-उत्तराखंड भाजपा में सरकार-संगठन में बदलाव के बाद बड़ा सवाल
-पहली बार मैदान के हिस्से आया है, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का पद
मौहम्मद शाहनजर
देहरादून:भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखण्ड में अपनी सरकार के चार साल पूरे होने का जश्न अनोखे अंदाज में मनाया है। भाजपा हाईकमान ने मुख्यमंत्री ही नहीं, प्रदेश अध्यक्ष को भी बदल दिया है। पार्टी के खेवनहारों का कहना है कि बदलाव से सरकार-संगठन के जिम्मेदारों, पदाधिकारियों-कार्यकर्ताओं में उर्जा का संचार होगा? जिसका प्रमाण नये मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के (फटी जीन्स, अमेरिका की गुलामी व समय रहते 20 बच्चे पैदा करने आदि) बयानों, पद से हटाए गये (अब पूर्व मुख्यमंत्री हो चूके) त्रिवेंद्र सिंह रावत के दर्द (मुझे हटाने की वजह दिल्ली जाकर पता करो, महाभारत में कौरवों ने अभिमन्यु का छल-कपट से वध किया था) झलकने और हेलीकॉप्टर विवाद और गार्ड ऑफ ऑनर के मामले में उत्तराखंड भाजपा नये नवेले प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक की ओर से माफी मांगने से मिल गया है।
उत्तराखण्ड की सियासत में उभरे इन हालातों के बीच पहली बार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी गढ़वाल-कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों से उतरकर मैदान के हरिद्वार में पहुंची हैं। भाजपा ने धार्मिक और क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिए ब्राह्मण कोटे से मैदानी मूल के वरिष्ठ मंत्री रहे मदन कौशिक को उत्तराखंड भाजपा की कमान सौंप तो दी है, लेकिन इस कांटों भरी डगर पर चलकर 2022 में पार्टी को प्रचंड बहुमत कि सरकार वापस करा पाना मदन के लिए आसान नहीं होगा। उनके सामने भी तीरथ सिंह रावत की तरह चुनौतियों का पहाड़ है।
त्रिवेंद्र सरकार में कद्दावर मंत्रियों में गिने जाने वाले मदन कौशिक का नए मंत्रिमंडल में शामिल होना भी तय ही माना जा रहा था। लेकिन पार्टी हाईकमान ने उन्हें कैबिनेट मंत्री से हटा कर उत्तराखंड भाजपा की कमान सौंप कर सबको हैरान कर दिया है। कौशिक चार बार के विधायक रह चुके हैं और दो बार मंत्री रहे हैं। 2012 के दौर में नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी वे अपना मंत्री पद बचाने में सफल रहे थे। भाजपा ने प्रदेश में चेहरा बदलकर यह संकेत दिया है कि आगामी 2022 का विधानसभा चुनाव तीरथ सिंह रावत के चेहरे और मदन कौशिक की अगुआई में मोदी के नाम पर ही लड़ा जाएगा, लेकिन देश भर में किसान आंदोलनों और बढ़ती महंगाई के बीच जो माहौल उभर कर सामने आया है, उसे देखते हुए मदन कौशिक के लिए रास्ता आसान नहीं है। पहाड़-मैदान, ब्राह्मण-ठाकुर के इर्द-गिर्द घूमने वाली उत्तराखंड की राजनीतिक शतरंजी बिसात को मैदान से चलाना मदन कौशिक के लिए कतई आसान नहीं होगा। उनके भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनते ही जिस तरह से 2014 का एक ऑडियो वायरल कराया गया, उससे यह साफ संकेत मिलता हुआ दिखाई देता है कि अब भी उत्तराखंड में पहाड़-मैदान कि सियासत का जहर बाकी है। उस वीडियो में पहाड़-मैदान के नाम पर वोटों के ध्रुवीकरण की बात सुनी जा सकती है। सवाल यह भी है कि क्या मदन कौशिक उस वीडियो में कही गई बातों से अपने आप को बाहर निकाल पाएंगे?
