महामारी से हाहाकार, घने जंगलों तक पहुंचा कोरोना, नक्सली भी चपेट में

  • डेढ़ सौ से ज्यादा नक्सली कोरोना संक्रमण की चपेट में
  • पुलिस और सुरक्षा बल सतर्क, ग्रामीणों से दूर रखने की कोशिश

राकेश प्रजापति

भोपाल। प्रदेश में कोरोना महामारी ने हाहाकार मचा रखा है। इससे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल तो खुल ही गई है, साथ ही कोरोना का संक्रमण शहरों में कोहराम मचाने के बाद गांव तक फैला और अब यह जंगलों में भी पांव पसार चुका है। मध्यप्रदेश ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के भी कई जिलों के जंगलों में संक्रमण फैलने की खबरें आ रही हैं। दंडकारण्य के जंगल में भी कोरोना पहुंच चुका है।

जंगल क्षेत्र में कोरोना संक्रमण फैलने की वजह से बड़ी संख्या में नक्सली इस महामारी की चपेट में आ गए हैं। इसे देखते हुए पुलिस और सुरक्षा बल सतर्क हो गए हैं। उनकी कोशिश है कि नक्सलियों को गांव वासियों से दूर रखा जाए।

पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, मध्यप्रदेश के बालाघाट, मंडला और छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा में करीब 160 से ज्यादा नक्सली कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गए। इनमें पच्चीस लाख की इनामी बस्तर की हार्डकोर नक्सली सुजाता सहित नक्सलियों के कई अन्य लीडर भी शामिल हैं। सुजाता की उम्र 60 वर्ष बताई जा रही है। साथ ही, नक्सलियों के गंगालूर एरिया कमेटी का सचिव दिनेश और नक्सली जयलाल भी बीमार है।

इन दोनों पर ही दस-दस लाख रुपए का इनाम घोषित है। पुलिस को इसकी पुख्ता जानकारी मिली है। दंतेवाड़ा एसपी अभिषेक पल्लव ने नक्सलियों में संक्रमण की पुष्टि करते हुए अंदरुनी इलाकों के ग्रामीणों पर भी इस महामारी के संक्रमण की आशंका जताई है।
नक्सलियों में कोरोना संक्रमण फैलने की पुलिस की जानकारी पुख्ता है। दंतेवाड़ा पुलिस को सूचना मिली है कि दक्षिण बस्तर डिवीजन, दरभा डिवीजन, पश्चिम बस्तर डिवीजन और बालाघाट में नक्सली कोरोना संक्रमित हो गए हैं। दक्षिण बस्तर में ही दंतेवाड़ा बीजापुर और सुकमा जिले आते हैं। इन इलाकों में सरकार ने भी आंध्र प्रदेश स्ट्रेन को लेकर अलर्ट जारी किया है। दरअसल, इस स्ट्रेन को लेकर चिंता बनी हुई है। यही नहीं, प्रशासनिक अफसरों ने भी नक्सलियों के इसी स्ट्रेन से संक्रमित होने की संभावना जताई है। हालांकि, अब तक किसी नक्सली की मौत की खबर सामने नहीं आई है।

गांवों में बैठकें ले रहे नक्सली

पुलिस विभाग के खुफिया सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, कोरोना के पहले ही छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के नक्सली मध्यप्रदेश में आ चुके थे। यह नक्सली गांव-गांव जाकर बैठकें ले रहे हैं। नक्सलियों के साथ ग्रामीणों की इन बैठकों में सोशल डिस्टेंसिंग पर कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा है। लोग झुंड बनाकर एक जगह बैठ रहे हैं। वहीं, बड़े कैडर के नक्सलियों ने खुद को जंगल में ही आइसोलेट कर रखा है, जबकि निचले कैडर के नक्सलियों को इस महामारी के बारे में ज्यादा नहीं बता रहे हैं। इन दिनों प्रदेश भर के जंगलों में तेंदूपत्ता तोड़ने का काम जोरों से चल रहा है इसलिए नक्सलियों की गतिबिधिता तेज हो गई है, वहीं आदिवासियों का घने जंगली से तेंदूपत्ता तोड़ने के चलते सुरक्षावाल भी लोगों के आवागमन को लेकर नजरअंदाज किये हुए हैं। इसी बात का फायदा मध्य प्रदेश के इन इलाकों में नक्सली डेरा जमाये हुए हैं!  जानकारों के अनुसार, मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों में लगातार पकड़े गए नक्सली उनके सहयोगी तो यही कहते हैं कि मध्य प्रदेश के कई जिले इनके लिए आरामगाह बन चुके हैं। इन जिलों में मुख्य रूप से बालाघाट, अनूपपुर, मंडला, सिंगरौली शामिल हैं। ये इन जिलों से पिछले लंबे समय से लगातार आते जाते रहे हैं।

नाम न छापने की शर्त पर  पुलिस सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश के समीपस्थ राज्य में किसी घटना को अंजाम देने के बाद या बिना कोई घटना किए भी  पुलिस की चिंता से मुक्त होने के लिए नक्सली इन क्षेत्रों में आते हैं ! इतना ही नहीं, सूचनाएं तो यहां तक हैं कि बालाघाट के जंगलों में कई बार यह नक्सली आराम करने आते हैं! इस दौरान यह पेड़ों और जंगलों में रहने वाले बैगा जनजाति के परिवारों में पुलिस से सुरक्षित बने रहते हैं! इसके बाद मामला शांत होने पर यह आसानी से यहां निकल जाते हैं!

