आसान नहीं डगर

  •  आगामी विधानसभा चुनाव में कुल पांच साल की उपलब्धियों को लेकर ही सरकार जनता के बीच जाएगी जिसमें त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार के चार साल भी शामिल होंगे। हां, भाजपा हाईकमान को यह जवाब अभी से ही तलाशना चाहिए कि आखिर कौन सी मजबूरी थी जिसकी वजह से ‘टीएसआर’ को हटाना पड़ा…

संपादकीय, रणविजय सिंह

उत्तराखंड में अगले साल मार्च में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस बीच उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन हुआ है। नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के सामने चुनौतियां किसी पहाड़ से कम नहीं दिख रही हैं। तीरथ तेजी के साथ काम करने में जुटे हैं। इसमें कहीं भी शक की कोई गुंजाइश नहीं है। हां, तीरथ के सामने चुनौतियां का अंबार है। इस बीच तीरथ को काफी फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा। लेकिन जिन लोगों के इशारे पर त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री के पद से हटाया गया अभी उनकी मंशा पूरी नहीं हुई है। इसलिए  को काफी सजग होकर विकास योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश करनी होगी। क्योंकि उत्तराखंड की जनता को केवल विकास से ही मतलब है। अगले साल जब चुनाव होंगे उस समय जनता प्रदेश में विकास का हिसाब लेगी।उत्तराखंड में पिछले चार साल से भाजपा की ही सरकार है और सरकार ने वाकई विकास कार्यों को ही अंजाम दिया है। हां, जनता के मन में यह सवाल भी उठेगा, जो स्वाभाविक भी है कि आखिर जब बीते चार साल में विकास कार्य हुए हैं तो भाजपा सरकार की अगुआई कर रहे त्रिवेंद्र को मुख्यमंत्री के पद से क्यों हटाया गया।सच्चाई यह है कि चुनाव के दौरान जनता के अलावा विपक्ष भी यह सवाल उठाएगी। इसका जवाब न केवल मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को, बल्कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को भी देना होगा। यह बात सर्व विदित है कि जब से त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड की सत्ता संभाली थी, तब से उनके विरोधी उनके खिलाफ मुहिम छेड़े हुए थे और उन्हें 4 साल होते होते सफलता मिली। इसलिए अब भी त्रिवेंद्र के विरोधी चुप नहीं बैठेंगे। क्योंकि विरोधी गुट को मुख्यमंत्री का ताज नहीं मिला है।विरोधी जिसको मुख्यमंत्री के पद पर बिठाना चाह रहे थे, उसमें वे कामयाब नहीं हुए हैं। इसलिए वे चुप नहीं बैठेंगे। ऐसी स्थिति में वर्तमान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को काफी चौकन्ना होकर काम करना होगा। तीरथ सिंह रावत सरकार आगामी विधानसभा चुनाव में कुल पांच साल की उपलब्धियों को लेकर ही जनता के बीच जाएगी जिसमें त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार के चार साल भी शामिल होंगे। इसमें किसी को भी संदेह नहीं होना चाहिए। हां, भाजपा हाईकमान को यह जवाब अभी से ही तलाशना चाहिए कि आखिर भाजपा के सामने वह कौन सी मजबूरी थी जिसकी वजह से त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाना पड़ा।जब उत्तराखंड सरकार पूरे अपने पांच साल के काम को लेकर चुनाव में जाएगी तो चौथे साल के जश्न से उत्तराखंड के लोगों को क्यों वंचित किया गया। सरकार का मुखिया बदलने का मतलब यह नहीं है आप सरकार की उपलब्धियों को नजरअंदाज कर दें। चौथे साल के जश्न का आशय ही सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाना था लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। खैर, जनता क्या करेगी, इसका पता तो अगले साल ही चल पाएगा। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व क्या जवाब देगा, इसका भी पता देर सबेर लोगों को चलेगा ही। लेकिन विकास के नजरिए से इस छोटे प्रदेश में राजनीतिक उथल-पुथल ठीक नहीं है। नेतृत्व परिवर्तन करना था तो पहले ही किया जाना चाहिए था, इससे विकास योजनाएं प्रभावित नहीं होंती।बहरहाल, अब तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हैं। प्रदेश हित में सभी को उनका सहयोग करना चाहिए। जो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जनहित में प्रदेश के लिए अच्छे काम किए हैं, उन कामों को भी बचे हुए समय में आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। क्योंकि जनता को केवल विकास चाहिए और वह उसी नजरिए से ही चुनाव को भी देखती है। कुर्सी पर कौन बैठा, कौन हटा यह बात जनता के लिए खास मायने नहीं रखती।

 

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