मझधार में बंगाल

बंगाल चुनाव 2021

  • ममता-मोदी दोनों के बीच दिख रहा कांटे का मुकाबला
  • कम सुर्खियों में रहने के बावजूद कांग्रेस-वाम मोर्चा की होगी निर्णायक भूमिका


पश्चिम बंगाल में आधे चुनाव हो चुके हैं, आधे बाकी हैं। राज्य में कुल आठ चरणों में चुनाव होने हैं और चार चरण के हो चुके हैं। राज्य की कुल 294 सीटों में से 135 सीटों पर मतदान हो चुके हैं और 159 सीटों पर मतदान होने बाकी हैं। आधे चुनाव को देखने के बाद दो चीजें उभर कर सामने आई हैं। एक तो यह कि ममता बनर्जी की गाड़ी फंसती नजर आ रही है। लेकिन कीचड़ में नहीं पंजे और हषिये में। दूसरी यह कि बीजेपी की तमाम हवाबाजी के बावजूद यह दिखने लगा है कि जनता सरकार बनाने के लिए उनके साथ नहीं है। ये बात कहने के पीछे मुख्य रूप से दो तर्क हैं।

आपको याद होगा चौथे चरण के मतदान से पहले ममता बनर्जी ने आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है। केंद्रीय सुरक्षा बल बीजेपी की मदद कर रहे हैं और इसके मुकाबले के लिए पूरे विपक्ष को एकजुट होना पड़ेगा। उन्होंने विपक्षी पार्टियों की एका की अपील जारी करते हुए एक पत्र भी जारी किया था। उस पत्र के कई मतलब निकाले गए। बीजेपी ने कहा कि दीदी को पता चल गया है कि वे हार रही हैं इसलिए ऐसा कर रही हैं। दूसरे लोगों को भी लगा कि चुनाव के बीचोबीच दीदी ऐसा क्यों कर रही हैं। यह तो सचमुच उनके कमजोर होने के संकेत हैं।

विपक्षी एकता की बात तो कभी भी की जा सकती है। चुनाव से पहले भी की जा सकती थी और नहीं की तो चुनाव के बाद की जा सकती है। बीच रणभूमि में अर्जुन की तरह यह मोह क्यों ममता को व्याप गया….हालांकि कुछ लोगों ने इसे ममता का मास्टर स्ट्रोक बताया। उनका तर्क था कि बीजेपी के खिलाफ जो वोट उनमें और कांग्रेस-वाम मोर्चा में बंट रहे हैं उन वोटों के धु्रवीकरण के लिए ममता ने यह चाल चली है। दूसरी बात यह कि तीन चरण के चुनाव तो कमोबेश शांतिपूर्ण ढंग से निपट गए लेकिन चैथे चरण के चुनाव में हिंसा भड़क उठी।

कूचबिहार जिले के सितालकुची में केंद्रीय सुरक्षा बलों की सीधी फायरिंग में चार लोगों की मौत हो गई है। चुनाव आयोग ने नेताओं के इलाके में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। जो शुरुआती जानकारी सामने आ रही है उसके अनुसार लोगों ने सुरक्षा बलों को घेरने की कोशिश की और सुरक्षा बलों ने फायरिंग झोंक दी। इस घटना को लेकर राजनीति शुरू हो गई है। ममता बनर्जी ने कहा है कि केंद्रीय बल केंद्रीय गृह मंत्री के इशारे पर काम कर रहा है और उसी के इशारे पर गोली चला कर नौजवानों की हत्या कर दी गई है।

उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने पूरे पश्चिम बंगाल में एक दिन का बंद रखा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का इस्तीफा मांगा। जबकि अमित शाह कह रहे हैं कि ममता लोगों को भड़का रही हैं। उनके भड़काने के कारण ही सुरक्षा बलों को फायरिंग करनी पड़ी और चार लोगों की मौत हो गई। राज्य बीजेपी के अध्यक्ष दिलीप घोष तो एक कदम और आगे बढ़ गए। उन्होंने एक तरह से राज्य की जनता को धमकाया कि आगे भी सुरक्षा बल ऐसा ही करेंगे। सुरक्षा बलों के हाथ में बंदूक है कोई खिलौना नहीं। लोगों को यह बात समझ में आ जानी चाहिए। घोष की इस बात की राज्य में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। तृणमूल के आरोप भी लोगों को सही दिखने लगे हैं कि केंद्रीय सरकार के इशारे पर सुरक्षा बल लोगों पर गोलियां बरसा रहे हैं।

