महामारी पर राजनीति?

संपादकीय

  • महामारी से निपटना केंद्र सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। यदि ऐसा करने में कुछ आर्थिक दिक्कत है तो कंपनियों से बात करके सरकार को केंद्र व राज्यों के लिए टीके का एक ही रेट तय करना चाहिए…

धर्मपाल धनखड़

देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर चरम पर है। सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करें तो संक्रमण की दर कुछ धीमी हुई है। रोजाना 3.50 लाख से ज्यादा संक्रमित पाए जा रहे हैं, जिनकी संख्या कुछ दिन पहले चार लाख से ज्यादा पहुंच गयी थी। वहीं, कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा पहली बार एक दिन में 4200 को पार कर गया है। ये बेहद चिंताजनक है। अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन को लेकर अफरातफरी जारी है।

रेमडेसिवर समेत जीवन रक्षक दवाओं और उपकरणों की कालाबाजारी धड़ल्ले से हो रही है। आक्सीजन की कमी से विभिन्न राज्यों से मरीजों के दम तोड़ने की खबरें लगातार आ रही हैं। अंततः आक्सीजन और दवाओं के वितरण के लिए सर्वोच्च न्यायालय को 12 सदस्यीय राष्ट्रीय टास्कफोर्स का गठन करना पड़ा।

देश के अलग-अलग हिस्सों से महामारी की विचलित करने वाली तस्वीरें सामने आ रही हैं। कहीं शवों को जलाने को श्मशान घाटों में जगह कम पड़ रही है, तो कहीं चिता के लिए लकड़ियां नहीं मिल रही हैं। पतित पावनी गंगा में बहते पाये गये शवों का दृश्य सबसे भयावह है। बिहार के बक्सर में गंगा से 110 शव निकाले गये। इंसानियत का तकाजा तो ये था कि इन शवों का सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता। लेकिन प्रशासन ने जेसीबी की मदद से इन्हें दबा कर महज रस्म अदायगी की। बिहार पुलिस का दावा है कि ये शव उत्तर प्रदेश से बहकर आये हैं। नदियों में बहते शवों से जाहिर है कि आंकड़ों में हेरा-फेरी करके सच को छिपाया जा रहा है।

इस बीच कोरोना से ठीक हो चुके लोग अब ब्लैक फंगस के शिकार हो रहे हैं। तेजी से पैर पसार रहा ब्लैक फंगस स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए नयी मुश्किलें खड़ी कर रहा है। इसके साथ ही कोरोना वायरस का घातक स्वरूप बी.1.6.17 भारत समेत दुनिया के 44 देशों तक पहुंच चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, वायरस के इस स्वरूप का संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है। महामारी की दूसरी लहर ने शहरों के साथ साथ गांवों में भी भयानक रूप ले लिया है। पहले से ही बुरी तरह चरमरा चुके स्वास्थ्य ढांचे के बूते पर ग्रामीण क्षेत्रों में महामारी से निपटना बेहद चुनौतीपूर्ण है।

विभिन्न राज्य सरकारें गांवों में ही संक्रमितों को इलाज मुहैया करवाने के बड़े-बडे़ दावे तो कर रही हैं, लेकिन इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। जिस सिस्टम के बूते शहरों में घरों में आइसोलेट किये गये मरीजों तक आक्सीजन और दवाइयां पहुंचा पाना संभव नहीं हो पा रहा है, वह गांवों में संक्रमितों को कैसी चिकित्सा सुविधा दे पायेगा इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहे लोग तीसरी लहर आने की चेतावनियों को लेकर भी भयाक्रांत हैं। कोरोना की पहली लहर ने सबसे ज्यादा बुजुर्गों की बलि ली, तो दूसरी लहर में बड़ी संख्या में जवान लोग प्रभावित हुए हैं। तीसरी लहर के बारे में कहा जा रहा है कि इसका ज्यादा प्रभाव बच्चों पर पड़ेगा। इसको लेकर वैज्ञानिक लगातार चेतावनी भी दे रहे हैं।

