भाजपा के आईटी सेल ने सियासी नीचता से भी परहेज नहीं किया। ममता के हिंदू होने पर भी सवाल उठाए गए। उन्हें ‘ममता बानो’ कहा गया। प्रचारित किया गया कि वह पैदाइशी मुस्लिम हैं। इससे ममता को खुले तौर पर बताना पड़ा कि वह ब्राह्मण की बेटी हैं। उनका गोत्र फलां है और उन्होंने एक रैली में चंडी पाठ भी कर डाला। इसे इस रूप में प्रचारित किया गया कि ममता हार के डर से साफ्ट हिंदुत्व का सहारा ले रही है। लेकिन इसी रणनीति से ममता ने बीजेपी के मंसूबे चौपट कर दिए…
प. बंगाल का चुनाव अभियान तो हाई वोल्टेज रहा। इसी से देश-दुनिया की आंखें यहां के चुनाव में लगी रही। यहां भाजपा को सियासी लाभ तो हुआ, लेकिन उसके सत्ता पाने के मंसूबे ध्वस्त हो गए। ममता बनर्जी बंगाल की शेरनी साबित हुई। जिसने दिल्ली के दो बब्बर शेरों को सियासी मैदान से पूंछ दबाकर लौटने के लिए मजबूर कर दिया। यहां के अलावा चार राज्यों में और चुनाव संपन्न हुए उनकी भी कुछ चर्चा जरूरी है।यह चुनावी राज्य हैं असम, पुदुचेरी, केरल और तमिलनाडु। पश्चिम बंगाल के बाद भाजपा के लिए असम का चुनाव खास महत्वपूर्ण रहा। यहां भाजपा की सत्ता थी। इसे बचाना ही बड़ी चुनौती थी, जिसे भाजपा ने शानदार जीत हासिल करके पूरी कर ली। यहां उसका मुख्य मुकाबला सीधे कांग्रेस से रहा। तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व वाला गठबंधन कामयाब हो नहीं पाया। जबकि प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने यहां जोरदार चुनावी अभियान चलाया था, लेकिन भाजपा का सांप्रदायिक धु्रवीकरण का खेल सब पर भारी पड़ा। 126 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को महज 29 सीटें मिली, जबकि 2016 में इस पार्टी को 26 सीटें मिली थी। 2016 में कांग्रेस का वोट शेयर 31 फीसदी था, वो इस बार घटकर 30 फीसदी रह गया। असम में इस बार कांग्रेस ने बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ से चुनावी गठबंधन किया। अजमल मुस्लिम समाज में पैठ रखते हैं, लेकिन असमी हिंदू समाज में उनकी छवि खलनायक वाली ही भाजपा ने गढ़ी है। इसमें उसे खासी कामयाबी मिली। यह बात अलग है कि कांग्रेस गठबंधन का वोट शेयर भाजपा से कहीं अधिक रहा लेकिन सीटें कम रहीं। कांग्रेस गठबंधन का वोट शेयर 42.6 प्रतिशत रहा, जबकि भाजपा को महज 39.7 फीसदी वोट मिले लेकिन सीटें ज्यादा मिली। इस तरह असम में कड़े मुकाबले में भाजपा की सियासी इज्जत बच गई, जबकि कांग्रेस को गहरा झटका लगा। असम से कांग्रेस को जीत की उम्मीद थी।
तमिलनाडु में डीएम के नेतृत्व वाले गठबंधन में कांग्रेस शामिल थे। डीएमके नेता स्टालिन का करिश्मा चला। उसने अन्नाद्रमुक को बुरी तरह हराया। इस गठबंधन में ही भाजपा शामिल थी। तमिलनाडु में इस बार कांग्रेस को 16 सीटें मिलीं, जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में महज 8 सीटें मिल पाई थी। केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में कांग्रेस ने सत्ता गंवा दी है। यहां विधानसभा की मात्र 30 सीटें हैं। यहां भाजपा गठबंधन को सफलता मिली है। केरल में 140 सीटें हैं। यहां पर लगातार दूसरी बार सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ गठबंधन को सफलता मिल गई। केरल में कांग्रेसी नेतृत्व वाले यूडीएफ गठबंधन को महज 40 सीटें मिल पाई, जो कि पिछले चुनाव से भी कम है। उल्लेखनीय है कि दशकों से ये सिलसिला चल रहा था कि यहां हर चुनाव में सत्ता में बदलाव होता रहा है। लेकिन इस बार यह परंपरा टूट गई। यहां 85 वर्षीय इन पिनराई विजयन के नेतृत्व वाला गठबंधन जीत गया। विजयन दोबारा सीएम की कुर्सी संभाल रहे हैं। इससे भी कांग्रेस को खास झटका लगा है। क्योंकि राहुल गांधी इसी राज्य के वायनाड से सांसद हैं। इस बार उन्होंने अपना ज्यादा समय केरल में ही लगाया था। लेकिन मुख्यमंत्री विजयन का बेहतरीन काम कांग्रेस पर भारी पड़ा। भाजपा दशकों से केरल पर नजर लगाए हैं। पिछली बार केवल एक सीट पर खाता खुल गया था, लेकिन इस बार सूपड़ा साफ हो गया।केरल में इस बार भाजपा के मंसूबे बड़े थे। उसने मेट्रोमैन बुजुर्ग ई श्रीधरण को भी दांव पर लगा दिया। उन्हें पलक्कड़ सीट से चुनाव लड़ाया। साथ में अपना सीएम चेहरा भी घोषित किया था। उसके 50 वर्षीय मेट्रोमैन ने पूरे दमखम से चुनाव लड़ा। लेकिन सर्वाधिक साक्षर राज्य ने भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति को जोर का झटका दिया है। नामी-गिरामी मेट्रोमैन भी बेइज्जत हो गए। यहां कांग्रेस के उम्मीदवार के सामने उनकी जमानत भी जब्त हो गई। वे घोर बुढ़ापे में हंसी का पात्र बने, सो अलग।
कोरोना महामारी के बीच चुनाव कराना भाजपा को बहुत भारी पड़ा है। 5 महीने से चल रहा किसान आंदोलन भी देशव्यापी हो गया है। इनकी नाराजगी भी भाजपा को झेलनी पड़ रही है। दमोह (मध्यप्रदेश) लोकसभा का उपचुनाव इसके चलते कांग्रेस की झोली में चला गया। तीन और लोकसभा के चुनाव भाजपा हार गई है। यहां तक कि उत्तर प्रदेश के पंचायती चुनाव में भी भाजपा को जोर का झटका लगा है। योगी-मोदी का करिश्मा यहां अभी उतार पर है। भाजपा यह प्रचारित करने में लगी है कि चुनाव में कांग्रेस का दमनिकल गया है। पर तथ्यात्मक रूप से यह बात एकदम गलत है। कांग्रेस को झटका जरूर लगा है, लेकिन पांचों राज्यों में उसका प्रदर्शन भाजपा गठबंधन से बेहतर रहा है।
पांचों राज्यों में 824 विधानसभा क्षेत्रों में हुए चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि भाजपा गठबंधन को 230 सीटें मिली हैं जबकि कांग्रेस गठबंधन को 262 सीटें मिली हैं। टीएमसी को 214, वामदलों को 93 और अन्य को 26 सीटें मिली हैं।