दरअसल, बीजेपी ने राज्य में पैसे और केंद्रीय सत्ता के बल पर माहौल तो खूब बनाया। लेकिन चुनाव शुरू होते ही चीजें उसके खिलाफ जाने लगीं। ईडी, सीबीआई, एनआईए आदि के दम पर उसने तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को डरा-धमका कर अपनी पार्टी में शामिल होने को मजबूर किया। लोक सभा चुनाव में उसका प्रदर्शन काफी अच्छा था। उसे लगा कि यदि कुछ और टीएमसी नेताओं को तोड़ लिया जाए और माहौल बनाया जाए तो पार्टी ममता बनर्जी को पछाड़ सकती है। पर वह यह बात भूल गई कि लोकसभा का चुनाव जब होता है तो उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद उम्मीदवार होते हैं और उनके नाम पर वोट पड़ते हैं। जबकि, विधान सभा चुनाव में उनका कोई उम्मीदवार नहीं होता और उसका मुकाबला बंगाल की शेरनी कही जाने वाली ममता बनर्जी से है। पीछे भी यह देखा गया है कि लोक सभा चुनावों में बीजेपी के वोट बढ़ गए लेकिन विधान सभा के चुनाव हुए तो उसमें काफी कमी आ गई। नरेंद्र मोदी का कद देश में भले ही बड़ा हो लेकिन पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी उनसे कम लोकप्रिय नहीं हैं।
कहते हैं न कि यात्रा शुरू करते ही यदि बिल्ली रास्ता काट दे तो यात्रा शुभ नहीं होती। वैसा ही कुछ इस चुनाव में बीजेपी के साथ हो रहा है। चुनाव के शुरू में ही ममता बनर्जी घायल हो गईं। बीजेपी को लगा कि यह उसके लिए फायदे का सौदा है। बीजेपी के पास एक से एक स्टार प्रचारक हैं, जबकि तृणमूल कांग्रेस के पास सिर्फ ममता। ऐसे में यदि वह घायल हो गई हैं तो उनका चुनाव प्रचार प्रभावित होगा। लेकिन ममता भी मोदी की ही तरह आपदा को अवसर में बदलने में खूब माहिर हैं। उन्होंने एलान किया कि वे ह्वील चेयर पर बैठ कर ही चुनाव प्रचार करेंगी। इससे जनता की सहानुभूति उन्हें मिलने लगी।
दूसरे शेरनी वाली बात एक बार फिर लोगों को याद आ गई कि ममता घायल होने के बावजूद अकेले मोर्चा संभाले हुए हैं। आपको एक बहुत पुरानी बात याद दिलाएं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हारने की कोई कल्पना तक नहीं कर सकता था। अपने इलाके में उनकी तूती बोलती थी। विपक्ष की सभाएं तक नहीं हो पाती थीं। इमरजंेसी के बाद 1977 में जब चुनाव हुए तो समाजवादी नेता राजनारायण ने उनके खिलाफ चुनाव लड़ने का एलान किया और परचा भरा। लेकिन जब वे सभा करने पहुंचे तो कांग्रेस के गुंडों ने मंच पर हमला किया और उन्हें बुरी तरह से घायल कर दिया।

राजनारायण जी मंच से अस्पताल पहुंच गए। कांग्रेस खेमे में खुशी की लहर दौड़ गई कि अब कोई इंदिरा गांधी को चुनौती देने की हिम्मत नहीं करेगा। पर राजनारायण तो राजनारायण थे। पट्टी बंधवाने के बाद वे सीधे उसी सभा स्थल पर पहुंचे जहां उन पर हमला किया गया था और फिर वहीं सभा की। पूरा चुनाव उन्होंने पट्टी बंधवाए ही लड़ा और आखिर में इंदिरा गांधी को हरा दिया। कुछ वही स्थिति ममता की भी दिख रही है। वे ह्वील चेयर पर ही अब चुनाव प्रचार कर रही हैं। उनकी ह्वील चेयर बीजेपी पर भारी पड़ रही है। जो कसर बाकी थी वह सुरक्षा बलों की गोली कांड और उसके नेता दिलीप घोष के बयान ने पूरी कर दी है। बीजेपी को रक्षात्मक रुख अपनाना पड़ा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को अपनी एक सभा में कहना पड़ा कि यदि बंगाल की जनता उनका इस्तीफा चाहती है तो वे दे देंगे।
इधर, इस बीच एक और घटना घटी है। तृणमूल कांग्रेस के मुख्य चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का एक वीडियो वायरल हो रहा है। यह वीडियो बीजेपी के आईटी सेल ने जारी किया है। उस वीडियो में वे कह रहे हैं कि मोदी पूरे देश और बंगाल में बहुत लोकप्रिय हैं। बीजेपी चुनाव जीतने जा रही है। बीजेपी इस बात को खूब प्रचारित कर रही है कि जब तृणमूल के मुख्य रणनीतिकार ने ही हार मान ली है तो बात ही खत्म। लोग बीजेपी के प्रचार को ही सच मान रहे हैं।
कोई उस वीडियो को ध्यान से नहीं सुन रहा। प्रशांत किशोर उस वीडियो में अलग अलग सवालों के जवाब दे रहे हैं। वहां उन्होंने मोदी की लोकप्रियता की बात कही है तो ये भी कहा है कि बाबुल सुप्रियो चुनाव हार रहे हैं। बाबुल सुप्रियो सांसद हैं और उन्हें बीजेपी ने विधान सभा में खड़ा किया है। अब कोई पूछ सकता है कि लोकप्रिय नेता और वर्तमान सांसद बाबुल सुप्रियो यदि चुनाव हार रहे हैं तो बीजेपी जीतेगी कैसे? इसी तरह वे एक और मौजूदा सांसद के हारने की बात कह रहे हैं।

