- कांग्रेस-भाजपा गठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला
- पहले चरण की वोटिंग में छिपा है जीत-हार का राज
असम विधान सभा चुनाव में कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। जीत किसी की भी हो, लेकिन अंतर मामूली रहने वाला है। पहले जिन राजनीतिक पार्टियों को लग रहा था कि चुनाव आसान होगा, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। फिलहाल तीनों चरणों का चुनाव संपन्न हो चुका है तो अब सबकी नजर दो मई को होने वाली मतगणना और उसके नतीजे पर टिक गई है और राज्यभर में लोग एक-दूसरे से पूछ रहे हैं कि आखिरकार दिसपुर में अगली सरकार किसकी बन रही है।
दूसरी ओर, पहले चरण के चुनाव के बाद स्थिति कुछ बदलती दिख रही है। राजनीतिक गलियारे से लेकर चौक-चौराहों और चाय की चुस्कियों के साथ ही ब्रह्मपुत्र की फेरियों या कहें राजनीति में रुचि रखने वाले हर व्यक्ति के मन में यह सवाल है कि आखिरकार पहले चरण में क्या हुआ? हर कोई पहले चरण का परिणाम जानना चाहता है कि आखिर पहले चरण में भाजपा गठबंधन को कितनी सीटें मिल रही हैं। कारण कि पहले चरण में ही जीत हार का राज छिपा हुआ है जिसको जानने को सभी बेताब हैं। दूसरे चरण की 39 और तीसरे चरण की 40 सीटों पर सत्तारूढ़ भाजपा गठबंधन का विपक्षी महागठबंधन से कड़ा मुकाबला है। ऐसे में इस कयास पर ब्रेक लग गया है कि मुकाबला एक तरफा है।
राजनीतिक गलियारे से लेकर चौक-चौराहों और चाय की चुस्कियों के साथ ही ब्रह्मपुत्र की फेरियों या कहें राजनीति में रुचि रखने वाले हर व्यक्ति के मन में यह सवाल है कि आखिरकार पहले चरण में क्या हुआ? हर कोई पहले चरण का परिणाम जानना चाहता है कि आखिर पहले चरण में भाजपा गठबंधन को कितनी सीटें मिल रही हैं। कारण कि पहले चरण में ही जीत हार का राज छिपा हुआ है जिसको जानने को सभी बेताब हैं। दूसरे चरण की 39 और तीसरे चरण की 40 सीटों पर सत्तारूढ़ भाजपा गठबंधन का विपक्षी महागठबंधन से कड़ा मुकाबला है। ऐसे में इस कयास पर ब्रेक लग गया है कि मुकाबला एक तरफा है।
पहले चरण में 47 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव पर नजर डालें तो तस्वीर कुछ संकेत जरूर देती दिख रही है। 2016 में भाजपा को 47 में से 35 सीटों पर जीत मिली थी, जिसमें भाजपा को अकेले 30 सीटें और उसकी सहयोगी असम गण परिषद को 5 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस को मात्र 11 सीटें मिली थीं, जबकि एआईयूडीएफ के खाते में 2 सीटें और अन्य के खाते में एक सीट गई थीं। यह स्थिति तब थी जब ऊपरी असम में नवगठित दल असम जातीय परिषद और राइजर दल जैसी पार्टियों से भाजपा को चुनौती नहीं मिल रही थी। इसके अलावा 2016 के चुनाव में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर भाजपा के खिलाफ विरोध भी नहीं था। हालांकि, इस चुनाव को लेकर विरोध ऊपरी असम के शहरी इलाके जैसे-डिब्रूगढ़, शिवसागर, तिनसुकिया और जोरहाट में नहीं दिखा, लेकिन ग्रामीण इलाकों के युवाओं में इस चुनाव में नागरिकता कानून को लेकर गुस्सा देखने को मिला।
यहां हम बताते चलें कि विरोध में ही दो नए दलों का इस चुनाव में गठन हुआ। अखिल असम छात्र संठगन (आसू) से असम जातीय परिषद (एजेपी) का गठन हुआ जिसका चेहरा लुरिन ज्योति गोगोई हैं। जबकि दूसरी पार्टी कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) से बनी है जिसका नाम राइजर दल है, इसके नेता अखिल गोगोई हैं। फिलहाल, अखिल सीएए के खिलाफ हुए आंदोलन के समय से ही जेल में बंद हैं। वह शिवसागर से चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों दलों ने एक साथ गठबंधन भी किया है। इसलिए माना जा रहा है कि ऊपरी असम की 47 सीटों पर यह गठबंधन भाजपा और कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है। अब लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि ये नवगठित दोनों दलों ने किस पार्टी के वोट काटे हैं। कारण कि कांग्रेस के पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है क्योंकि पिछली बार कांग्रेस को सिर्फ 9 सीटें ही मिली थीं, पिछली बार कांग्रेस अलग थी और एआईयूडीएफ अलग। इस बार दोनों एक साथ मैदान में हैं। इन सबके बावजूद भाजपा अपनी सीटों को बचाने के लिए काफी मेहनत की है। प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री अमित शाह ताबड़ तोड़ रैलियों को संबोधित कर रहे हंै। रैलियों में काफी भीड़ भी देखी गई है।
