया है और बात इधर सात-आठ साल की करें तो जुमले बाजी में गुजार दिये। हमने कभी शिक्षा, सेहत, रोजगार, ट्रांसपोर्ट, सुरक्षा, अमन व सुकून, खुशहाली, वैज्ञानिक खोज, न्याय और इन्साफ कायम करना, देश के लोगों के बीच भाईचारा स्थापित करना कभी हमारे एजेंडे का हिस्सा ही नहीं रहे। हां, मीडिया मैनेजमेंट का हुनर हम खूब जानते हैं, कभी गरीबी हटाओं का नारा दिया जाता रहा, तो कभी शाइनिंग इंडिया की चमक से जनता को बहलाया गया, कभी महंगाई हटाओ के नारे के साथ सत्ता हासिल कर मेक इन इंडिया का नारा लगा कर नौजवानों को पकौड़ा तलने की सीख दी जाती रही। चीन ने आंख दिखाई तो, मेक इन इंडिया सिस्टम औंधे मुंह गिर पड़ा। आत्मनिर्भर भारत और गुड-गवर्नेंस की पोल ऑक्सीजन संकट ने खोल दी है।

हुक्मरानों ने कभी देशहित को सर्वाेपरि नहीं माना!

आजाद भारत का राजनीतिक इतिहास देखा जाए तो, हमारे राजनेता और हुक्मरान कभी भी देश और देशवासियों के प्रति सच्चे शुभ-चिन्तक नहीं रहे। बल्कि, ये सत्ताधीश सफेदपोश स्वार्थ के पुरोधा रहे हैं। दिवंगत राजीव गांधी ने खुद माना था कि सौ रुपये में से पंद्रह रुपये भी आम आदमी तक नहीं पहुंचते। स्विस बैंकों में हमारे नेताओं का काला धन जमा है, जिसे लाने के लिये एक पुराने बाबा ओर एक नये अवतारी बाबा बन रहे महाशय दिन रात इस डाल से उस डाल छलांग लगा रहें हैं। बोफोर्स तोपों की गरज के बीच राफेल की घनघनाती आवाज भारतीयों का सीना चीर रही है। कुछ कारोबारियों को फायदा पहुंचाने का खेल जारी है, हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, लाल किला और ताज महल बेचे जाने की कवायद जारी है। यदि कोरोना महामारी न आती तो, कुछ और भी फरोख्त होने की कगार पर होता। लोग ऑक्सीजन की कमी से मौत को गले लगा रहे हैं और इधर नये पीएम आवास-संसद भवन और जहाज का इस्तकबाल हो रहा है। लेकिन, इधर जनता को बगैर ऑक्सीजन के ही जीना पड़ेगा, जो नामुमकिन है। अस्पतालों की चीख-पुकार, श्मशान घाटों की लपटें, कब्रिस्तानों से वापस होने वाली मय्यतों को देख आंखों से आंसू नहीं खून टपकने लगते हैं। क्या वीर अब्दुल हमीद ने इसीलिए जान दी थी कि उसका बेटा ऑक्सीजन की कमी से मर जाएगा? क्या रेमडिसीवर की काला बाजारी और ऑक्सीजन की लूटमार हमारी ‘प्राचीन सभ्यता’ का मजाक नहीं उड़ा रही हैं। सवाल यह भी है कि क्या हम सही दिशा में चले ?

श्मशान घाट बढ़ाए उत्तराखंड सरकार: हाईकोर्ट

उत्तराखंड में कोरोना के बिगड़ते हालातों को लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट का यह कहना कि प्रदेश में सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में बेड की भारी कमी है। यह सरकार के काम-काज को आइना दिखाता है। कोरोना को बढ़ते खतरे को देखते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चैहान की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वे गरीब तबके के लोगों के उपचार के लिए ई-कार्ड जारी करें, ताकि प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में उन्हें निःशुल्क इलाज मिल सके। सुनवाई के दौरान में याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया था कि अस्पताल में कोविड बेड नहीं हैं। इसके अलावा ऑक्सीजन की भी कोई उचित व्यवस्था नहीं है।