महामारी से फैली अव्यवस्था और लूट-खसोट के चलते लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश बढ़ रहा है। पक्ष-प्रतिपक्ष में आरोप-प्रत्यारोपों का दौर तेज हो गया है। सरकार को एक तरफ महामारी से उपजे हालात से निपटना है तो दूसरी ओर विपक्ष को माकूल जवाब देने के साथ-साथ उसे राजनीतिक लाभ उठाने से भी रोकना है। इसी के चलते जिन राज्यों में विरोधी दलों की सरकारें हैं, वे केंद्र पर ऑक्सीजन, रेमडेसिवीर इंजेक्शन तथा वैक्सीन के आवंटन में अनदेखी किये जाने का आरोप लगा रही हैं। ये आरोप काफी हद तक सही भी हैं। ज्यादातर राज्य सरकारों को अपने नागरिकों को राहत दिलवाने के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है।

दिल्ली इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। दिल्ली देश की राजधानी है। निःसंदेह वहां पर इलाज के लिए मरीजों का ज्यादा भार भी है। गौरतलब है कि दिल्ली में सरकार के तमाम बड़े-बडे़ चिकित्सा संस्थान हैं और अच्छी चिकित्सा सुविधाओं की चाहत में बड़ी संख्या में मरीज राजधानी का रुख कर भी रहे हैं। इसके चलते उत्तरप्रदेश और हरियाणा के दिल्ली के साथ लगते शहरों में भी दबाव बढ़ा है। तमाम अस्पताल ओवरलोड हैं। राजनीति के चलते दूसरे राज्यों से आने वाले मरीजों के साथ अस्पतालों में भेदभाव किये जाने के मामले भी बढ़ रहे हैं। ऐसे में प्रदेश सरकारों की जिम्मेदारी बनती है कि मरीजों के साथ क्षेत्र के आधार पर किसी तरह का भेदभाव ना हो।

12 विपक्षी दलों के नेताओं ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर सेंट्रल विस्टा परियोजना को स्थगित करके सबको मुफ्त टीका लगाने की मांग की है। उनका कहना है कि परियोजना के पैसे को टीकाकरण पर खर्च किया जाये। ये सच है कि महामारी पर टेस्ट बढ़ाकर और सबको वैक्सीन देकर ही काबू पाया जा सकता है। केंद्र सरकार भले ही अन्य देशों के मुकाबले भारत में टीकाकरण की गति तेज होने का दावा कर रही है, लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है। जिस गति से टीकाकरण हो रहा है उसके हिसाब से तो अगले चार साल में भी सबको वैक्सीन दे पाना संभव नहीं है। वैक्सीन की कमी के चलते तमाम राज्य सरकारें टीकाकरण के लक्ष्य से काफी दूर हैं। इसमें सबसे बड़ी दिक्कत है घर-घर जाकर टीका लगाने में सरकार का असमर्थता जताना।

महामारी से अपना जीवन बचाने का हर नागरिक को अधिकार है और ये केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार को वैक्सीन के लिए केवल दो कंपनियों पर निर्भरता खत्म करनी चाहिए। साथ ही, केंद्र की ओर से सबका मुफ्त टीकाकरण किया जाना चाहिए। महामारी से निपटना केंद्र सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। यदि ऐसा करने में कुछ आर्थिक दिक्कत है तो कंपनियों से बात करके सरकार को केंद्र व राज्यों के लिए टीके का एक ही रेट तय करना चाहिए। साथ ही, जीएसटी की दर नाममात्र रखनी चाहिए। हां, निजी चिकित्सा संस्थानों के लिए टीके का रेट ज्यादा रखा जा सकता है। महामारी के इस दौर में अपने नागरिकों का जीवन बचाने के लिए पक्ष और प्रतिपक्ष को राजनीति से ऊपर उठकर एकजुट प्रयास करने होंगे।

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