ब्राह्मण समाज को राजनीतिक तौर पर खुश करने के लिए भाजपा ने कौशिक को पार्टी की कमान सौंपी जरूर है, लेकिन सवाल यह भी है कि क्या पार्टी के ब्राह्मण चेहरे के तौर पर स्थापित हो चुके केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी, लोकसभा सांसद अजय भट्ट मदन कौशिक के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकेंगे? क्या पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज-मदन कौशिक और निशंक के बीच उपजे पूर्व के विवाद नई मंजिल की तलाश में निकलते समय आड़े नहीं आएंगे? जानकारों का तो यह भी कहना है कि मदन कौशिक को पार्टी संगठन को मजबूत करने और चुनाव में जाने के लिए जो एक साल से भी कम का समय मिला है उसमें वह अपनी खुद की टीम बना पाएंगे यह भी साफ नहीं है। तीरथ सिंह रावत को भी पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की टीम ही दी गई है। केवल चार नये (बंशीधर भगत, बिशन सिंह चुफाल, गणेश जोशी और स्वामी यतीश्वरानन्द) बल्लेबाज टीम में शामिल किए गए हैं। वहीं, मदन कौशिक को बंशीधर भगत भगत की ओर से गठित की गई प्रदेश कार्यकारिणी के सहारे ही मैदान से चलकर हिमालय की चोटी को नाप प्रचंड बहुमत बरकरार रखने की चुनौती होगी। पार्टी संगठन में अभी अजय भट्ट, बंशीधर भगत और निशंक के करीबियों का दबदबा बरकरार है।
राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा के आम चुनाव में पार्टी को जनता के दर पर जाना है। ऐसे में सरकार और संगठन में बेहतर तालमेल स्थापित कर कार्यकर्ताओं में ‘मिशन-2022’ के लिए नया उत्साह जगाने की भी चुनौती है। जाहिर है कि इस समेत अन्य चुनौतियों से पार पाने के लिए उनके सामने समय कम है और विधानसभा चुनाव उनके कौशल की अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा। क्योंकि भाजपा ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बगावत और पीएम मोदी के डबल इंजन सरकार की डिमांड के सहारे प्रचंड बहुमत हासिल किया था। तब भाजपा की झोली में जनता ने विधानसभा की 70 में से 57 सीटें डाल दी थीं। अब ऐसा ही प्रदर्शन फिर से दोहराने की चुनौती भाजपा और मदन कौशिक के सामने भी होगी। अब बदली परिस्थितियों में जब सरकार और संगठन में नेतृत्व परिवर्तन हुआ है तो नए प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के सम्मुख भी चुनौतियों का पहाड़ है। जिन परिस्थितियों में कौशिक को प्रदेश भाजपा की कमान मिली है, उसमें उन्हें एक नहीं अनेक परीक्षाओं से गुजरना होगा। कौशिक को सरकार और संगठन के मध्य बेहतर तालमेल बनाने के साथ-साथ चुनाव के लिए भरोसेमंद खिलाड़ियों की फील्डिंग सजानी होगी।
कौषिक को राज्य एवं केंद्र सरकार की उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने के लिए नई रणनीति पर काम करना होगा। नेतृत्व परिवर्तन समेत अन्य विषयों को लेकर विपक्ष की ओर से उठाए जाने वाले सवालों का भी तथ्यों और तर्कों के साथ जवाब देना होगा। इसके अलावा कौशिक को केंद्रीय और प्रांतीय नेतृत्व के बीच सेतु का काम भी करना होगा, इसमें उनके कौशल की भी परीक्षा होगी। यही नहीं, पार्टी में सबको साथ लेकर चलने की चुनौती भी है। इन सब चुनौतियों से पार पाने के लिए उनके पास वक्त बेहद कम है, क्योंकि 10 माह बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सभी की नजरें कौशिक पर टिकी हैं कि वह पार्टी संगठन को किस तरह से आग बढ़ाते हैं। उत्तराखण्ड के तराई वाले क्षेत्रों के किसान आंदोलन में शामिल है, हरिद्वार, उधमसिंह नगर, देहरादून व नैनीताल जिले की करीब 25 विधानसभा सीटें किसान बहुल क्षेत्र माने जाते हैं। इसलिये भाजपा ने हरिद्वार से प्रदेश अध्यक्ष बना कर किसान आंदोलन से होने वाले नुकसान को कम करने की जिम्मेदारी कौशिक के कंधों पर डाली है। अब यह देखना दिलचस्प होगा की मदन कौशिक भाजपा की उम्मीदों पर कितना खरा उतरते हैं?
मदन कौशिक वर्ष 1985-86 में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में छात्रसंघ अध्यक्ष रहे, इसी दौरान वह बजरंग दल से जुडे, और हरिद्वार के जिला संयोजक बने, वर्ष 2000 में जिला महामंत्री हरिद्वार भाजपा रहे और उसके बाद हरिद्वार भाजपा के जिला अध्यक्ष बने। वर्ष 2002 में पहली बार हरिद्वार से भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे, विधायक निर्वाचित हुए। 2002 से 2007 तक विधानसभा की विभिन्न समितियों के सदस्य रहे। 2002 से 2004 तक विधानसभा में सार्वजनिक उपक्रम व निगम समिति के सदस्य रहे। 2004 से 2007 तक कौशिक विधानसभा में प्राक्कलन समिति के सदस्य रहे। वर्ष 2007 में फिर भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचे ओर खंडूड़ी कैबिनेट में मंत्री बने। वर्ष 2012 में प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली। वर्ष 2012 में पुनः विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए, भाजपा के मुख्य सचेतक, विधानमंडल दल के उपनेता, विभिन्न समितियों के सभापति और सदस्य रहे। वर्ष 2015 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने। वर्ष 2017 में फिर विधायक निर्वाचित। कैबिनेट मंत्री और सरकार के प्रवक्ता की जिम्मेदारी संभाली। अब वर्ष 2021 में प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष की नई जिम्मेदारी मिली है।