रेमडेसिविर इंजेक्शन की भी जमकर कालाबाजारी हो रही है। प्रदेश में हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि श्मशान घाट भी कम पड़ गए हैं। अंतिम संस्कार करने के लिए श्मशान घाट में लकड़ियां नहीं हैं। एंबुलेंस संचालक मरीजों और मृतकों को घर से अस्पताल और श्मशान घाट ले जाने के लिए पांच से 80 हजार रुपये मांग रहे हैं। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि सभी अस्पतालों में बेड की स्थिति से कोर्ट को अवगत कराया जाए। ऑक्सीजन और दवाओं की जो कालाबाजारी हो रही है उसका जिलाधिकारी संज्ञान लें। ऐसे लोगों पर तत्काल कार्रवाई की जाए, जो एंबुलेंस संचालक ऐसे समय में भी लोगों को लूट रहे हैं। उनकी एंबुलेंस जब्त की जाए। कोर्ट ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को आदेश दिए कि वे अपने यहां श्मशान घाटों की संख्या बढ़ाएं। शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए लकड़ी की व्यवस्था की जाए, ताकि किसी को परेशानी न हो। प्रदेश के सभी अस्पतालों को आदेश दिया है कि कोविड की वजह से जितने भी मरीजों की मौत हो रही है, उनका अंतिम संस्कार कोविड नियमों के तहत किया जाए। कोर्ट के आदेश के बाद वन मंत्री ने श्मशान घाटों को लकड़ी मुहैय्या कराने की बात कही है। देहरादून निवासी याचिकाकर्ता सच्चिदानंद डबराल और हल्द्वानी निवासी अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली की याचिका पर कोर्ट सुनवाई कर रहा है।

सरकार का दावाः स्वास्थ्य सेवाओं को किया मजबूत

एक ओर उत्तराखंड कोरोना संक्रमण से बेहाल है, वहीं प्रदेश सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है कि कोरोना कि रोकथाम के लिए लगातार प्रयास लिए जा रहे हैं। प्रदेश के सचिव स्वास्थ्य अमित नेगी के मुताबिक, 1 अप्रैल 2020 को प्रदेश में 216 आईसीयू बेड थे जो अब बढ़ कर 1336 हो गये हैं। पिछले एक माह में ही करीब 500 आईसीयू बैड बढाए हैं। इसके साथ ही 1 अप्रैल 2020 को वेंटीलेटर बैड की संख्या 116 थी जिसे बढ़ा कर 842 कर दिया गया पहले ऑक्सीजन बैड 673 थे, अब 6002 हो गये हैं। पिछले एक माह में लगभग 2500 आक्सीजन बैड बढ़ाए गये हैं। पहले प्रदेश में ऑक्सीजन की खपत 8 मिट्रिक टन थी, जबकि 1 अप्रैल 2021 को प्रदेश में ऑक्सीजन की खपत 15-20 मिट्रिक टन तक बढ़ गई और वर्तमान में 100 मिट्रिक टन के करीब ऑक्सीजन की खपत है। 1 अप्रैल 2020 को जहां प्रदेश में टाइप-बी ऑक्सीजन सिलेंडर की संख्या 1193 थी, जो अब बढ़ा कर 9917 कर दी गई है। प्रदेश में 1 अप्रैल 2020 को ऑक्सीजन कन्सन्ट्रेटेड की संख्या 275 थे जो अब 3275 हो गई हैं। पहले सिर्फ श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के पास अपना ऑक्सीजन प्लांट था, जबकि 1 अप्रैल 2021 से मेला हॉस्पिटल हरिद्वार में था और वर्तमान में 6 जगह स्थापित हो गये। 9 स्थानों पर ऑक्सीजन प्लांट जल्द लगाए जाने का भी दावा किया जा रहा है।

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