- सीएम के सामने कम समय में बेहतर परिणाम देने का दबाव
- मंत्रियों और विधायकों के साथ समन्वय बनाये रखने की चुनौती
देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति इन दिनों गरमाई हुई है। त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कमान दी गयी है। ये सब ऐसे समय में हुआ जब आम चुनाव को भी ज्यादा वक्त नहीं रह गया था। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की छवि ईमानदार, सरल और बेदाग राजनीतिज्ञ के रूप में रही है। उत्तराखंड की राजनीति में ये बदलाव जिस भी कारण हुए हों लेकिन राज्य की राजनीति में तीरथ सिंह रावत की आने वाले समय मे अग्नि परीक्षा ही है। सबसे पहले सल्ट विधानसभा के उप चुनाव में बीजेपी को जीत दर्ज करनी होगी। हालांकि, बीजेपी को सहानुभूति के बल पर जीत का भरोसा है। लेकिन कांग्रेस भी पूरे दमखम से मैदान में उतरी है।तीरथ सिंह रावत को ऐसे समय में जिम्मेदारी मिली है, जब समय कम है और बेहतर परिणाम देने हैं। सल्ट विधानसभा उप चुनाव में जीत के बाद तीरथ सिंह रावत को अपने लिए सुरक्षित सीट तलाशनी होगी, बकि लोकसभा की खाली होने वाली सीट पर भी उपचुनाव की जिम्मेदारी होगी। हालांकि, एक अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि इन दोनों चुनाव को लड़ने के बजाय मुख्यमंत्री समय से पहले विधानसभा चुनाव करा दें। इससे मुख्यमंत्री तीरथ को चुनाव में उलझने की जरूरत नहीं होगी और सीधे आम चुनाव में अपनी ताकत लगाई जाएगी।
वर्तमान समय में राज्य में ऐसे बहुत से मुद्दे हैं, जिन पर राज्य सरकार को जल्द निर्णय लेने हैं। कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ने से बचाव के लिए सरकार को ठोस निर्णय लेने होंगे। इसमें भी मुख्यमंत्री को ही मोर्चा संभालना होगा। इसके बाद चारधाम यात्रा शुरू होने वाली है, जिसके लिए व्यवस्थाएं करनी होंगी। पिछले साल कोरोना के कारण राज्य की चारधाम यात्रा प्रभावित हुई थी, लेकिन इस साल उम्मीद जताई जा रही थी कि चारधाम यात्रा से राज्य के पर्यटन को मजबूती मिलेगी। कोरोना संक्रमण जिस तरह से बढ़ रहा है, उसको देखते हुए इस बार की चारधाम यात्रा को सफल बनाना खासा चुनौतीपूर्ण है। इसके अलावा राज्य में जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की भी कठिन चुनौती है। वहीं, राज्य कर्मचारी संगठन की समस्याओं का समाधान करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है।मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के सामने अलग अलग धड़ों में बंटे लोगों को भी एक साथ लाने की चुनौती है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद से लगातार ऐसे बयान सामने आ रहे हैं जिससे लग रहा है कि त्रिवेंद्र रावत के मन में सत्ता परिवर्तन की पीड़ा अब भी बनी हुई है। वहीं, मंत्रियां और विधायकों के साथ भी समन्वय बनाये रखना बड़ी चुनौती होगी। हालांकि, मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का कहना है कि चार साल से बीजेपी यहां सरकार में थी।आज भी वही है, केवल कुछ विस्तार हुआ है। चार नए मंत्री बने हैं और मैं मुख्यमंत्री के रूप में पद पर आया हूं। यह बिल्कुल नहीं कह सकते कि कोई और परिवर्तन हो गया है, क्योंकि हमारी सरकार चार साल से है। जहां तक अपेक्षाओं का सवाल है तो केंद्र ने जो काम यहां के लिए शुरू किए हैं, चाहे वह आजाद भारत में पहली बार पहाड़ पर रेल चलाने का काम हो या तीर्थों तक सड़कों को बढ़िया बनाने का काम या उज्जवला के तहत गरीब घरों को निःशुल्क गैस देने का काम या राज्य सरकार द्वारा किसानों और युवाओं को बिना ब्याज का ऋण उपलब्ध कराने का काम, ये सब काम लगातार आगे बढ़ रहे हैं।बहरहाल, वर्तमान हालात देखकर यही कहा जा सकता है कि तीरथ सिंह रावत के सामने बड़ी अग्निपरीक्षा है, जिसे पार करके जाना है। इस अग्निपरीक्षा का परिणाम क्या होगा ये तो समय ही बतायेगा। लेकिन यदि तीरथ सिंह रावत इस अग्निपरीक्षा में पास हो जाते हैं तो उनका कद उत्तराखंड की राजनीति में काफी बढ़ जाएगा।