राजनीतिक जानकार कहते हैं कि यह चरण भाजपा का था। भाजपा को यहां से अधिक से अधिक सीटों को अपने पाले में करने की जरूरत है। नवगठित दल असम जातीय परिषद व राइजर दल की मजबूती के साथ ऊपरी असम में चुनाव लड़ना भाजपा और कांग्रेस दोनों को नुकसान पहुंचा रहा है, वहीं दूसरी ओर दूसरे चरण की 39 व तीसरे चरण की 40 सीटों पर भाजपा गठबंधन को कड़ी चुनौती दिख रही है। कारण कि दूसरे चरण में कांग्रेस अधिकांश सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में हंै। कांग्रेस और एआईयूडीएफ के साथ आ जाने से भाजपा के लिए कड़ी चुनौती है। हालांकि, दूसरे चरण में पहाड़ी जिलों में भाजपा का प्रभाव है। 2016 में भाजपा पहाड़ की पांचों सीटों पर कब्जा किया था। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी दूसरे चरण के मतदान के एक दिन पहले एक बड़ा दांव खेला है। कार्बी आंग्लांगवासियों के लिए एक बड़ी घोषणा कर दी है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि राज्य में यदि कांग्रेस की सरकार बनती है तो कार्बी आंग्लांग को अनुच्छेद 244 (क) के तहत एक स्वायत्तशासी राज्य का दर्जा प्रदान किया जाएगा।
राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि भाजपा अनुच्छेद 244 (क) को संविधान से निकाल देने की चेष्टा कर रही है। इसके विपरीत कांग्रेस यदि सत्ता में आती है तो अनुच्छेद 244(क) का क्रियान्वयन किया जाएगा। हालांकि, यह घोषणा काफी देर से की गई है। उनकी इस घोषणा का असर पहाड़ी जिलों तक पहुंच पाता है कि नहीं। कांग्रेस इस घोषणा को पहाड़ी जिलों के लोगों तक कतिना प्रसारित कर पाती है, यह तो परिणाम बताएगा? वहीं, हम तीसरे चरण की बात करें तो यहां भी मुकाबला कड़ा है। यहां भाजपा बनाम बदरूद्दीन अजमल हो गया है। यहां भाजपा का मौलाना बदरूद्दीन अजमल से सीधा मुकाबला है, वहीं तीसरे चरण में ही बीटीएडी यानी बोड़ोलैंड में भी चुनाव है जहां बोड़ोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) इस बार एनडीएस से अलग है। वह इस बार कांग्रेस की अगुआई वाले महागठबंधन का हिस्सा है। कांग्रेस गठबंधन में एआईयूडीएफ, बोड़ोलैंड पीपुल्स फ्रंट, भाकपा, माकपा, राष्ट्रीय जनता दल शामिल हैं।
इस गठबंधन की ओर से प्रचार करने वाले प्रमुख लोगों में राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, सांसद नासिर हुसैन और अखिलेश प्रसाद सिंह, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शामिल हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, रणदीप सिंह सुरजेवाला, राजद नेता तेजस्वी यादव, बदरुद्दीन अजमल और भाकपा के कन्हैया कुमार ने भी प्रचार कयिा था। दूसरे चरण में प्रचार करने वाले प्रमुख भाजपा नेताओं में केंद्रीय मंत्रियों अमित शाह, नितिन गडकरी, नरेंद्र तोमर, जितेंद्र सिंह, मुख्तार अब्बास नकवी के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आदि शामिल हैं। भाजपा के सहयोगियों में असम गण परिषद और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) शामिल है। दूसरी ओर, चुनाव के बाद एआईयूडीएफ और कांग्रेस महागठबंधन में शामिल उम्मीदवारों को राज्य से बाहर ले जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
बहरहाल, इसका मतलब है कि भाजपा गठबंधन को लग रहा है कि वह चुनाव में 64 का अंक पूरा नहीं कर पाएगी, इसलिए वह अभी से ही संभावित जीतने वाले विरोधी पार्टी के उम्मीदवारों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है, इसके भय से कांग्रेस महागठबंधन में शामिल पार्टियां अभी से ही अपने उम्मीदवारों को बाहर भेजना शुरू कर दिया है। इससे स्पष्ट होता है कि वास्तविक सत्ता का खेल चुनाव परिणाम आने के बाद शुरू होगा। ऐसे में हॉर्स ट्रेडिंग को रोकने की तैयारी शुरू हो गई है।
–अनिरुद्ध यादव, गुवाहाटी।