एक सवाल के जवाब में वे ये भी कह रहे हैं कि हिंदुओं का 50-55 प्रतिशत वोट बीजेपी को पड़ रहा है। इसका मतलब तो यही हुआ कि हिंदुओं का शत-प्रतिशत या सत्तर-अस्सी प्रतिशत वोट भी बीजेपी को नहीं पड़ रहा। फिर बीजेपी जीतेगी कैसे? क्योंकि मुस्लिम वोट तो वैसे भी उसे नहीं मिलने। भले टोपी पहने शख्स की मोदी जी के कान में कुछ फुसफुसाते हुए फोटो वायरल कराई जाए। बहरहाल, प्रशांत किशोर ने वायरल वीडियो के बारे में कहा है कि मेरी पूरी बात का वीडियो नहीं जारी किया गया है। बाद में उन्होंने ट्वीट किया और फिर कहा कि किसी भी कीमत पर बीजेपी सौ का आंकड़ा नहीं पार कर सकती।
वीडियो को लेकर एक और बात सामने आ रही है। बीजेपी के पश्चिम बंगाल के प्रभारी विजय विजयवर्गीय के एक नजदीकी ने मध्य प्रदेश में अपने कुछ करीबी लोगों से कहा कि पिछले चार चरण के मतदान का रुख देखकर तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही घबरा गए हैं। मतदान के दौरान कांग्रेस और वाम मोर्चे के पक्ष में एक अंडर करेंट देखा गया है। यदि वह जारी रहा तो ममता बनर्जी और बीजेपी दोनों के इरादे नाकाम हो जाएंगे। इसलिए यह वीडियो दोनों दलों का मिलाजुला खेल है। वे चाहते हैं कि वोटर या तो ममता की तरफ जाएं या बीजेपी की तरफ। इसीलिए दोनों ने रणनीति बनाकर यह वीडियो जारी किया है।
बहरहाल, यह बड़ी दूर की कौड़ी लग रही है। अब तक इन चुनावों में कांग्रेस-वाम मोर्चे की कहीं चर्चा नहीं हो रही है। हालांकि, इस तरह की खबरें भी आती रही हैं कि बीजेपी से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन यह मोर्चा करेगा, भले मीडिया उसका प्रचार नहीं कर रहा। मतदान के दौरान यह बात भी पूछी जाने लगी है कि क्या ममता को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो वह कांग्रेस-वाम मोर्चा का समर्थन लेंगी या मोर्चा उन्हें समर्थन देगा? ममता की विपक्षी एकता के लिए मतदान के बीच जारी उनकी अपील को इस संदर्भ में देखें तो एक बार को यह भी लग रहा है कि विजय वर्गीय के करीबी ने जो रहस्योद्घाटन किया है वह भले ही अभी चंडूखाने की खबर लग रही हो लेकिन उसमें काफी दम हो सकता है। त्रिवेणी (संगम, प्रयागराज) में गंगा और यमुना ही दिखती हैं। लेकिन लोग मानते हैं कि यहां सरस्वती भी बहती हैं। कहीं कांग्रेस-वाम मोर्चा वही सरस्वती तो नहीं जिसके बिना चुनावों के बाद संगम बन ही न पाए?

अमरेंद्र कुमार राय, नई दिल्ली।

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