- हाईकोर्ट की तीखी टिप्पणी के बाद भी लापरवाह सरकार
- लाशों के ढेर लगे, श्मशान घाट में दिन-रात जल रहे शव
आलोक भदौरिया
नई दिल्ली। दिल्ली के लोगों को ऑक्सीजनकी कमी से मरता नहीं देख सकते हैं। गिड़गिड़ाइए… उधार लीजिए… चुराइए लेकिन दिल्ली के अस्पतालों को ऑक्सीजन दीजिए। केंद्र हालात की गंभीरता क्यों नहीं समझ रहा है? हम स्तब्ध हैं कि अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं है, लेकिन केंद्र की प्राथमिकता स्टील संयंत्र चलाना है।’ यह तीखी टिप्पणी दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पल्ली की बेंच ने 21 अप्रैल को याचिका पर सुनवाई के दौरान की। याचिका मैक्स अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी को लेकर दायर की गई थी।
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आदेश में देरी
एक दिलचस्प घोषणा उद्योगों से इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन मेडिकल उपयोग के लिए दिए जाने से संबंधित है। इसकी घोषणा भी पहले कर दी गई है। लेकिन, उद्योगों से ऑक्सीजन मेडिकल के लिए दिए जाने का आदेश 22 अप्रैल को जारी किया गया है। लेकिन, इस मौके पर टाटा ग्रुप की तारीफ करनी ही पड़ेगी। इस समूह ने खुद ही सबसे पहले इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन स्वास्थ्य क्षेत्र में देने की पहल की है। हालांकि, बाद में इस कड़ी में रिलायंस, बीपी, इंडियन ऑयल का भी नाम सामने आया है।
सवाल यह है कि केंद्र सरकार ने यह आदेश एक माह पहले क्यों नहीं जारी किया? 22 अप्रैल को देश में कुल 295041 लोग संक्रमित हुए थे। मौत 2029 की हुई। नौकरशाहों को सतर्क तो एक माह पहले 22 मार्च को ही हो जाना चाहिए था। तब पहली दफा 46951 लोग संक्रमित हुए थे। एक दिन में रिकॉर्ड तीन हजार से ज्यादा केस सामने आए थे। यह पिछले सप्ताह के मुकाबले 60 फीसद ज्यादा थे। लेकिन, तब सरकार ने इसे कोई विशेष तवज्जो नहीं दी। क्यों?
यही नहीं, चार अप्रैल को संक्रमितों का आंकड़ा कोई एक लाख के करीब हो चुका था। उस समय एक सप्ताह की औसत संक्रमण दर 84313 हो गई थी। तब भी क्या सरकार ने कोई कदम उठाया? काबिलेगौर है कि साप्ताहिक संक्रमण की दर लगातार बढ़ रही थी। यह सवाल तो बनता ही है कि आखिर किसी संवेदनशील सरकार को कब सतर्क होना चाहिए? कितनी मौतों के बाद?
ऐसा ही मामला वैक्सीन की नीति को लेकर है। केंद्र सरकार ने सबको वैक्सीन मुहैया कराने की नीति से पल्ला झाड़ लिया है। अब एक अप्रैल से 18 वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों का राज्य सरकारें टीकाकरण करेंगी। कोविशील्ड निर्माता आधी वैक्सीन केंद्र को 150 रुपए में और बाकी आधी में से राज्य सरकार को 400 रुपए में और निजी अस्पतालों को 600 रुपए में देंगी। स्वेदशी कोवैक्सीन निजी अस्पतालों को 1200 रुपए में देगी। आखिर क्या वजह है कि केंद्र और राज्यों के लिए दाम में फर्क किया गया है? फिर यह भी अभी साफ नहीं हुआ है कि यदि वैक्सीन निर्माता को कॉरपोरेट अस्पतालों से ज्यादा कीमत मिल रही है तो वह राज्य सरकार को कम कीमत पर क्यों देंगे? वैक्सीन बंटवारे की क्या शर्तें होंगी? यदि कोई साधन संपन्न राज्य है तो क्या वह दूसरों का हिस्सा नहीं हड़प लेगा?
इस साल बजट पेश करते वक्त वित्त मंत्री निर्मली सीतारमण ने घोषणा की थी कि टीकाकरण के लिए 35000 करोड़ आवंटित किए गए हैं। याद करिए तब भाजपा सांसदों ने कितनी देर तक मेज थपथपाकर इसका स्वागत किया था। एक अनुमान के मुताबिक, इस समय देश में 18 वर्ष से अधिक आयु के कोई 85-90 करोड़ लोग हैं। 90 करोड़ यानी 180 करोड़ डोज को केंद्र से भुगतान के 150 रुपए का गुणा करे तो यह बनते हैं 27000 करोड़। अब जरा इसे सरकार के 35000 करोड़ के आवंटन से मिलाएं। यह भी नहीं भूलिए कि वित्त मंत्री ने कहा था कि जरूरी हुआ तो और धन मुहैया कराएंगे। जरा सोचिए। अब क्या हो रहा है?
क्यों नहीं मिल रही जरूरी मेडिकल ऑक्सीजन