बालाघाट सबसे ज्यादा प्रभावित

बालाघाट जिले के बैयर, सोन गुद्दडा, देवरवेली खास ऐसे क्षेत्र हैं जहां समय-समय पर नकली मूवमेंट की सूचना पुलिस तक भी पहुंचती रहती है! इसके अलावा इस जिले में नक्सली हथियारों का पकड़ा जाना तो आम बात की है! जबकि पूर्व में कई नक्सली या उनके सहयोगी भी यहां पकड़े जा चुके हैं! इतना ही नहीं, पूर्व में नक्सलियों की पत्नियां जिन्हें नक्सली के साथ रहने का आरोप है। अपने कुछ समय पहले बच्चे जन्मों के साथी यहां पकड़े भी जा चुके हैं! इसके अलावा सिंगरौली जिला अनूपपुर में इंडस्ट्रियल क्षेत्र महुआ और तेंदूपत्ता एकत्र करने वालों से लंबे समय से नक्सलियों द्वारा वसूली की जाती रही है!
जानकारों का कहना है कि नक्सली गतिविधियां मध्यप्रदेश में कम हो रही हैं लेकिन यहां की बालाघाट, सिंगरौली, सीधी, अनूपपुर उमरिया, शहडोल, मंडला आदि जिलों में नक्सली पनाह लिए हुए हैं या लेते रहते हैं! अकेले बालाघाट में नक्सलियों के अनेक गुट सक्रिय हैं! नक्सलियों के निशाने पर बालाघाट के आलावा सिंगरौली जिला भी है जहां उनकी गतिविधियां तेजी से आगे बढ़ रही है! प्रदेश का बालाघाट जिला नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव और महाराष्ट्र के गोंदिया जिले की सीमा से लगा है! उनकी मंशा बालाघाट से मध्य प्रदेश के सागर छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में अपनी गतिविधियां संचालित करने की है। बालाघाट में सबसे ज्यादा नक्सली गतिविधियां लांजी और बाजार में संचालित हो रही है, वहीं मिल रहे सबूत और सूचना दो अब तक इसी ओर इशारा करती है कि मध्य प्रदेश को नक्सलियों ने लाल आतंक वाले ठिकाने से अलग करके बिना दहशत फैला है इसे अपनी आरामगाह बना रखा है।
कहा जाता है कि वर्ष 2016 में छत्तीसगढ़ में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों और आतंकियों को मध्यप्रदेश के घने जंगलों में छिपे रहने की बात कह चुके हैं । सूत्रों के अनुसार, नक्सलियों के लिए मध्य प्रदेश सबसे सुरक्षित पनाहगाह है। छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे आंध्र प्रदेश में पुलिस का नेटवर्क तगड़ा होने के डर से नक्सली वहां नहीं के बराबर जाते हैं वहीं पुलिस से बचने के लिए नकली मध्य प्रदेश के जंगलों की ओर भागते हैं। माना जाता है कि नक्सलियों ने मध्यप्रदेश में सुरक्षित पनाह लेने के लिए राजनांदगांव के रास्ते नया कॉरिडोर बनाया है!
वे नारायणपुरा कांकेर के जंगली इलाकों से राजनांदगांव के जंगलों में से होकर मध्य प्रदेश के सीमावर्ती जिले शहडोल, मंडला, डिंडोरी, बालाघाट पहुंचते हैं! इसके साथ ही, उमरिया और अनूपपुर के जंगलों को भी संभावित माना जाता है। इसके बावजूद केंद्र सरकार सरकार ने बालाघाट को ही नक्सल प्रभावित जिला माना है! जबकि सीधी, सिंगरौली, मंडला, डिंडोरी शहडोल, अनूपपुर जिले में लगातार नक्सलियों के मूवमेंट की सूचनाएं मिलती रहती हैं!
खुफिया रिपोर्ट कहती है कि नक्सलियों की योजना छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमा से लगे बालाघाट जिले को अपना डिवीजन मुख्यालय बनाकर इसे पश्चिम बंगाल के लालगढ़ के अवैध दुर्ग की तरह बनाने की तैयारी है! भले ही पुलिस की सतर्कता के कारण अभी यहां नक्सलवाद पूरी तरह सक्रिय नहीं हो पाया, लेकिन उनकी आरामगाह या शरणस्थली का रूप तो ले ही चुका है! बालाघाट में करीब दो दशक पहले तत्कालीन परिवहन मंत्री लिखीराम कावरे कि नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। सीधी जिले को नक्सल प्रभावित घोषित नहीं किया गया है लेकिन वहां भी पूर्व में सुरक्षाबलों से हत्या, राइफल छीनने आदि की घटनाओं की सूचना मिलती रही है !  माना जा रहा है कि लगातार दबाव के चलते नक्सली संगठन अपने वजूद को कायम रखने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं और छत्तीसगढ़ से भागकर मध्यप्रदेश में आराम से बिना पहचान के  सुरक्षित रहने की कोशिश में लगे हुए हैं! इतना ही नहीं, सूचना तो यहां तक है कि प्रदेश के बालाघाट को अपना बेस कैम्प बनाने की फिराक में हैं। इसके अलावा मध्यप्रदेश में काफी लंबे समय से शांत नक्सलवाद की बढ़ती पैठ से मध्यप्रदेश के नक्सल प्रभावित इलाकों में हड़कंप मचा हुआ है !

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