- कुंभ से लौट रहे लोगों को क्वारंटाइन किए जाने की जरूरत
कृति सिंह
नई दिल्ली। जान बचेगी तो फिर मिलेंगे। महाकुंभ को लेकर किस्से काफी प्रचलित रहे हैं कि इस कुंभ में स्नान के दौरान यदि कोई श्रद्धालु बिछड़ गया तो अगले कुंभ में जरूर मिल जाता है। इस तरह की कहानियों में यथार्थ भी छिपा होता है। हरिद्वार कुंभ के दौरान भी पिछले कुंभ में भटक गई महिला अपने परिजनों से मिली। यह सब कुछ संभव इसलिए हो पाया कि वह जिंदा बची रही। हां, महिला मर गई होती तो कैसे मिलती।
तब और अब के कुंभ में यह फर्क है कि उस कुंभ के दौरान कोविड-19 का कहर नहीं था जो इस बार है। यदि इंसान बचेगा तो फिर अगले कुंभ में डुबकी लगा सकता है। दरअसल, कोरोना महामारी की वजह से कुंभ की हालत इतनी ज्यादा बदतर हो गई कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आगे आना पड़ा और उनको साधु संतों से अपील करना पड़ा कि प्रतीकात्मक स्नान करें। प्रधानमंत्री की अपील का काफी फर्क पड़ा। अधिकांश अखाड़ों ने प्रधानमंत्री की बात का सम्मान करते हुए कुंभ को खत्म करने का एलान कर दिया। पर कुछ जिनकी गिनती उंगलियों पर की जा सकती है, कुंभ में डटे रहे। खैर, ऐसे अखाड़ों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। इस तरह के अखाड़े या फिर यूं कहा जाए कि मानवता के सबसे बड़े दुश्मन हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
आज पूरा विश्व इस महामारी से परेशान हैं। भारत तो पहली कतार में आ गया है। अभी पता नहीं चल पा रहा है कि कोरोना महामारी का प्रकोप कब तक चलेगा। व्यक्ति, इस महामारी से कैसे निपटे, जिंदा कैसे बचे इसका उपाय खोज रहा है और इधर कुछ साधु-संन्यासी कुंभ स्नान के लिए परेशान हैं। जीवन रहेगा तो अगले कुंभ में साधु-संत स्नान कर सकते हैं। असल में शुरू में केंद्र और राज्य सरकार ने कुंभ को हल्के में लिया। वर्ष 2019 में भी केंद्र सजग होता तो हालात ज्यादा खराब नहीं होते। उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति के स्वागत में हम लोग व्यस्त रहे जिसकी वजह से कोरोना बचाव को लेकर रणनीति नहीं बना पाए।
इस साल शुरू में ही विशेषज्ञों ने केंद्र और राज्यों को अलर्ट कर दिया, पर सरकार ध्यान नहीं दे पाई क्योंकि उसके सामने बंगाल और असम जैसे राज्यों का चुनाव दिखाई पड़ रहा था। पूरी सरकारी मशीनरी चुनाव में जुटी हुई थी। इस बीच कुंभ में डुबकी लगाने के लिए सरकार ने खुली छुट दे दी। हां, कहने को यह जरूर कहा गया है कि साधु-संत कोरोना की निगेटिव रिपोर्ट लेकर ही हरिद्वार में प्रवेश करें। पर इस समाज ने भी नियमों की अनदेखी की। हां, जब हरिद्वार में साधु-संत कोरोना की जद में आने लगे और मौतें होने लगी तो केंद्र कुंभकर्णी नींद से जागा और आनन फानन में खुद प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा कि कुंभ में प्रतीकात्मक स्नान पर ध्यान दिया जाए।
चलिए यह तो ठीक हुआ है। लेकिन कुंभ से लौट रहे लोगों खासकर साधु-संतों को क्वारंटाइन जरूर किया जाना चाहिए। क्योंकि बीमारी भेदभाव नहीं करती। इसलिए कोरोना ज्यादा नहीं फैले इसके लिए कुंभ से लौट रहे लोगों को क्वारंटाइन अवश्य किया जाना चाहिए। जीवन सुरक्षित रहेगा तभी तो अगले कुंभ में डुबकी लगायी जा सकती है।
बहरहाल, हमें अतीत पर ध्यान देने के बजाय भविष्य पर ध्यान देना चाहिए। ताकि इस महामारी पर काबू पाया जा सके। सामूहिक सूझबूझ से ही कोरोना महामारी पर नियंत्रण किया जा सकता है। अकेले सरकार कुछ नहीं कर सकती है। लिहाजा सभी को कोरोना बचाव के नियमों का पालन करना चाहिए। इंसान की जिंदगी कीमती है, बचेगी तो फिर अगले कुंभ में दिखाई देगी। इसलिए कोरोना के नियमों का पालन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।