- कांग्रेस के नेतृत्व में बने महागठबंधन ने बढ़ाई सत्ताधारी पार्टी की चिंता
- तमाम कयासों के बीच इस बार सीटों की संख्या में बड़े अंतर की उम्मीद भी कम
अनिरूद्ध यादव
गुवाहाटी।असम में विधानसभा चुनाव को देखते हुए चुनावी तैयारियां तेज हो गई हैं। पक्ष-विपक्ष दोनों ने अपने-अपने स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके मद्देनजर सत्ताधारी भाजपा को दिसपुर की सत्ता से हटाने के लिए राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) ने सामान विचारधारा वाली एक महागठबंधन की घोषणा कर दी है। कांग्रेस के नेतृत्व में गठित इस महागठबंधन में मौलाना बदरुद्दीन अजमल की पार्टी अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (एआईयूडीएफ), माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी -लेनिनवादी) और राज्यसभा सांसद अजीत भुयां की पार्टी आंचलिक गणमोर्चा को शामिल किया गया है।उल्लेखनीय है कि इस महागठबंधन के लिए सर्वप्रथम प्रयास पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तरूण गोगोई ने किया था और पार्टी ने इसे मूर्त रूप देकर उनकी इच्छाओं को अमली जामा पहना कर उन्हें वास्तविक श्रद्धांजलि दे दी। इसकी घोषणा करते हुए अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव और असम प्रदेश कांग्रेस समिति के प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह बहुत जरूरी कदम था। सामाजिक समरसता और असमिया समुदाय के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए विपक्ष को भाजपा के खिलाफ एकजुट करने और सत्ता से उखाड़ फेंकने की जरूरत है। हम कतई नहीं चाहते कि भाजपा विरोधी वोट बंटे और असम को एक बार फिर भाजपा का शासन देखना पड़े, जिसके शासनकाल में राज्य की अस्मिता को काफी नुकसान पहुंचा है। दूसरी ओर, असम प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष रिपुन बोरा ने कहा कि महागठबंधन भाजपा के सभी विरोधी दलों के साथ हाथ मिलाने को तैयार है।मालूम हो कि इससे पहले कांग्रेस और एआईयूडीएफ ने असम जातीय परिषद (एजेपी) और अखिल गोगोई के राइजर दल (आरडी) के साथ हाथ मिलाने की पेशकश की थी, परंतु दोनों क्षेत्रीय दलों ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। आंचलिक गण मोर्चा (एजीएम) के मुख्य संयोजक और सांसद अजीत कुमार भुयां का कहना है कि हमारे दरवाजे खुले हैं क्योंकि सभी भाजपा विरोधी ताकतों के लिए इस सरकार को सत्ता से अलग करने के लिए एकजुट होना बहुत जरूरी है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी महागठबंधन की घोषणा ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।राजनीतिक जानकार बताते हैं कि मौलाना बदरूदीन के कांग्रेस के साथ आ जाने से भाजपा को कड़ी चुनौती मिल सकती है। खासकर, राज्य की अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर जीत दर्ज करना भाजपा के लिए कठिन होगा। एक आंकड़े के अनुसार, राज्य के निचले असम में 37 सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। परंपरागत रूप से इन सीटों पर अल्पसंख्यक मतदाता कांग्रेस और एआईयूडीएफ के समर्थक रहे हैं। 2016 विधानसभा चुनाव से सबक लेते हुए दोनों दलों ने मत विभाजन रोकने के लिए महागठबंधन किया। कारण कि पिछले चुनाव में मत विभाजन होने से कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ा था।यदि हम कांग्रेस और एयूआईडीएफ के मत प्रतिशत को जोड़ दें तो निश्चित ही भाजपा के विजयी उम्मीदवार से कहीं ज्यादा मत प्रतिशत हो रहा है। पिछले चुनाव में राज्य में कांग्रेस को32.06 प्रतिशत, एआईयूडीएफ को 21.34 प्रतिशत तथा तीनों वामपंथी पार्टियों को मिलाकर 58 प्रतिशत से ज्यादा मत मिले थे, जबकि भाजपा, अगप एवं बीपीएफ को मिलाकर 41.51 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। वोट के आंकड़ों पर नजर डालने से लगता है कि निचले असम में भाजपा गठबंधन को कड़ी चुनौती मिलेगी, वहीं बराक बैली में कुछ सीटों पर भाजपा को कड़ी चुनौती मिल सकती है। कारण कि बराक घाटी की कुछ सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यकमतदाताओं की संख्या अधिक है।अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर महागठबंधन चुनौती दे सकता है। दूसरी ओर, राजनीतिक जानकार बताते हैं कि ऊपरी असम में कांग्रेस को एआईयूडीएफ के साथ जाने से कुछ नुकसान उठाना पड़ सकता है। कारण कि चाय बागानी मतदाताओं का कांग्रेस से मोहभंग हो चुका है। चाय बागानी इलाके में भाजपा अपनी मजबूत पकड़ बना चुकी है। बागानी इलाकों में सरकार की तमाम लाभकारी योजनाएं इसके कारण हैं, वहीं दूसरी ओर ऊपरी असम में कांग्रेस का जो आहोम वोट था उसमें आसू से बनी नवगठित पार्टी असम जातीय परिषद नेता लुरिनज्योति गोगोई की मजबूत पकड़ मानी जा रही है।यानी यह कहा जा सकता है कि आहोम वोट दो हिस्सों में बंटता नजर नजर आ रहा है, जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस बार सीटों की संख्या में बड़े अंतर की उम्मीद कम है।